फरवरी में ही हांफने लगी छोटी नदियां, कारी कोसी, कमला, भसना, चांपी के अस्तित्व पर संकट
कटिहार में गर्मी शुरू होते ही कारी कोशी भसना चापी कमला व पलटनिया जैसी नदी सुखने लगी है। इन नदियों की इस स्थिति का अहम कारण गाद के साथ बढ़ रहे अतिक्रमण को भी माना जा रहा है।
कटिहार [रमण कुमार झा]। जिले से गुजरने वाली कई छोटी नदियां अबकी फरवरी में ही हाफने लगी है। इन नदियों की धारा थम चुकी है और कई जगह सूखने की स्थिति में नदी पहुंच चुकी है। कारी कोशी, भसना, चापी, कमला व पलटनिया जैसी नदी गर्मी की दस्तक के साथ ही नाले का आकार लेने लगी है।
गाद व अतिक्रमण माना जा रहा अहम कारण
इन नदियों की इस स्थिति का अहम कारण गाद के साथ बढ़ रहे अतिक्रमण को भी माना जा रहा है। बता दें कि शहरीकरण के अंधाधुंध विस्तार से पूर्व ही कई छोटी नदियों का अस्तित्व यहां समाप्त हो चुका है। फिलहाल छोटी नदियों का अस्तित्व पूरी तरह बड़ी नदियों की जलधारा पर ही केंद्रित रहती है। गत कुछ वर्षों से मुहाने पर गाद आदि जमने के कारण इन नदियों का संपर्क स्त्रोत ही टूट जाता है और गर्मी में ये नदियां खुद प्यासी नजर आने लगती है।
कभी सालोभर रहता था लबालब पानी
कभी इन छोटी नदियों में भी सालोभर तेज धारा चलती थी। क्षेत्र के किसानों व मवेशी पालकों के लिए यह वरदान साबित होता था। इतना नहीं मछली पकडऩे के पेशे से जुड़े लोगों की रोजी-रोटी इन नदियों से चलती थी। रौतारा वासी किसान विशुनदेव महतो कहते हैं कि कमला, भसना व पलटनिया आदि नदी की जो स्थिति बन रही है, उससे यह तय है कि अगले पांच-दस वर्षों में शायद ही इन नदियों का अस्तित्व बच पाएगा।
नदियों की गाद की सफाई जरुरी
विशेषज्ञों के अनुसार सीमांचल की अधिकांश छोटी नदियों का अस्तित्व महानंदा व कोसी जैसी बड़ी नदियों पर टिकी हुई है। बड़ी नदियों में भी गाद भर जाने से उन नदियों से छोटी नदियां का संपर्क भंग हो रहा है। गाद के कारण धाराएं मुड़ रही है और इन नदियों के अस्तित्व पर संकट बढ़ता जा रहा है।
नदी में गाद तेजी से भर रहा है। इस कारण कई प्रमुख नदी की धारा भी बदल रही है। इस कारण छोटी नदियों के अस्तित्व पर क्रमिक संकट बढ़ रहा है। शहरीकरण की होड़ में पूर्व ही कई छोटी नदियां अतिक्रमण के कारण अपना अस्तित्व खो चुकी है।
प्रो. आर. एन मंडल, नदियों पर शोध कार्य।
छोटी नदियों के सूखने का एक अहम कारण बरसात के बाद बड़ी नदियों से उसका संपर्क बिच्छेद है। इससे ऐसी नदियों की धाराएं सूख जाती है। आबादी में लगातार वृद्धि के कारण खेती का रकवा बढ़ाने की होड़ में ऐसी नदियां अतिक्रमित हो रही है और इसके शेष जल के उपयोग से उसके सूखने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
डा. टी.एन. तारक, पर्यावरणविद्।