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पद्म विभूषण 2022: बनारस में रहकर भी राधेश्याम खेमका ने मुंगेर से नहीं तोड़ा कभी नाता, बनवाए पनशाला और मंदिर

पद्म विभूषण 2022 हर मुंगेरी के दिलों में बसते हैं राधेश्याम खेमका। पेयजल की थी किल्लत तो पहला पनशाला का कराया था निर्माण। तीन मंदिर बनाए पौत्र कृष्ण कुमार वाराणसी से आकर करते हैं देखरेख। 934 में मुंगेर में आए भूकंप के एक वर्ष बाद 1935 में राजस्थान से आए।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 11:28 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 11:28 PM (IST)
पद्म विभूषण 2022:  बनारस में रहकर भी राधेश्याम खेमका ने मुंगेर से नहीं तोड़ा कभी नाता, बनवाए पनशाला और मंदिर
राधेश्याम खेमका को मरणोपरांत मिलेगा पद्मविभूषण सम्‍मान।

जागरण संवाददाता, मुंगेर। दिवंगत राधेश्याम खेमका हर मुंगेरी के दिलों में बसते हैं। इन्होंने जो मुंगेर के लोगों के लिए काम किया वह आज भी उदाहरण है। भले वह 36 वर्ष पहले 1986 में मुंगेर छोड़ दिया, पर इनकी यादें आज भी यहां से जुड़ी है। कपड़े के बड़े व्यापारी रह चुके राधेश्याम खेमका की ख्याति मुंगेर ही नहीं कई जिलों तक थी।

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इनके कुशल व्यवहार और व्यक्तित्व का हर कोई आज भी मुरीद है। यहां के लोग जब पीने के लिए मोहताज थे तभी स्व. राधेश्याम खेमका ने शहर के पटेल चौक पर पहला पनशाला बनवाया। इतना ही नहीं तीन अलग-अलग जगहों पर राम-सीता, राधा-कृष्ण, भोले शंकर और बजरंगबली का मंदिर बनवाया। आज लोग इनकी मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं, जिले के बड़े सख्सियत रहे स्व. राधेश्याम खेमका को पद्म विभूषण अवार्ड मिलने से मुंगेर के हर कोई काफी खुश हैं।

उन्होंने गीताप्रेस के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। मृदुल वाणी के लिए प्रसिद्ध राधेश्याम खेमका के पिता सीताराम खेमका यहां राजस्थान से पहुंचे थे। आजाद चौक में इनका आवास है। भले ही इनका परिवार यहां नहीं है, लेकिन रिश्तेदार आज भी यहां है। पौत्र कृष्ण कुमार मंदिर और संपत्ति की देखरेख के लिए बराबर आते हैं। दिवंगत राधेश्याम खेमका को जानने वाले और खास रिश्तेदार वैध आनंद शर्मा, बजरंग शर्मा, सुशील खेमका, प्रकाश खेमका, तप्पू खेतान ने बताया कि उन्हें पद्म विभूषण अवार्ड मिलना जिले के लिए गर्व की बात है।

वैध आनंद शर्मा ने बताया कि जब भी यहां सामाजिक कार्यक्रम में हमेशा सहयोग राशि देकर राधेश्याम खेमका मदद करते रहे हैं। 1934 में मुंगेर में आए प्रलयंकारी भूकंप के एक वर्ष बाद 1935 में इनके पिता स्व. सीताराम खेमका मुंगेर आए थे। यहां वह तुलसी का माला और गीता प्रेस की पुस्तकें बेचते थे। जाने-माने साहित्यकार और पत्रकार भी रह चुके हैं। गीताप्रेस को उन्‍होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया था। 


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