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Shravani Mela 2020 : सुल्तानगंज से देवघर तक कांवरिया पथ पर एक ही सवाल अब हमलोगों का क्या होगा?

श्रावणी मेला 2020 विश्वप्रसिद्ध श्रावणी मेला को लगा कोरोना का ग्रहण। दो सौ वर्षों के ज्ञात इतिहास की पहली घटना। मेला से जुड़ा है अरबों का कारोबार।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 02:44 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 06:25 PM (IST)
Shravani Mela 2020 : सुल्तानगंज से देवघर तक कांवरिया पथ पर एक ही सवाल अब हमलोगों का क्या होगा?
Shravani Mela 2020 : सुल्तानगंज से देवघर तक कांवरिया पथ पर एक ही सवाल अब हमलोगों का क्या होगा?

भागलपुर [उदय चंद्र झा]। कोरोना वायरस से बचाव के लिए देश में लगाया गया लॉकडाउन तो अब अनलॉक-2 में पहुंच गया है। लेकिन बिहार के सुल्तानगंज से झारखंड के देवघर तक के लोगों का एक ही सवाल है कि इस वर्ष श्रावणी मेला नहीं लगा अब हमलोगों का क्या होगा? सवाल लाजिमी है। यह महज एक धार्मिक मेला नहीं है बल्कि यहां से देवघर तक की सौ किमी क्षेत्र की बड़ी आबादी के लिए यह आर्थिक मेला है। हजारों परिवार की वार्षिक आजीविका इसी पर निर्भर है। लेकिन श्रावणी मेला पर  लगे प्रतिबंध ने सबकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। ऐसे में लोगों में श्रावणी मेला खासा चर्चा का विषय है। आखिर सवाल साल भर की आजीविका का है।

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आज नहीं गूंजा बोलबम का नारा

विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला इस वर्ष कोरोना की भेंट चढ़ गया। पहली सोमवारी पर जुटने वाली अमूमन दो लाख श्रद्धालुओं की भीड़ इस वर्ष बस कल्पनाओं में ही रह गयी। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शुमार देवघर स्थित कामना ज्योतिर्लिंग अति महत्वपूर्ण है। श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा अर्थात एक माह तक प्रत्येक वर्ष शिवभक्त सुल्तानगंज के अजगवीनाथ मंदिर के निकट  उत्तर वाहिनी गंगा से जल लेकर 105 किलोमीटर पैदल यात्रा कर देवघर के रावणेश्वर महादेव का जलाभिषेक करते थे। लेकिन इस वर्ष ये परंपरा टूट गयी। सैकड़ों बरसों से आध्यात्मिक एवं धार्मिक परंपरा के कारण लाखों लोगों की आस्था एवं विश्वास का केंद्र रहने के कारण देश के विभिन्न हिस्सों सहित नेपाल भूटान श्रीलंका के श्रद्धालु सुल्तानगंज पहुंचते थे और यहां से गंगाजल लेकर बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते थे। लेकिन इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण की रोकथाम के लिए बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर और सुल्तानगंज के बाबा अजगवीनाथ मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए बंद रखा गया है।

लेकिन फिर भी आज सावन माह की पहली सोमवारी को लेकर पास पड़ोस के जिले सहित स्थानीय श्रद्धालुओं की भीड़ अजगवीनाथ में दिन भर लगी रही। हलांकि मंदिर का पट  बंद रहने के कारण लोग बाहर से  ही पूजा अर्चना कर अपने घर चले गये। उत्तरवाहिनी गंगा के सन्निकट बाबा अजगवीनाथ के मंदिर के लिए ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा अर्चना और जलाभिषेक करने वालों की मन्नतें पूरी होती है। इसीलिए इसे मनोकामना शिवलिंग भी कहा जाता है।

श्रावण में शहर पर नहीं चढ़ा केसरिया रंग का जादू

श्रावणी मेला आने से एक सप्ताह पहले से लेकर भाद्रपद की पूर्णिमा तक पूरे शहर की हर सड़क केसरियामय हो जाती थी। लगभग डेढ़ हजार छोटी बड़ी कांवरिया से संबंधित दुकानें शहर को केसरिया कलेवर में ढंक देती थी। शहर -सैफ्रोन सिटी- कहलाने का दम भरता था। लेकिन इस बार कहीं ऐसा कुछ नहीं है।

केवल किराए के मिलते हैं एक से डेढ़ करोड़

श्रावणी मेला के नाम से चलने वाला कांवरिया मेला अब दो महीने तक अर्थात भाद्र पूर्णिमा तक लगभग एक सा चलता है। इस दौरान कांवर संबंधी सामानों की दुकानों के अलावा रेडिमेड कपड़ों प्लास्टिक डब्बे लाठी की दुकानें खुलती हैं। भोजन के लिए दर्जनों मारवाड़ी बासा फल और जूस तथा चाय पान की दुकानें भी खुलती हैं। इसके लिए दो माह का  किराया न्यूनतम 2 हजार है तो अधिकतम 8 से 10 लाख भी है।

इसके अलावा कुकुरमुत्तों की तरह लगभग सभी सड़कों में अस्थायी रेस्ट हाउस खोलने वाले भी 12 घंटों के ठहराव के हिसाब से मनमाना किराया वसूलते हैं। एक अनुमान के आधार पर मेलावधि में केवल शहरी क्षेत्र में डेढ़ करोड़ केवल किराए के मिल जाते हैं।

रेलवे को भी अरबों का घाटा

देश के विभिन्न राज्यों से आने वाले लाखों कांवरिया सुल्तानगंज आने और फिर पैदल देवघर पहुंचने के बाद जसीडीह स्टेशन से अपने घर वापस जाने के लिए  साधारण और आरक्षण टिकट लेते हैं। उससे रेलवे को अमूमन दो सौ से ढाई सौ करोड़ का राजस्व मिलता है। मेला स्थगित किए जाने से लॉकडाउन में घाटे में जा चुकी रेलवे को और झटका लगेगा।

ट्रांसपोर्टरों की करोड़ों की आय पर फिरेगा पानी

बिहार झारखंड उत्तरप्रदेश बंगाल उड़ीसा यहां तक कि नेपाल से भी प्रतिदिन सुल्तानगंज आने वाली सैकड़ों बसों के ट्रांसपोर्टरों को भी करोड़ों की आय से वंचित होना पड़ेगा। इसके अलावा सैकड़ों लग्जरी गाड़ियों से भी कांवरिया आते हैं। उन किराए की लग्जरी गाड़ियों के मालिकों को भी आर्थिक चपत लगेगी।

विभिन्न जिलों से यहां पंडावृत्ति हेतु आने वाले ब्राम्हणों को भी झटका

पहले श्रावणी मेला केवल सुल्तानगंज के ब्राम्हणों की सालों भर की जीविका का आधार हुआ करता था। लेकिन वर्ष 1996 से तत्कालीन जिलाधिकारी के मौखिक आदेश और बाद के वर्षों में प्रशासनिक आदेश पर पंडों के  पहचान पत्र बनने लगे। इसमें स्थानीय निवासी होने की कोई शर्त नहीं होने के कारण अब बिहार एवं झारखंड के विभिन्न जिलों के ब्राम्हण श्रावणी मेले में यहां पंडा बन कर कमाते हैं। इस तरह विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले सैकड़ों ब्राद्मणों को भी लाखों का झटका लगेगा।

विद्युत विभाग एवं नगर परिषद को राजस्व का घाटा

मेला के दौरान लगने वाले अस्थायी दुकानों की संख्या 12 सौ से 15 सौ के आसपास हुआ करती है। इनमें अस्थाई विद्युत संबंधन दिया जाता है। प्रति दुकान न्यूनतम पांच सौ की रसीद काटी जाती है। इस राजस्व से विद्युत विभाग को वंचित होना पड़ेगा। दूसरी ओर नगर परिषद भी प्रति दुकान और गंगाघाट पर प्रति चौकी टैक्स वसूली करता है। उसे भी इस अतिरिक्त राजस्व प्राप्ति से वंचित होना पड़ेगा।


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