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वाहनों के साथ प्रदूषण भी हुआ 'अनलॉक'

कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन का प्रभाव प्रदूषण पर भी पड़ा है। अब अनलॉक में प्रदूषण का स्तर बढ़ने लग है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 08:43 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jun 2020 01:03 AM (IST)
वाहनों के साथ प्रदूषण भी हुआ 'अनलॉक'
वाहनों के साथ प्रदूषण भी हुआ 'अनलॉक'

भागलपुर। कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन का प्रभाव प्रदूषण पर भी पड़ा है। जब पूरी तरह लॉकडाउन था तो प्रदूषण का स्तर कम था। अब अनलॉक-1 में प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी हुई है। कल-कारखानों के चालू होने और वाहनों के फर्राटा भरने का सीधा असर पर्यावरण पर दिखने लगा है।

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दरअसल, लॉकडाउन के पहले शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 170 से 200 माइक्रोग्राम प्रति मीटर था। लॉकडाउन के दौरान यह 90 के नीचे पहुंच गया था, लेकिन अनलॉक-1 के शुरू होते ही एक्यूआइ का स्तर सौ के पार पहुंच गया है। शुक्रवार को शहर में एक्यूआइ का स्तर 110 रहा। वहीं, पीएम 2.5 का स्तर 39 माइक्रोग्राम प्रति मीटर रहा। लॉकडाउन में जिस समय सख्ती थी और वाहनों का परिचालन कम हो रहा था, प्रदूषण का स्तर संतोषजनक था। अमूमन जब एक्यूआइ 50 से 100 के बीच रहे तो संतोषजनक और 100 से 150 के बीच रहे तो थोड़ा प्रदूषित माना जाता है।

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के जनसंपर्क पदाधिकारी वीरेंद्र कुमार के अनुसार गैरजरूरी गतिविधियों के बंद रहने के कारण वायु प्रदूषण की स्थिति में सुधार हुआ है। उन्होंने बताया कि 22 मार्च से 30 मई की अवधि के बीच आबोहवा में सबसे ज्यादा सुधार दिखा है। इसका असर मौसम पर भी पड़ा है। जनवरी एवं फरवरी में प्रदूषण का स्तर ज्यादा था। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के प्रमुख स्त्रोतों में बॉयोमास, जीवाश्म इंधन के जलने, ईंट भट्ठे, पावर प्लाट, निर्माण गतिविधियों, डीजी सेट, परिवहन आदि हैं। नियम-कायदे का पालन करने पर प्रदूषण का स्तर नियंत्रित रहेगा।

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फिजा बदली तो यहीं रुक गए प्रवासी पक्षी

पिछले कई वर्षो से शहरवासियों के साथ जीव-जंतुओं को भी ऐसी स्वच्छ हवा नहीं मिली थी। कल-कारखाने और मानवीय क्रियाकलापों के बंद होने से गंगा का पानी भी साफ हुआ। इसका सकारात्मक असर वाइल्ड लाइफ पर पड़ा है। गंगा में डॉल्फिन पुल घाट के पास भी अठखेलियां करती नजर आ रही हैं। कई प्रवासी पक्षी जो मार्च में हर साल लौट जाते थे, इस बार यहीं रुक गए हैं।

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क्या होता है एयर क्वॉलिटी इंडेक्स

एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) का प्रयोग सरकारी एजेंसियों द्वारा हवा में प्रदूषण की मात्रा मापने के लिए किया जाता है। एक्यूआइ बढ़ने से सास संबंधी बीमारिया बढ़ने लगती हैं। भारत में 17 सितंबर 2014 को इसकी शुरुआत हुई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ मिलकर नेशनल एयर मानीटरिग प्रोग्राम बनाता है। प्रोग्राम के तहत कुल 240 शहरों के 342 स्टेशन के लिए हवा में प्रदूषण स्तर की जांच की जाती है। एक्यूआइ के हिसाब से हवा को छह कैटिगरीज में बाटा गया है। इनमें अच्छा, संतोषजनक, सामान्य, खराब, बहुत खराब और खतरनाक शामिल हैं।

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पीएम 2.5 और पीएम 10

हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों को पíटकुलेट मैटर (पीएम) या प्रदूषण कण भी कहा जाता है। ये वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण होते हैं। इन्हें पीएम 2.5 और पीएम 10 का नाम दिया गया है। पीएम 10 का सामान्य स्तर 100 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर और पीएम 2.5 का स्तर 60 माइक्रो ग्राम क्यूलबिक मीटर होना चाहिए। पीएम 2.5 वायुमंडलीय कण पदार्थ को संदíभत करता है जिसमें 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास होता है। यह मानव बाल के व्यास के लगभग तीन फीसद है। पीएम 10 वे कण हैं जिनका व्यास 10 माइक्रोमेटर होता है। इन्हें फाइन पार्टिकल्स या रेस्पायरेबल पíटकुलेट मैटर भी कहा जाता है।


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