पलायन में ही कट रही जिंदगी, कभी कटाव कभी कोरोना
लॉकडाउन के बाद दिल्ली मुंबई आदि महानगरों से कहने को तो घर लौटकर आए हैं पर घर यहां भी नहीं है। दियारा क्षेत्र के उन सैकड़ों लोगों का जिन्हें एक निश्चित ठिकाने की आज भी तलाश है।
भागलपुर [दीपनारायण सिंह दीपक]। कटाव हो या कोरोना का दंश, ठौर न कल था, न आज है। जिंदगी पलायन में ही कट रही है। लॉकडाउन के बाद दिल्ली, मुंबई आदि महानगरों से कहने को तो घर लौटकर आए हैं, पर घर यहां भी नहीं है। यह दर्द है भागलपुर के दियारा क्षेत्र के उन सैकड़ों लोगों का, जिन्हें एक निश्चित ठिकाने की आज भी तलाश है। गंगा और कोसी के कटाव ने कइयों का आशियाना उजाड़ दिया तो वे पलायन को विवश हुए। महानगरों में दो वक्त की रोटी मिल जा रही थी कि कोरोना की नजर लग गई। यहां से पलायन कर गए थे, अब वहां से पलायन करना पड़ा।
गांव तो आए हैं, पर रहने लायक भी अपनी जमीन नहीं कि तंबू ही तान लें। सो, दूसरों की जमीन पर गुजर-बसर या पॉलीथिन टांगकर रह रहे हैं। नवगछिया अनुमंडल की खैरपुर, चोरहर और भवनपुरा पंचायतों के दर्जनों गांवों के प्रवासी परिवारों की यही हालत है। 1990 से 2008 तक गंगा और कोसी ने इन परिवारों की 400 एकड़ से अधिक उपजाऊ जमीन लील ली। 2008 में 81 परिवारों को पुनर्वास का आश्वासन मिला था, आज भी इंतजार ही है। खैरपुर पंचायत के काजीकोरैया के 150 प्रवासी मजदूर 13 साल बाद लौटे हैं। गौतम सिंह, मनीष सिंह, अजब लाल सिंह, मिथिलेश यादव, कपिलदेव दास, अनिल मंडल, उमाकांत दास, विनोद शर्मा, रूपेश यादव, तपेश यादव, अशोक मंडल व प्रेम कुमार मंडल आदि बताते हैं कि जमीन खरीद कर मकान बना सकें, इसलिए पलायन किया था। सोचा था कि फिर से परिवार को गांव में बसा लेंगे। लेकिन लॉकडाउन में सारी जमा पूंजी खर्च हो गई। गांव लौटने पर इधर-उधर रह रहे हैं। बच्चों की पढ़ाई भी बंद हो गई है। अनिल मंडल खेतों में मजदूरी कर परिवार के लिए रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं। खैरपुर पंचायत में 300 लोग लौटे हैं। चंद्रशेखर बताते हैं कि वह बाहर मजदूरी करते हुए भी अपनी जमीन की मालगुजारी कटा रहे थे। कटाव ने किसान से मजदूर बना दिया।
घर लौटे प्रवासी, कोई ठौर नहीं
काजीकोरैया : 400
राघोपुर : 53
चोरहर : 25
भवनपुरा : 160 परिवार
पंचायतों में विस्थापितों की संख्या
बभनपुरा : 4500
लोकमान्यपुर : 2500
राघोपुर : 1450
काजी कोरैया : 3800
मैरचा : 700
कालूचक : 500
ढौंढिया : 2500
चोरहर : 1500