पान के साथ अब पपीता का 'हब' बन रहा गढ़मोहनी गांव
एक एकड़ पपीते की खेती में 60 से 70 हजार रुपये खर्च आते हैं।
खगड़िया(अमित झा): जिले का गढ़मोहनी गांव आधुनिक खेती को लेकर विख्यात हो रहा है। यहां के किसान परंपरागत खेती को छोड़ व्यवसायिक खेती की ओर उन्मुख हो रहे हैं। गढ़मोहनी में पान की खेती से समृद्धि आई है। अब वहां उन्नत किस्म के पपीते की खेती चार चांद लगा रहा है। यहां के किसानों को पपीते की खेती की ओर उन्मुख करने वाले और उनसे गहरे जुड़े उद्यान वैज्ञानिक (कृषि विज्ञान केंद्र, खगड़िया) रंजीत प्रताप पंडित कहते हैं- क्षेत्रफल की ²ष्टि से यह देश का पांचवां लोकप्रिय फल है। यह बारहों महीना होता है। पहले लोग शौकिया दो-चार पौधे लगाते थे, परंतु अब इसकी खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ा है। खगड़िया के किसान भी इस ओर जागरूक हुए हैं। खासकर गढ़मोहनी गांव पपीता की खेती का 'हब' बनते जा रहा है। उत्तरी जमालपुर पंचायत का यह गांव पपीता की खेती में उन्नति की नई मिसाल पेश कर रहा है। यहां न सिर्फ व्यापक पैमाने पर पपीते की खेती हो रही है, बल्कि उसकी नर्सरी भी संचालित हो रही है। वहां से उसके तैयार पौधे आसपास के जिले में भी भेजे जाते हैं। गढ़मोहनी में 15 एकड़ में हो रही है पपीते की खेती गढ़मोहनी में फिलहाल 15 एकड़ में पपीते की खेती हो रही है। खासकर रेडलेडी वैरायटी की खेती यहां की जाती है। किसान बाहर से बीज मंगाकर खुद की नर्सरी में पौधे तैयार कर लगाते हैं। पीपते की खेती से जुड़े धीरज कुमार की माने तो एक एकड़ पपीते की खेती में 60 से 70 हजार रुपये खर्च आते हैं, समय ठीक रहा तो आमदनी चार लाख तक हो जाती है। गढ़मोहनी के किसान नरेश प्रसाद निराला, रंजीत प्रसाद, सुनील कुमार आदि ने बताया कि पहले यह गांव पान की खेती को लेकर विख्यात था, लेकिन अब पपीते से भी पहचान बनी है। मालूम हो कि पपीता की फसल 12 से 14 माह में तैयार हो जाती है।
पपीते के गुण
पपीता में विटामीन ए और सी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। वहीं इसमें पपेन नामक एंजाइम पाया जाता है, जो शरीर की अतिरिक्त चर्बी को हटाने में सहायक होता है। वहीं पपीता का फल कच्चे और पक्के दोनों रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।
कोट
'पपीता की खेती की ओर किसान अब उन्मुख होने लगे हैं। गढ़मोहनी गांव में इसकी अच्छी खेती हो रही है। पपीता की खेती से किसान अच्छी आय हासिल कर रहे हैं।'
- रंजीत प्रताप पंडित, उद्यान वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, खगड़िया।