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भागलपुर में कोरोना मरीजों की मदद के लिए बढ़े हाथ, एक गुमनाम संस्थान ने 75 बाइपैप मशीनें कराई उपलब्ध

भागलपुर में कोरोना मरीजों की मदद के लिए लोग आगे आने लगे हैं। एक संस्‍था ने शनिवार को 75 बाइपैप मशीनें उपलब्‍ध कराई। इन मशीनों की कीमत करीब 75 लाख रुपये है। इससे कोरोना मरीजों के इलाज में काफी सहूलियत होगी।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sun, 23 May 2021 08:15 AM (IST)Updated: Sun, 23 May 2021 08:15 AM (IST)
भागलपुर में कोरोना मरीजों की मदद के लिए बढ़े हाथ, एक गुमनाम संस्थान ने 75 बाइपैप मशीनें कराई उपलब्ध
भागलपुर में कोरोना मरीजों की मदद के लिए लोग आगे आने लगे हैं।

 जागरण संवाददाता, भागलपुर। बिहार में बढ़ते कोरोना संक्रमण से हो रही मौतों और अस्पताल में ऑक्सीजन उपकरणों की कमी ने विदेशों में रह रहे भागलपुरवंशीयों को झकझोर दिया है। अस्पताल की लचर व्यवस्था से आहत भागलपुरवंशी मदद को आगे आने लगे हैं। शनिवार को एक संस्था ने जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल को 75 बाइपैप मशीन दान किया है। यह मशीन टूटती सांसों को संजीवनी देने के लिए जाना जाता है। प्रत्येक मशीन की कीमत एक लाख रुपये के आसपास है। यानी 75 लाख रुपये के करीब की मशीनें दान की गई हंै। सभी मशीनें शनिवार को अस्पताल पहुंच चुकी हैं। इन मशीनों को अधीक्षक कार्यालय में रखा गया है। मशीनों की जांच करने के बाद इसे जरूरत के अनुसार कोरोना मरीजों को दिए जाएंगे।

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तीसरी लहर के लिए होगा सुरक्षा कवच

कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले को देखते हुए सरकार ने जेएलएनएमसीएच को डेडिकेटेड कोविड सेंटर बना दिया है। यहां पर केवल कोरोना मरीजों का इलाज किया जा रहा है। लेकिन, यहां पर भी ऑक्सीजन उपकरणों की भारी कमी है। ऐसे में अस्पताल को 75 बाइपैप मशीनें मिलना बड़ी राहत की बात है। खास कर यह कोरोना की तीसरी लहर के लिए सुरक्षा कवच साबित होगा।

क्या है बाईपैप मशीन

सांस लेने में जब दिक्कत होने पर बाईपैप मशीन का उपयोग किया जाता है। यह मशीन उन मरीजों के लिए इस्तेमाल में लाई जाती है जिन्हेंं वेंटिलेटर की जरूरत नहीं है, लेकिन सांस लेने में तकलीफ है। इसका उपयोग हॉस्पिटल के साथ-साथ घर में भी उपयोग कर सकते हैं।

इस तरह किया जाता है इस्तेमाल

बाईपैप का काम वेंटिलेटर की तरह ही होता है। जो मरीज खुद सांस नहीं खींच पा रहे हैं सा जिनका फेंफड़ा सही से काम नहीं करता है, उनके लिए यह मशीन बहुत ही मददगार साबित होती है। यह मशीन ज्यादा प्रेशर के साथ ऑक्सीजन को फेफड़े के अंदर धकेलती है। इससे मरीज अगर सांस न भी ले पाए तो उसे बराबर ऑक्सीजन मिलती रहती है। यह मशीन सांस नली को फैला कर रखती है। इससे फेफड़े पर कम दबाव पड़ता है। 


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