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'सुनना तो पड़ेगा ही फ्री में अंटी नहीं करेंगे ढीली'

इंतजार तो करना पड़ेगा। फ्री में थोड़े ही लाए हैं। अपनी अंटी ढीली की है तो सुनना तो पड़ेगा ही। अपने करियर का सवाल है भाई। लोगों ने मर्म को समझा। बोले ठीक है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 03:08 PM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 03:08 PM (IST)
'सुनना तो पड़ेगा ही फ्री में अंटी नहीं करेंगे ढीली'
'सुनना तो पड़ेगा ही फ्री में अंटी नहीं करेंगे ढीली'

भागलपुर [संजय कुमार]। श्याम सुंदर भैया तो फंस गए थे। बेचारे सोचे थे, नेताजी का भाषण सुनेंगे और फिर घर निकल लेंगे। कुछ जेब भी मोटी कर लेंगे। उसी लालच में गांव के कुछ लोगों को बटोर लाएं। खैर, पहुंच गए भाषण स्थल। गाड़ी से नीचे उतरना मुश्किल। इंद्र देवता उनका रास्ता जो रोके खड़े थे। एक बारगी उन्हें लगा चलों अच्छा हुआ। गले के नीचे न उतरने वाला भाषण सुनने से बच गए। समय बीता। श्याम सुंदर भैया से उनके साथ आए लोगों ने कहना शुरू कर दिया। भैया जितने टाइम के लिए हम लोग आए थे वो तो समय बीत गया।

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चलों बिना मेहनत के ही कुछ फायदा हो गया। खालिस भाषण सुन कर पेट थोड़े ही भरता। बात रंगीन कागज के टुकड़े न होती तो फ्री में क्यों आते। अभी संवाद चल ही रहा था। तभी एक लकलक सफेद कुर्ता और बंडी पहने नेता जी बस में चढ़े। क्या चल रहा है। नेता का भाषण होगा। थोड़ा इंतजार करना होगा। नेता जी के मुंह से यह निकला ही था। इंद्र देवता को फिर गुस्सा आ गया। और जमकर बरसने लगे। इंतजार तो करना पड़ेगा। फ्री में थोड़े ही लाए हैं। अपनी अंटी ढीली की है तो सुनना तो पड़ेगा ही। अपने करियर का सवाल है भाई। लोगों ने मर्म को समझा। बोले ठीक है। सुबह से शाम होने को आई। बैठे-बैठे मन रिरिया गया। कुछ देर बाद अचानक शोर होने लगा। चलो चलो मैदान में चलो। नेताजी मंच पर पहुंच गए है। यदि उनको नहीं सुना तो सब बेकार। किसी तरह सभी मन मसोस कर गए और सुना। नेताजी के पास कुछ विशेष नहीं था बोलने के लिए। सो पुराना ही रिकार्ड बजाकर चले गए।

बात यहीं खत्म नहीं होती है। एक नेताजी वालों की पार्टी ने भी जलसे का आयोजन किया था। वहां पर गांव देहात से नहीं बल्कि छात्रों को फंसा कर लाया गया था। वो भी इसलिए बड़के-बड़के टाइप के नेताजी आएंगे। ज्ञान और रोजगार की नदी बहाकर जाएंगे। बेचारे छात्र इसी लालच में किसी तरह पहुंच गए। काफी देर तक वे इधर-उधर के नेताजी लोगों की सुनते रहे तो उनके सब्र का बांध भी टूटने लगा। उन्हें लगने लगा कि वे ठगे गए है। कहीं कोई नहीं आएगा। बात बिगड़ती इससे पहले दो बड़के टाइप नेताजी पर्दे पर प्रकट हुए। फिर पर्दे पर से ही विचार को प्रवाहित किए और चुपचाप गायब हो गए।

घंटों इंतजार के बाद बेचारे छात्रों को क्या मिला। बस आश्वासन की टिकिया। जिस उम्मीद में गए थे उनके करियर की बात होगी। पर बात तो वहां उनके आने वाली पीढ़ी की होने लगी। बहरहाल, कुल मिलाकर नेताजी तो सफल गए और जनता फिर ठगी रह गई। नेताजी आए भी नहीं सुर्खिया बटोर को लेकर गए। जनता को मिला सड़क पर फैला कीचड़ और सड़क किनारे पड़े कूड़े के ढेर की बदबू। नागरिक को समझ आ गया सचमुच जनता भोली है।


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