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Ramdhari Singh Dinkar Birth anniversary: भागलपुर में लोगों का मार्गदर्शन कर रहा 'दिनकर वाटिका', छावनी कोठी में रहते थे

Ramdhari Singh Dinkar Birth anniversary 1964 से 1965 तक रहे थे तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति।19 साल बाद कुलपति के निर्देश पर हुआ जीर्णोद्धार। भागलपुर के उनका काफी पुराना और समृद्ध रिश्‍ता रहा है। यहां द‍िनकर वाटिका भी है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Thu, 23 Sep 2021 08:47 AM (IST)Updated: Thu, 23 Sep 2021 08:47 AM (IST)
Ramdhari Singh Dinkar Birth anniversary: भागलपुर में लोगों का मार्गदर्शन कर रहा 'दिनकर वाटिका', छावनी कोठी में रहते थे
भागलपुर में बने हुए कुलपति की नामिका सूची बोर्ड।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। Ramdhari Singh Dinkar Birth anniversary: तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के छठे कुलपति राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' हुए। वे 10 जनवरी 1964 से तीन मई 1965 तक टीएमबीयू में कुलपति के पद पर रहे थे। छोटे कार्यकाल के बाद भी राष्ट्रकवि का भागलपुर से गहरा लगाव था। वे गोलाघाट स्थित छावनी कोठी में रहते थे। जहां की हालत खस्ता है। अब भी दिनकर की कई यादें वहां हैं, जो अब भी सम्मान ढूंढ रही हैं।

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हालांकि कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने दिनकर परिसर स्थित उनकी आदमकद प्रतिमा का जीर्णोद्धार कराया। प्रतिमा स्थल को 'दिनकर वाटिका' के रूप में विकसित कराया। जहां कई पेड़-पौंधों के अलावा फूल लगाए गए हैं। जीर्णोद्धार के बाद कुलपति ने वाटिका का उद्घाटन किया। उनकी प्रतिमा परीक्षा भवन की तरफ मुड़ी हुई थी। जिसे ङ्क्षहदी विभाग की तरफ मोड़ा गया। 23 सितंबर 2001 को तत्कालीन कुलाधिपति विनोद चंद्र पांडेय ने इसका अनावरण किया था। यह तत्कालीन कुलपति रामाश्रय यादव की पहल पर संभव हो सका था। अब यह प्रतिमा और उसका परिसर 19 साल बाद सही दशा में है।

पद्मश्री रामजी सिंह ने किया सपना साकार

दिनकर एक कुशल प्रशासक थे। इस कारण टीएमबीयू की स्थिति को बदलना चाहते थे। उन्होंने गांधी विचार विभाग एवं नेहरू अध्ययन केंद्र स्थापित करने का प्रयास किया था, लेकिन उनके समय में ये कार्य पूरा नहीं हो सका। पद्मश्री डा. रामजी सि‍ंंह  ने गांधी विचार विभाग को स्थापित कर उनकी योजना को साकार किया था, लेकिन आज तक नेहरू अध्ययन केंद्र की स्थापना नहीं हो सकी है।

मानविकी के डीन प्रो. बहादूर मिश्रा ने कहा कि जब वे गरीबी से जूझ रहे थे, तभी पंडित जवाहर लाल नेहरू उनकी मदद को आगे आए थे। कांग्रेस के टिकट पर वे राज्यसभा सदस्य बने। तभी उन्होंने कुलपति का पद छोड़ दिया। डॉ. मिश्रा ने बताया कि वे शांति और क्रांति के पर्याय थे। हिंदी साहित्य में न सिर्फ वीर रस के काव्य को एक नई ऊंचाई दी, बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना की भी अलख जगाई।


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