23 साल तक जीती रही ट्रांसजेंडर की जिंदगी, फिर पता चला वो तो लड़की है ...जानिए मामला
एक बच्ची के जीवन के 23 साल माता-पिता की अज्ञानता व लोक लाज की भेंट चढ़ गए। परिवार ने उसे ट्रांसजेंडर मान लियालेकिन जब डॉक्टर के पास गई तो पता चला कि वह लड़की है।
पटना/ भागलपुर [जागरण स्पेशल]। मनीषा को 23 साल बाद उसकी असली पहचान मिली है। 23 साल पहले जन्म होने पर जननांग सटा होने के कारण घरवालों ने उसे ट्रांसजेंडर (किन्नर) मान लिया। मां-बाप ने लोकलाज के डर से डॉक्टर को नहीं दिखायाा तथा उसका नाम मनीष रख उसे लड़का बताने लगे। तब से वह खुद को ट्रांसजेंडर मानते हुए समाज में लड़के के रूप में दोहरी जिंदगी जीती रही,लेकिन भागलपुर की डॉ. सरस्वती पांडेय ने उसे एक ऑपरेशन के जरिए 'मनीष' से 'मनीषा' की पहचान दे दी है। डॉक्टर के अनुसार, अब वह मां भी बन सकती है।
बच्ची को मान लिया ट्रांसजेंडर, बताया लड़का
बिहार के भागलपुर जिले के सिकंदरपुर मोहल्ले में 23 साल पहले एक बच्ची का जन्म परिवार में शोक लेकर आया। बच्ची का जननांग अविकसित तथा सटा होने के कारण परिवार वालों ने उसे ट्रांसजेंडर मान लिया। गरीब माता-पिता ने भी घर की बात घर में छुपाने की मंशा से उसे डॉक्टर से नहीं दिखाया। उसका नाम मनीष रख समाज को बताया कि लड़का का जन्म हुआ है।
तनाव के साथ हुई बड़ी, छूट गई पढ़ाई
मासूम मनीषा को पता नहीं था कि ट्रांसजेंडर क्या होता है। कुछ बड़ी हुई तो उसे इतनी समझ आ गई कि यह 'लड़का' या 'लड़की' से अलग कुछ है। बकौल मनीषा, इस समझ व इसके तनाव के साथ वह बड़ी होती गई। वह अपने दोस्तों के बीच असहज महसूस करती थी। हमेशा सबों से कटी-कटी रहती थी। इसी तनाव में उसने पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी।
16 की उम्र में हुआ पहला मासिक धर्म
मनीषा ने बताया कि लगभग 16 साल की उम्र में उसे पहली बार मासिक धर्म हुआ। इससे वह घबरा गई। उसने जब यह बात अपनी मां से कही तो वह भी घबरा गई। मनीषा की मां ने कहा उसे कोई बड़ी बीमारी हो गई है, लेकिन इलाज के लिए पैसे भी नहीं हैं। इसके बाद यह बात भी छह साल तक दबी रही। इस बीच मनीषा ने घर की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए एक दुकान पर नौकरी कर ली।
मदद को सामने आई दुकान मालकिन
तीन भाइयों व चार बहनों में सबसे बड़ी मनीषा ने बड़ी होकर भागलपुर के खलीफाबाग स्थित एक दुकान में सेल्स ब्वाॅय की नौकरी शुरू की। इस नौकरी के दौरान जब उसे फिर मासिक धर्म हुआ तो उसने इसकी जानकारी महिला दुकानदार सुशीला नेवटिया को दी। सुशीला ने अपने पति श्याम सुंदर नेवतिया के सहयोग से मनीषा को महिला चिकित्सक डॉ. सरस्वती पांडेय को दिखाया, जिन्होंने ऑपरेशन कर जननांग ठीक कर दिए।
अब पूरी लड़की है मनीषा, बन सकती मां
डॉ. सरस्वती पांडेय ने बताया कि मनीषा के स्तन पहले से विकसित थे, मासिक धर्म आने के बाद स्पष्ट हो गया कि वह लड़की है। अल्ट्रासाउंड में उसका गर्भाशय भी विकसित मिला। केवल योनि मार्ग सटा था, जिसे ऑपरेशन कर सही कर दिया गया। मनीषा अब मां बन सकती है। वह आम जीवन जी सकती है।
मिला नया जीवन, अब करेगी शादी
अभी तक मनीष के रूप में जीती रही मनीषा के लिए यह एक तरह से नया जीवन है। अब मनीषा लड़कियों की तरह अपनी जिंदगी गुजार सकेगी। सपनों का कोई राजकुमार खोजकर शादी करेगी, लेकिन अभी इसकी जल्दी नहीं है। अभी तो पटारी से उतरी जिंदगी को नए सिरे से आकार देना है। शहर के सिकंदरपुर रामचरणलेन में मनीषा का परिवार गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करता है। पिता मुनी लाल दास मजदूर हैं। बेटी को मिले नए जीवन से वे बेहद खुश हैं। वे भी कहते हैं कि अब अच्छा लड़का देख उसके हाथ पीले कर देंगे।
डॉक्टर ने दी नई जिंदगी
मनीषा ने बताया कि जब डॉ. सरस्वती ने जब उसकी आर्थिक स्थिति को जाना तो उन्होंने बिना पैसे लिए ऑपरेशन किया। साथ ही आवश्यक दवाएं भी दीं। मनीषा ने बताया कि डॉ. सरस्वती ने उसे शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर स्त्री होने का एहसास कराया। उन्होंने नई जिंदगी दी।
लोक लाज की बलि चढ़ गए 23 साल
मनीषा को नया जीवन तो मिल गया,लेकिन सवाल यह है कि उसके जीवन के यातना भरे 23 साल कौन लौटाएगा? डॉ. सरस्वती पांडेय कहतीं हैं कि मनीषा को अगर बचपन में ही डॉक्टर को दिखाया गया होता तो उसे 23 साल ट्रांसजेंडर के रूप में जिंदगी नहीं जीनी पड़ती। अज्ञानता व लोक लाज ने एक लड़की के 23 साल बर्बाद कर दिए।