गाजर घास के कारण गुड मार्निंग बन रहा बैड मार्निंग
मुंगेरियों का गुड मार्निंग बैड मार्निंग में तब्दील हो रहा है।
मुंगेर। गाजर घास के कारण मुंगेरियों का गुड मार्निंग बैड मार्निंग में तब्दील हो रहा है। लोग सुबह सुबह किला परिसर में शुद्ध और ताजी हवा लेने आते हैं। अनजाने मे लोग जहर रूपी हवा ले रहे हैं। किला परिसर में बड़े पैमाने पर गाजर घास उग आए हैं। जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। गाजर घास के कारण बड़ी संख्या में लोग तरह तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। गाजर घास का दुष्प्रभाव छोटे छोटे बच्चों पर अधिक पड़ता है। गाजर घास के संपर्क में आते ही बच्चे त्वचा रोग के शिकार हो जाते हैं। किला क्षेत्र में तीन तीन पार्क हैं। सभी पार्क गाजर घास की चपेट में है। सबसे बुरा हाल राजेंद्र पार्क का है। यहां मार्निंग वाक करने वाले भी नहीं जानते हैं कि वे जाने आनजाने बीमारियों को आमंत्रण दे रहे हैं।
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क्या है गाजर घास
खतरनाक गाजर घास का वैज्ञानिक नाम पारथेनियम हिस्ट्रोफोरस है। इसको कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। जैसे काग्रेंस घास, सफेद टोपी, छंतक चांदनी आदि 7 भारत में इसका प्रवेश 1955 में अमेरिका व कनाडा से आयातित गेंहूं के साथ हुआ है। आज यह भारत वर्ष में लाखों हैक्टेयर भूमि पर फैल चुका है। यह घास मुख्यत: खेतों में बहुतायात में पाया जाता है। खेत खलिहानों के बाद अब आबादी वाले क्षेत्र में भी गाजर घास उग आए हैं।
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बोले चिकित्सक
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ सुभाष चंद्रा ने कहा कि पार्थेनियम के कारण मनुष्य में चर्म रोग हो जाते हैं। इसके कारण गर्दन, चेहरे और बांहों की चमड़ी सख्त होकर फट जाती है, उसमें घाव भी बन जाते हैं। पौधों के संपर्क में आने से खाज, खुजली पैदा होती है। इसके फूल, बीज और पौधे पर मौजूद रोएं से दमा, रिन्ही टायटीश और हेफीवर जैसी बीमारियां पैदा होती हैं। यह मनुष्य के नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर उसे डिप्रेशन का शिकार भी बना लेता है ।बच्चों को इसके संपर्क से दूर ही रखा जाना चाहिए ।बच्चों को जल्दी अपने कब्जे मे ले लेता है गाजर घास ।
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बोले कुलपति
घास की पहचान और इससे नुकसान
इस संबंध मे मुंगेर विषविद्यालय के कुलपति प्रो रंजीत वर्मा ने कहा कि गाजर घास एक शाकीय पौधा है। इस पौधे की लंबाई 1.0 से 1.5 मीटर तक हो सकती है। इसकी पत्तियां गाजर की पत्तियों की तरह होती हैं। गाजरघास का प्रत्येक पौधा लगभग 1500 से 2500 बीज पैदा करता है। इसके बीज हल्के होने के कारण यह दूर तक फैल सकता है। गाजरघास एक विनाशकारी घास है। गाजरघास फसलों के अलावा मनुष्यों व पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या है। इस खरपतवार के सम्पर्क में आने से डरमेटाइटिस, एग्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा व नजला जैसी घातक बीमारियां हो सकती है।
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गाजर घास की रोकथाम:-
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक मुकेश कुमार ने कहा की सामूहिक तौर पर अगर हम इकट्ठे होकर पार्को और कालानियों को साफ रख कर इसे उगने से रोक सकते हैं। खरपतवारों के प्रवेश एवं उनके फैलाव को रोकने को लेकर सख्त कानून भी बनाए गए हैं। उनका सख्ती से पालन करना चाहिए। गाजर घास में फूल आने से पहले उखाड़ कर जला देना चाहिए। ताकि इसके बीज न बन पाए व न ही फैल पाए। इसको उखाड़ते समय दस्तानों व सुरक्षात्मक कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए। गाजर घास के ऊपर 20 प्रतिशत साधारण नमक का घोल बनाकर छिड़काव करें, तो यह नष्ट हो जाता है। ग्लाईफोसेट, 2,4-डी, मेट्रीब्युजिन, एट्राजीन, सिमेजिन, एलाक्लोर व डाइयूरान आदि का प्रयोग कर गाजर घास को फैलने से रोका जा सकता है। मैक्सिकन बीटल कीट ( जाइगोग्रामा बाईकोलोराटा ) जो इस खरपतवार को बहुत मजे से खाता है, उसे इसके ऊपर छोड़ देना चाहिए। इस कीट के लार्वा और वयस्क पत्तियों को चटकर गाजर घास को सुखाकर मार देते हैं7