शहरनामा : यह रोग पुराना है... भरोसा तो करो भाई Bhagalpur News
शहर में आजकल कई विषयों पर चर्चा हो रही है। गर्मी शुरू होते ही बिजली संकट। वहीं एक प्रमुख राजनीति पार्टियों के इकाई गठन का मामला भी चर्चा में है। स्मार्ट सिटी तो है ही।
भागलपुर [संजय कुमार सिंह]। गर्मी ठीक से आई नहीं कि बिजली जाने लगी। बिजली का यह रोग पुराना है। उसे जरा भी फिक्र नहीं कि सामने वाला निजी है या सरकारी। पहले निजी वाले चला रहे थे, तब भी मुंह चुराती थी। अब तो खुलेआम धोखा दे जाती है। शहरवासी करे तो क्या करे। दिन शुरू हुआ नहीं कि मन खट्टा हो गया। इधर ऑफिस जाने की तैयारी, उधर बत्ती गुल। पानी पर भी आफत। घर बैठी महिलाओं का ‘सास-बहू’ से भी सामना नहीं हो पाता। कोसने में ही बीत जाता है दिन। बिल लेने में आगे, सुविधा देने में पीछे। इधर, अफसर बड़ी मासूमियत से कह देते हैं, बिजली काट कहां रहे, वह तो अपने आप कट जा रही! व्यवस्था को आखिर ठीक कौन कराएगा। माननीय से लेकर आलाधिकारी तक, सब इस लचर व्यवस्था को जान रहे हैं। बार-बार चेतावनी भी देते हैं। मजाल क्या कि विभाग के अधिकारी हरकत में आ जाएं।
भरोसा तो करो भाई
जिलाध्यक्ष बनने के ढाई महीने बाद नेताजी ने अपनी जिला इकाई की घोषणा की। इस बार पुराने चेहरे तो रखे लेकिन कुछ के पर कतर दिए। कल तक जो करीब हुआ करते थे, अब उन पर भरोसा नहीं रहा। उन्होंने महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष की भी छुट्टी कर दी। इतना ही नहीं जो उनकी विरोधी थीं, कमान उसके हवाले कर दी। कल तक जो मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, उन्हें भी किनारे कर दिया। उनके विकल्प में चार नए चेहरों को खड़ा कर दिए। नई कमेटी बनने के बाद पार्टी के भीतर खलबली मच गई। हंगामा होने के आसार बढ़ गए। कुछ होता इसके पहले ही नेताजी ने कहना शुरू कर दिया कि प्रदेश नेताओं के अवलोकन के बाद ही सब हुआ है। नेताजी ने एक और दिमाग लगाया कि यदि कोई ज्यादा विरोध करेगा तो कुछ अन्य को संगठन में शामिल कर उसकी जुबान बंद कर देंगे। यही नहीं उन्होंने पदाधिकारी के एक पद खाली छोड़ा है और चार अन्य पदों को प्रदेश की अनुमति से बढ़ाने की बात कहकर फिलहाल विरोधियों का जुबान बंद कर दिया है।
साहब की भी सुन लो
अभी कुछ दिन पहले जिले के बड़के साहब ने अपने वातानुकूलित कमरे में बैठक की। गुस्से में बोले, अब एक भी टेंपो चौराहे पर खड़ी नहीं होगी। बैठक में मौजूद सभी मातहतों ने सिर हिलाकर सहमती दी। बात कमरे से निकली। चारों तरफ फैल गई। लोगों को लगा अब चौराहे पर एक सवारी.. एक सवारी.. चिल्लाने वाले नहीं मिलेंगे। मुट्ठी भर गाड़ियों की वजह से जाम का झाम नहीं होगा। साहब के फरमान वाली तारीख नजदीक आकर बीत भी गई। पर नतीजा, ढाक के तीन पात। साहब का फरमान भी हवा में। मजेदार तो यह कि साहब ने जिस चौराहे के लिए आदेश दिया था उसी होकर वे रोज घर से दफ्तर के लिए आते-जाते हैं। अब साहब को नहीं दिखता कि उनके आदेश को मातहत किस तरह से चिंदी-चिंदी कर रहे हैं। टेंपो वाले आज भी रोज सुबह से लेकर रात तक एक सवारी.. एक सवारी.. चिल्लाते रहते हैं।
आखिर कब टूटेगा लाल निशान
शहर को सुंदर बनाने के लिए कुछ माह पहले कवायद शुरू हुई थी। सारी कवायद क्यों सुस्त पड़ गई पता नहीं। बड़के साहब ने खाकी वालों से पता लगवाया था कि लोगों ने कहां-कहां पर अतिक्रमण किया है। कहां-कहां अवैध तरीके से भवनों का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है। खाकी वालों ने बड़े उत्साह से इलाके की रिपोर्ट बनाई और बड़के साहब को सौंप दी। इसके बाद कई जगह लाल निशान भी लगाए गए। यह मान लिया गया कि अब सरकारी बुलडोजर आएगा और अवैध निर्माण ध्वस्त करेगा, लेकिन सब धरा रह गया। लाल निशान धुंधले पड़ गए। खाकी वालों की रिपोर्ट पर भी धूल की परत चढ़ गई। बुलडोजर तो दूर, लाल निशान लगाने वाले भी झांकने नहीं गए कि उनके निशान दिख रहे हैं या नहीं। सरकारी कवायद के बाद यह साफ है कि अतिक्रमण कर लो, निशान लग जाए तो भी चिंता करने की बात नहीं।