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बिहार कृषि विवि के वैज्ञानिकों को मिली सफलता... अब मशीन से तैयार होगा मखाने का लावा

बिहार कृषि विवि के वैज्ञानिकों को एक और सफलता मिली है। अब वे मशीन से मखाना का लावा तैयार कर सकते हैं। इसके लिए काम चल रहा है। इस मशीन के तैयार हो जाने के बाद मखाना उत्‍पादक किसानों को काफी राहत होगी।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sat, 30 Jan 2021 10:19 AM (IST)Updated: Sat, 30 Jan 2021 10:19 AM (IST)
बिहार कृषि विवि के वैज्ञानिकों को मिली सफलता... अब मशीन से तैयार होगा मखाने का लावा
बिहार कृषि विवि के वैज्ञानिकों को एक और सफलता मिली है।

भागलपुर [ललन तिवारी]। सबौर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों की एक टीम ऐसी मशीन का विकास कर रही है जिससे बड़ी मात्रा में मखाने का लावा तैयार किया जा सकेगा। इससे देश विदेश में बिहार के मखाने के व्यापार में बड़े पैमाने पर वृद्धि होने के साथ अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित होगी। इसके चालू हो जाने पर मखाना उत्पादन में कार्यरत बाल मजदूरों को इससे मुक्ति दिलाई जा सकेगी। इन विज्ञानियों के अनुसार यह मशीन निर्माण के अंतिम चरण में है और कुछ समय के अंदर वह तैयार हो जाएगी। यह विश्व में अपने किस्म की अकेली मशीन होगी।

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टीम के वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी मुख्यत: मल्लाह जाति के लोग मखाने के उत्पादन कार्य में लगे हुए हैं। पारंपरिक रूप से इसका लावा तैयार करने के कारण बड़े पैमाने पर उसे प्राप्त करने में काफी वक्त लग जाता है। लेकिन इस मशीन से कम समय में ही अधिकाधिक मात्रा में लावा तैयार किया जाना संभव होगा। शीघ्रता से इसकी मांग के अनुरूप पूर्ति की जा सकेगी। इससे इस व्यवसाय में दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की होगी। यह मशीन इस क्षेत्र में क्रांति लाने वाली साबित होगी।

क्या है फायदा, कैसी होगी मशीन

परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि इस मशीन अपनी निर्माण प्रक्रिया के अंतिम चरण में है। इससे शीघ्र मखाने का लावा तैयार होगा। उसकी पूरी गुणवत्ता बनी रहेगी। पारंपरिक पद्धति से जितने लावा तैयार करने में पांच-छह महीने लग जाते हैं उसकी उतनी मात्रा चंद घंटों में तैयार कर ली जाएगी। इसके आने पर मखाना उद्योग को पंख लग जाएंगे। इससे जुड़े किसानों, मजदूरों व व्यवसायियों को अधिक लाभ प्राप्त होगा। विदेशी मुद्रा भी अधिक अर्जित होगी।

बिहार ने दिया विश्व को मखाने का तोहफा

16वींं शताब्दी में बिहार ने ही दुनिया को मखाने के बारे में पहली बार जानकारी दी थी। उत्तर बिहार के जिलों में इसकी बहुतायत रूप से खेती होती है। देश की 99 फीसद इसकी पैदावार इसी इलाके में होती है। अत: यह नई मशीन मखाना उद्योग से जुड़े यहां के लोगों के लिए बेहद मददगार साबित होगी।

बीएयू को मिली है मखाना विकास की परियोजना

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत बिहार सरकार के उद्यान निदेशालय द्वारा मखाने के विकास के लिए बीएयू को 4.68 करोड़ की परियोजना दी गई है। उसके तहत विश्वविद्यालय की ओर से दरभंगा, मधुबनी , सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूॢणया, अररिया, कटिहार, किशनगंज सहित कुल नौ जिलों में 250 हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की विकसित किस्म सबौर मखाना 1 का प्रत्यक्षण कराया जाना है। इसके लिए सभी नौ जिलों में किसानों के चयन कर लिए गए हैं। उन्हें मखाना उत्पादन तकनीक का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

तीन जिलों में होगा अतिरिक्त प्रत्यक्षण

इस परियोजना के तहत तीन अकांक्षी जिलों पूॢणया, कटिहार व अररिया में बायोटेक किसान हब परियोजना के तहत एक सौ हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि में मखाने की पैदावार की जाएगी।

नोडल सेंटर पूर्णिया, पार्टनर दरभंगा और सहयोगी केवीके

इस परियोजना का नोडल सेंटर पूर्णिया स्थित भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय को बनाया गया है। इसका दूसरा पार्टनर दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र होगा। इसमें सभी चयनित जिलों के कृषि विज्ञान केंद्र भी सहयोग करेंगे। इस परियोजना के हब फैसीलेटर बीएयू के डीन एजी डॉ. आरआर सिंह तथा नोडल पदाधिकारी डॉ. पारसनाथ बनाए गए हैं।

मखाने का लावा तैयार करने वाली मशीन बनाने की प्रक्रिया यहां अंतिम दौर में है। इसके विकसित हो जाने पर बिहार में मखाना उद्योग वृहत व सुव्यवस्थित उद्योग का रूप ले लेगा। इससे जुड़े किसान, श्रमिक और व्यवसायी समृद्ध होंगे। विदेशों में बिहार के मखाने की खास पहचान बनेगी। विश्वविद्यालय इसके शीघ्र तैयार करने की दिशा में प्रयास कर रहा है। - डॉ. आरके सोहाने, कुलपति बीएयू सबौर  


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