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गरीब सवर्ण को आर्थिक आधार पर आरक्षण सकारात्मक पहल, खत्म होगा जा‍तिवाद

तिमांविवि राजनीतिक विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो. राम शंकर सिंह ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने को सही ठहराते हुए कहा कि सरकार रोजगार का सृजन भी करें।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 14 Jan 2019 10:02 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 03:04 PM (IST)
गरीब सवर्ण को आर्थिक आधार पर आरक्षण सकारात्मक पहल, खत्म होगा जा‍तिवाद
गरीब सवर्ण को आर्थिक आधार पर आरक्षण सकारात्मक पहल, खत्म होगा जा‍तिवाद

भागलपुर [जेएनएन]। केंद्र सरकार की ओर से गरीब सवर्ण को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण सकारात्मक पहल है। इस आरक्षण से राजनीतिक हित सधेगा। सामाजिक सरोकार में वृद्धि होगी। गरीब को संरक्षण की जरूरत है। यह बातें राजनीतिक विज्ञान विभाग, तिलकामांझी विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक प्रो. राम शंकर सिंह ने दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित बौद्धिक विचार गोष्ठी में कही।

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गोष्ठी का विषय था आर्थिक आरक्षण से राजनीतिक हित के साथ सामाजिक हित भी सधेंगे ? इससे पूर्व समाचार संपादक संयम कुमार ने विषय प्रवेश कराया। चर्चा को आगे बढ़ते हुए प्रो. सिंह ने कहा कि आरक्षण वैकल्पिक व्यवस्था है, स्थायी नहीं। आबादी बढ़ रही है। नौकरियां सिकुड़ रही हैं। ऐसे में गरीबी से निपटने की व्यवस्था होनी चाहिए। आरक्षण का होना सरकार की कार्यशैली की विफलता का परिचायक है। कहा, आरक्षण देने के बाद भी एसटी कोटे की सीटें पूरी तरह नहीं भर पा रही है। संविधान में पवित्र उद्देश्य से आरक्षण को शामिल किया गया था। राजनीतिज्ञ उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं। गरीबी समाज के लिए अभिशाप है।

उन्होंने कार्ल मार्क्स का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका मानना था कि दुनिया में दो ही वर्ग हैं। एक गरीब जिसे सर्वहारा वर्ग कहा और दूसरा अमीर जिसे पूंजीपति कहा गया। वर्तमान में पूरा विश्व एक व्यवस्था में बह रहा है। नतीजा अमीर ज्यादा अमीर और गरीब ज्यादा गरीब हो रहा है। प्रो. सिंह ने गरीब सवर्ण को दस प्रतिशत आरक्षण आर्थिक आधार पर देने को सकारात्मक तो बताया लेकिन इसे गंजे के शहर में कंघी बेचने जैसा भी कहा। यानी नौकरी का सिमट जाना और आरक्षण का बढऩा है।

सवर्ण गरीब में समाज के वैसे सारे लोग आ रहे हैं जो आरक्षण के दायरे से अब तक बाहर थे। इससे उनके कुछ बच्चे बेहतर संस्थानों में दाखिला ले सकेंगे। इस आरक्षण का प्रभाव दूरगामी फिलहाल नहीं दिखाई देगा। यह अस्थायी कदम है। प्रो. सिंह ने उदाहरण दे समझाया कि यह तो ठीक ऐसा ही है जैसे एक बच्चा रो रहा है इसका मतलब बच्चे को समय पर भोजन नहीं मिला। नौकरी यदि सबको मिल जाती तो आरक्षण क्यों दिया जाता?

हिन्दू समाज का सबसे बड़ा पतन जाति व्यवस्था से हुआ। जो सारे समाज को दीमक की तरह खाए जा रहा है। पहले कोटा। अब कोटे में कोटा। क्रीमी लेयर, पिछड़ा, अत्यंत पिछड़ा और अब दस प्रतिशत गरीब सवर्ण को आरक्षण। कायदे से नौकरी यानी रोजगार के अवसर बढ़ाने पर बल दिया जाना चाहिए। यही नहीं अन्य उपाय भी करने चाहिए ताकि लोग तकनीकी रूप से दक्ष हो सके।


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