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तीन जनवरी, मिथिला के इतिहास का काला दिन, इसी तिथि को 1975 में समस्तीपुर में बम बिस्फोट में चली गई थी ललित बाबू की जान

1975 में इसी तिथि को समस्तीपुर में बम बिस्फोट में चली गई थी ललित बाबू की जान। वे समस्‍तीपुर में एक सभा को कर रहे थे संबोधित। उसी समय हुआ था बम विस्‍फोट। अपनी जन्मभूमि व कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान के लिए किया तन्मयता से कर रहे थे प्रयास

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Published: Sat, 02 Jan 2021 04:26 PM (IST)Updated: Sun, 03 Jan 2021 07:17 AM (IST)
तीन जनवरी, मिथिला के इतिहास का काला दिन, इसी तिथि को 1975 में समस्तीपुर में बम बिस्फोट में चली गई थी ललित बाबू की जान
1963-64 में इनकी पहल पर मैथिली हुई साहित्य अकादमी में भारतीय भाषाओं की सूची में शामिल

सुपौल, भरत कुमार झा । तीन जनवरी 1975 का दिन मिथिलावासियों के लिए काले इतिहास का दिन है। इसी सुबह मिथिला के सपूत ललित नारायण मिश्र को ईश्वर ने मिथिलावासियों से छीन लिया था। समस्तीपुर स्टेशन परिसर में ही आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान हुए बम विस्फोट में उनकी जान चली गई। इस घटना से पूरा मिथिलांचल स्तब्ध रह गया था। सूचना तंत्र के विकसित नहीं रहने और संसाधनों की कमी के बावजूद उनके अंतिम दर्शन को लोग उमड़ पड़े थे। ऐसा लग रहा था जैसे पूरी मिथिला पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। मिथिला ही नहीं संपूर्ण बिहार की प्रगति को ले वे ङ्क्षचतित रहते थे। समस्तीपुर में उन्होंने अपने अंतिम संबोधन में कहा कि- मैं रहूं या न रहूं बिहार बढ़कर रहेगा। उनके यह कहने के कुछ देर बाद बम धमाका हुआ और सच हो गई साकिब लखनबी की यह पंक्ति कि बहुत गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्हीं सो गए दास्तां कहते-कहते...।

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पश्चिमी नहर निर्माण के लिए कराया भारत-नेपाल समझौता

मिथिला विभूति ललित नारायण मिश्र 1973 से 1975 तक भारत के रेलमंत्री थे। वे पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे। उन्होंने अपनी जन्मभूमि व कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया। विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोसी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया। उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई। मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक लेटरल रोड की मंजूरी कराई थी, जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी। रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेललाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेललाइन जैसी 36 रेल परियोजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता तथा विकासशीलता के ज्वलंत उदाहरण हैं। ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से अगाध प्रेम था। मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1963-64 में ललित बाबू की पहल पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मैथिली को साहित्य अकादमी में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया।

मिथिला में विकास के पर्यायवाची बने ललित बाबू

मिथिला में खासकर कोसी का यह सुदूर इलाका आवागमन के मामले में काफी पिछड़ा था। सुपौल तक रेल तो आती थी लेकिन उससे आगे के लोगों को काफी परेशानी होती थी। ललित बाबू जब रेलमंत्री बने तो रेलवे के मामले में उन्होंने इलाके का कायाकल्प कर दिया। सुपौल से आगे फारबिसगंज तक रेललाइन बिछा दी गई। लंबी दूरी की एक्सप्रेस गाड़ी सहित कई जोड़ी गाडिय़ां दौड़ा दी गई। कोसी के प्रकोप से विभक्त मिथिला को रेल की सुविधाओं से जोड़ दिया। उसी वक्त जानकी एक्सप्रेस नाम से गाड़ी चलाई गई जो मिथिला के इस छोर से उस छोर तक जाती थी। मिथिलांचल के अन्य क्षेत्रों को भी रेल से जोडऩे की उनकी परियोजना थी जिसका सर्वेक्षण कार्य भी पूरा कर लिया गया था। रेलवे ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी वे चाहते थे कि इलाके का विकास हो और वे हमेशा इसके लिए तत्पर रहे। अपने विलक्षण गुणों के कारण वे राजनीतिज्ञों के बीच भी काफी लोकप्रिय रहे। आज जब उनकी पुण्यतिथि है तो कृतज्ञ राज्य उनके पैतृक गांव जिले के बलुआ में राजकीय समारोह आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है।  


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