बिहार पुलिस का अजग-गजब खेल, जेल के कैदी को बना डाला डकैत, जानिए कैसे खुली फर्जीवाड़े की पोल
बिहार के भागलपुर में पुलिस ने जेल में बंद एक कैदी को डकैती का आरोपित बना गजब कर दिया। न्यायालय में जब इस फर्जी मुकदमे की पोल खुली तो पुलिस की बोलती बंद हो गई। जानिए पूरा मामला।
भागलपुर, कौशल किशोर मिश्र। अपने अजब-गजब कारनामों को लेकर चर्चा में रही बिहार पुलिस का यह नया तमाशा है। भागलपुर के इशाकचक थाने की पुलिस ने इस बार जेल में बंद एक कैदी को डकैती का आरोपित बना डाला। हैरत की बात तो यह है कि इस मामले में पुलिस ने अनुसंधान पूरा कर न्यायालय में केस डायरी और आरोप पत्र तक समर्पित कर दिए। लेकिन न्यायालय में पुलिस के फर्जीवाड़े की पोल खुल गई।
जेल में बंद कैदी को बना दिया डकैती का आरोपित
इशाकचक थाना क्षेत्र में चार अप्रैल, 2019 को एक चिकित्सक के घर हुई डकैती में जिसे आरोपित बनाया गया, वह पहले से जेल में बंद था। पुलिस ने चिकित्सक के पिता के बयान पर अज्ञात के विरुद्ध केस दर्ज किया था।
तफ्तीश का जिम्मा इंस्पेक्टर संजय कुमार सुधांशु ने संभाला। उस दौरान पुलिस ने मोहम्मद मून को गिरफ्तार किया। उसके स्वीकारोक्ति बयान में जेल में बंद मोहम्मद रिजवान उर्फ बाबू कुल्हाड़ी को डकैती की साजिश रचने का मास्टर माइंड बताया गया। इसके बाद पुलिस ने पहले से जेल में बंद रिजवान के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया।
न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सकी पुलिस
खास बात यह है कि आरोप पत्र में उसे भारतीय दंड विधान की धारा 395 यानी डकैती का आरोपित बना दिया गया। ऐसा तभी संभव है, जब वह डकैती डालने में शारीरिक रूप से उपस्थिति हो। पुलिस ने न्यायालय में केस डायरी और आरोप पत्र समर्पित करते हुए केस डायरी में आरोपित के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की बात कही। हालांकि, आरोप पत्र में स्वीकारोक्ति बान के अलावा कुछ और प्रस्तुत नहीं कर सकी।
फर्जीवाड़े की खुली पोल, पलटी पुलिस की फेक स्टोरी
भागलपुर के एडीजे अतुल वीर सिंह ने इशाकचक पुलिस के इस फर्जीवाड़े को पकड़ते हुए पुलिस की फेक स्टोरी ही पलट दी। न्यायाधीश ने केस डायरी और आरोप पत्र के अवलोकन के बाद आरोपित मोहम्मद रिजवान उर्फ बाबू कुल्हाड़ी को जमानत दे दी है। न्यायाधीश ने पुलिस की इस कारगुजारी से वरीय पुलिस पदाधिकारी को अवगत कराने की भी बात कही।
पहले भी ऐसी हरकत कर चुकी इशाकचक पुलिस
मालूम हो कि इसके पूर्व भी इशाकचक पुलिस ने काल्पनिक वादी को आगे करते हुए एक फर्जी मुकदमा कायम कर दिया था। तत्कालीन जोनल आइजी अमरीक सिंह निंब्रान ने उस मामले में कार्रवाई की थी। न्यायालय ने तब भी तल्ख टिपणी की थी।