श्रावणी मेला 2021: सावन के सौ करोड़ी बाजार पर लगा कोरोना का ग्रहण, 25 हजार लोगों का दो वर्ष से छिन गया रोजगार
श्रावणी मेला 2021 25 जुलाई से शुरू हो रहा है सावन। अब तक मेला आयोजन के नहीं दिख रहे आसार। लगता है इस बार भी कोरोना वायरस के कारण इस मेले के आयोजन पर ग्रहण लग गया है। दो वर्ष से 25 हजार लोगों का छिन गया है रोजगार।
भागलपुर [संजय सिंह]। श्रावणी मेला 2021: विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला का आयोजन लगातार दूसरे बार भी नहीं होने के आसार दिख रहे हैं। इस मेला में हर वर्ष से 35 से 40 लाख लोग देश के विभिन्न प्रदेशों और विदेशों से आते हैं। मेला में सौ करोड़ से अधिक का आर्थिक कारोबार होता है। कई परिवार ऐसे हैं, जिनका सालों भर श्रावणी मेला से होने वाली आमदनी पर ही गुजारा होता है। बीते वर्ष कई लोगों का गुजर बसर कर्ज के सहारे हो गया, लेकिन इस वर्ष मेला का आयोजन नहीं होने की वजह से व्यवसायी और पंडा समाज हताश और निराश हैं।
लगभग 50 हजार लोगों की घर गृहस्थी श्रावणी मेला के भरोसे ही चलती है। कारोबार ठप होने का असर दिल्ली, कोलकता, उत्तरप्रदेश के बाजारों पर भी पड़ा है। कोरोना की तीसरी लहर की संभावना और जोखिम को देखते हुए प्रशासनिक अधिकारी कोई भी जोखिम अपने सर लेना नहीं चाहते हैं। परिणामस्वरूप दो माह पूर्व से मेले की शुरू होने वाली तैयारी अब तक शुरू नहीं हो सकी है। जबकि, मेला शुरू होने में अब महज 20 दिन शेष रह गए हैं। इस मेले में कांवर यात्रा का बहुत महत्व है। सुलतानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा का पवित्र जल लेकर श्रद्धालु 105 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर झारखंड के देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ और बासुकीनाथ पर आर्पित करते थे। धार्मिक मान्यता यह है कि सावन में बाबा पर जल अर्पित करने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।
कांवर का होता था बड़ा कारोबार
कांवर के कारोबार के लिए यहां दूसरे प्रदेशों के भी व्यवसायी आते थे। इसके लिए बांस आदि की खरीदारी और कांवर तैयार करने का काम दो तीन महीने पूर्व से ही शुरू हो जाता था। यहां पांच सौ से लेकर पांच हजार तक के कांवर तैयार किए जाते थे। स्थानीय व्यवसायी चंद्रशेखर मोदी ने बताया कि बीते वर्ष लॉकडाउन होने की वजह से तैयार किया गया बांस का कांवर सड़ गया। इससे कई व्यवसायियों को लाखों का नुकसान हुआ। हर वर्ष श्रावणी मेला के दौरान लगभग 25 करोड़ रुपये के कांवर का कारोबार होता था। इस वर्ष भी मेला के आयोजन होने की कोई उम्मीद नहीं है। परिवार कैसे चलेगा, यह सबसे बड़ी चिंता है। इसी तरह की बात संजय केशरी ने भी कही। वे कहते हैं कि बांस की आपूर्ति कोसी, सीमांचल या मिथिलांचल के जिलों से होती थी। इससे उस इलाके के किसानों को अच्छी आय होती थी। इस कारण बीते दो वर्ष से किसान भी निराश हैं। उन्हें बांस का खरीदार और उचित कीमत नहीं मिल पा रही है।
उत्तर प्रदेश की घंटी से सजता था कांवर
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, जलेश्वर से कांवर में लगने वाली तरह तरह की घंटियां बन कर आती थी। इसका कारोबार भी लगभग पांच करोड़ का था। बीते वर्ष की घंटियां बची हुई है। इस कारण किसी व्यवसायी ने नई घंटी तैयार करने का आर्डर नहीं दिया। इसका असर उत्तर प्रदेश की इन दोनों जगह के घंटियां बनाने वाले कारोबारियों पर भी पड़ा है। घंटियों की रूनझुन से पूरा कांवरिया पथ गूंजायमान होते रहता था। लेकिन, इस बार कांवरियां पथ पर घंटियों की आवाज नहीं सुनाई देगी।
ठंडा पड़ा गेरूआ वस्त्र का कारोबार
श्रावणी मेला में लाखों की संख्या में आने वाले शिवभक्त गेरूआ वस्त्र पहन कर ही अपनी कांवर यात्रा शुरू करते थे। कांवरियों के लिए तैयार रेडीमेड वस्त्र शाहजहांपुर, मेरठ, दिल्ली और कोलकता के बाजार से मंगाए जाते थे। श्रावणी मेला के दौरान सिर्फ गेरूआ वस्त्र का कारोबार 20 से 22 करोड़ तक होता था। श्रावण बाजोरिया ने कहा कि कांवर यात्रा शुरू करने से पहले नए गेरूआ वस्त्र पहनने का चलन है। इस कारण सभी कांवरिया नए वस्त्र की खरीद करते हैं। इस व्यवसाय से तीन से पांच सौ से अधिक व्यवसायी जुड़े हुए हैं। बीते वर्ष मेला नहीं होने के कारण व्यवसायी का माल बिका नहीं, इस कारण किसी ने इस वर्ष नया आर्डर नहीं दिया है। कांवर में लगने वाला वेलवेट का कपड़ा भी नहीं मंगवाया गया है। व्यवसायी चंदू ने कहा कि वेलवेट के कपड़े का कारोबार भी लगभग पांच करोड़ का होता था।
कांवर को सजाने वाले वस्तुओं की भी मांग नहीं
कांवर यात्रा शुरू करने से पहले कांवरिया पूरे उत्साह के साथ कांवर को सजवाते थे। कांवर पर दुकानदारों से प्लास्टिक के त्रिशुल, सर्प, फूल, शंख आदि लगवाते थे। कांवर को सजाने वाले वस्तुओं का लगभग 25 करोड़ का कारोबार होता था। कांवर सजाने वाली सामग्री कोलकता के बाजार से मंगाई जाती थी। मदन चौधरी, दिलीप कुमार राय आदि ने कहा कि कोलकता के व्यवसायी भी फोन कर श्रावणी मेला के आयोजन के बारे में जानकारी लेते रहते हैं। लेकिन, यहां अनिश्चितता का माहौल है। वहीं, फूल, अगरबत्ती सहित अन्य पूजन सामग्री बेचने वाले दुकानदार भी मायूस हैं। पूजन सामग्री का कारोबार भी दस करोड़ से अधिक का होता था।
पंडा भी हैं निराश
सुल्तानगंज में कांवरियों को पूजा कराने वाले पंडा के डेढ़ सौ अधिक परिवार हैं। वहीं, 15 सौ से अधिक पुरोहित दूसरे जगह से भी सुलतानगंज पहुंचते थे। जो श्रावणी मेला में कांवरियों से मिलने वाली दक्षिणा से सालों भर घर का खर्च चलाते थे। पंडा अभिषेक झा का कहना है कि दो वर्ष से श्रावणी मेला नहीं लगने के कारण पंडा और पुरोहित की आय पर ग्रहण लग गया है। इसमें कई परिवार ऐसे हैं, जिनका पारिवारिक खर्च पुरोहिती से मिलने वाले पैसे से ही चलता था।
कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए श्रावणी मेला को लेकर अब तक संशय की स्थिति बनी हुई है। अभी तक प्रशासनिक स्तर से तैयारियां आरंभ नहीं की जा सकी है। मेला के आयोजन की संभावना कम है। - शंभू राय, सीओ सुल्तानगंज