अजगरों को भाने लगा कोसी का किनारा, नेपाल के जंगलों से कोसी के रास्ते पहुंच रहे अजगर
अजगरों को कोसी का किनारा भाने लगा है। नेपाल के जंगल से कोसी नदी के रास्ते अजगर सुपौल में कोसी के कछार तक पहुंच रहे हैं। 2008 के बाद इस इलाके में अजगरों की संख्या बढ़ने लगी है।
संस, करजाईन बाजार (सुपौल)। नेपाल के जंगलों से भटक कर पहुंचे जंगली जीव-जंतु कोसी तटबंध के किनारे बसे गांवों के लोगों के लिए आफत बनते जा रहे हैं। जंगली हाथी एवं अन्य जानवर के कहर से त्रस्त इस इलाके के लोग अब अजगर के खौफ से भी भयभीत हैं। दरअसल 2008 में कुसहा त्रासदी के बाद कोसी के किनारे वाले इलाके में अजगरों ने बसेरा बना लिया है।
अब तो हालत यह है कि इन क्षेत्रों में अक्सर अजगर दिखाई देते हैं। नेपाल सीमा से सटे भीमनगर, भगवानपुर, बायसी आदि स्थानों पर अजगर देखे गए हैं जिन्हें वन विभाग को सौंप दिया गया है। नेपाल सीमा से सटे गांव में लोगों के खेत से लेकर घरों में अजगर देखने को मिले हैं। हालांकि अभी तक कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है लेकिन हाल के कुछ वर्षों से अजगरों के मिलने से ऐसा लगने लगा है कि कोसी का किनारा अजगरों को भाने लगा है।
डरे रहते हैं लोग
सीमावर्ती क्षेत्र के ग्रामीणों ने बताया कि अजगर नेपाल के जंगलों के अलावा इस क्षेत्र से होकर निकलनेवाली कोसी नदी में बहकर भी आते हैं। नेपाल सीमा से लगे गांवों के लोगों ने बताया कि इस क्षेत्र में अगर कहीं भी अजगर दिखाई देता है तो इसकी सूचना वन विभाग को दी जाती है। वन विभाग की टीम उसे पकड़कर पटना भेज देते हैं या जंगल में छोड़ देते हैं।
जंगल में अजगर को छोडऩे के बाद वे फिर से कुछ दिनों में आ जाते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि अजगर के चलते क्षेत्र के लोग काफी डरे-सहमे रहते हैं। हाल ही सरायगढ़ प्रखंड क्षेत्र में एक घायल अजगर मिला था जिसकी जानकारी वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री नीरज कुमार ङ्क्षसह को मिली तो उन्होंने घायल अजगर को देखने के बाद उसके इलाज करवाने का निर्देश वन विभाग के अधिकारियों को दिया था।
जैव विविधता की ²ष्टिकोण से है अच्छा
वन प्रमंडल पदाधिकारी सुनील कुमार शरण के अनुसार जैव विविधता के ²ष्टिकोण से अजगर का पाया जाना अच्छा है। वन्य प्राणी विशेषज्ञों से उनके यहां पाए जाने के कारणों की तलाश की जाएगी।