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Sawan Somvar 2021: गंगा और कोसी के संगम तट पर स्थित बाबा बटेश्वरनाथ मंदिर में दूसरे राज्यों से भी पहुंचते हैं श्रद्धालु, भादो और माघ में हर साल लगता है मेला

Sawan Somvar 2021 गंगा और कोसी नदी के संगम पर बाबा बटेश्‍वरनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए दूसरे राज्‍यों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। साथ ही हर साल माध और भादो में यहां पर मेला भी लगता है।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 11:10 AM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 11:10 AM (IST)
Sawan Somvar 2021: गंगा और कोसी के संगम तट पर स्थित बाबा बटेश्वरनाथ मंदिर में दूसरे राज्यों से भी पहुंचते हैं श्रद्धालु, भादो और माघ में हर साल लगता है मेला
Sawan Somvar 2021: गंगा और कोसी नदी के संगम पर बाबा बटेश्‍वरनाथ मंदिर स्थित है।

संवाद सूत्र, कहलगाव। कहलगांव से दस किलोमीटर दूर उत्तरवाहिनी गंगा तट पर बटेश्वर पहाड़ की तराई में स्थित उत्तर एवं पूर्वी बिहार का ऐतिहासिक ख्यातिप्राप्त बाबा बटेश्वरनाथ महादेव मंदिर है। यह सिद्धपीठ के नाम से भी ख्यात है। यह गंगा और कोसी का भी संगम स्थल रहा है। इनके चारों ओर विभिन्न रूपों में अलग-अलग नामों से शिवमंदिरों में महादेव स्थापित हैं। बटेश्वरस्थान में कई प्राचीन मंदिर हैं। यहां सालभर शिवभक्तों एवं पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। भादो एवं माघी पूॢणमा पर बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें कटिहार, पूॢणया, मधेपुरा, सहरसा, दरभंगा, बेगूसराय, भागलपुर, बांका आदि जिलों के अलावा झारखंड के गोड्डा, साहेबगंज जिले के श्रद्धालु आते हैं। काफी संख्या में आदिवासी भी जुटते हैं। यह स्थल पौराणिक, धाॢमक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।

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मंदिर की विशेषता

बटेश्वरनाथ महादेव आपरूपी महादेव हैं। यहां मुनिवर वशिष्ठ ने भी तप और आराधना की थी। अत: यह मंदिर बशिष्ठेश्वर महादेव के रूप में भी प्रचारित हुआ जो बाद में बटेश्वर महादेव कहलाने लगा। यहां भगवान बुद्ध ने भी तीन माह रहकर साधना की थी। चौरासी मुनि एवं अन्य ऋषि मुनियों ने साधना की थी। यहां बटेश्वर पहाड़ी पर अभी भी चौरासी मुनि गुफा है। इसके अलावा नागा बाबा, शांति बाबा, संत बाबा ने भी यहां साधना करते हुए समाधि ली है। उनका आज भी समाधि स्थल है। नागा बाबा मंदिर भी गंगा के किनारे है। यहां बाबा बटेश्वरनाथ महादेव के सामने काली की प्रतिमा है जो कहीं नहीं है। बटेश्वरस्थान विक्रमशिला का उद्गम स्थल भी रहा है।

मंदिर का इतिहास

बंगाल के सेन शासकों के राज में स्थित वंगीय कायस्थ कुल पंचिका के अनुसार बल्लाल सेन ने अपने स्वसुर वट कृष्ण मित्र को मगध का राजा घोषित करने के उपलक्ष्य में यहां आकर शिवलिंग की आराधना की थी। बाद में इस मंदिर का विकास सन 1216 में कराया गया। सन् 1272 में पश्चिम बंगाल के हुगलीवासी मथुरानाथ चटोपाध्याय एवं विशंभर सेन ने मंदिर का विकास कार्य कराया था। उसके बाद शिवभक्तों द्वारा मंदिर का विकास किया जाता रहा है।

बाबा बटेश्वरनाथ महादेव भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। साल भर श्रद्धालुओं का जलार्पण एवं पूजा- अर्चना के लिए भीड़ लगी रहती है। रुद्राभिषेक पूजन भक्तों के लिए फलदाई होता है। यह स्थल तंत्र-मंत्र शक्ति पीठ है। इनके चारों दिशाओं में चार महादेव विराजमान हैं, जिनकी अपनी-अपनी ख्याति है। यहां शिव के सामने पार्वती नहीं काली की प्रतिमा है। यहां से कोई भी भक्त निराश होकर नहीं लौटता। यह गंगा और कोसी नदी का संगम स्थल भी है। -काॢतक बाबा, मंदिर के पुजारी

बटेश्वरनाथ महादेव इलाके की धाॢमक पहचान हैं। पर्यटन स्थल भी है। उसके बाद भी यहां के विकास पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। पंचायत के फंड से एवं अन्य फंड से विकास कराया गया है। यहां भादो एवं माघी पूॢणमा पर तीन दिवसीय मेला लगता है। सावन मास में तो शिवभक्तों की भीड़ लगी रहती है। गत दो साल से कोरोना के चलते मंदिर का दरवाजा बंद रहने के चलते शिवभक्त निराश हो लौट जा रहे हैं।

- त्रिभुवन शेखर झा उर्फ बाबू झा, बटेश्वरस्थान विकास समिति के सचिव 


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