World Women's Day : खेत-खलिहानों से बातें करने लगीं बेटियां Bhagalpur news
BAU में 2010 तक छात्रओं की संख्या दो अंकों में भी नहीं हुआ करती थी। लेकिन 2015 से छात्राओं और महिला विज्ञानियों की बढ़ती संख्या इस क्षेत्र में अपनी धमक का अहसास कराती चली गई।
भागलपुर [संजय कुमार सिंह]। ज्यादा दिन नहीं हुए। दस साल के बदलाव की एक तस्वीर, जहां बेटियां भी खेत-खलिहान की भाषा पढ़ रही हैं। कृषि विज्ञान की दुनिया में भी मुस्तैदी से पांव जमा रहीं। भागलपुर (बिहार) के सबौर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय में 2010 तक छात्रओं की संख्या दो अंकों में भी नहीं हुआ करती थी। लेकिन 2015 से छात्रओं और महिला विज्ञानियों की बढ़ती संख्या इस क्षेत्र में अपनी धमक का अहसास कराती चली गई। बिहार सहित उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, हरियाणा आदि राज्यों की छात्रएं देश की वह तस्वीर भी हैं, जहां वे चूल्हा-चौका तक की गृहस्थी वाली सोच से बहुत आगे निकलकर कृषि क्षेत्र में नए-नए प्रयोग कर रहीं। पीएचडी में दस साल पहले नौ छात्र तो दस छात्रएं थीं। आज की तारीख में 14 शोध छात्र और 13 छात्रएं। यानी, बराबरी की टक्कर। पिछले तीन सालों में छात्रओं का रुझान इस क्षेत्र में लगातार बढ़ता रहा है। जहां गिनी-चुनी विज्ञानी होती थीं, आज उनकी संख्या 37 है।
कभी पांच, आज पचास फीसद
कृषि विज्ञानी ममता कुमारी और अनिता कुमारी कहती हैं, जब हम कॉलेज में पढ़ने आए थे तब पचास में पांच छात्रएं ही इस क्षेत्र में आती थीं। अब हर साल करीब-करीब पचास फीसद लड़कियां इस क्षेत्र में आ रही हैं। कई के परिवार में अच्छी-खासी जमीन है तो डिग्री हासिल करने के बाद वे खुद खेती में नए-नए प्रयोग करने में सक्षम होंगी।
देश को दी है सौगात
इन महिला विज्ञानियों को देश को कई सौगात भी दी है, जो किसानों की आय बढ़ाने में सक्षम हैं। डॉ. शरीन अहसन ने लहसुन तो डॉ. रूबी रानी ने लीची की वेरायटी सबौर लीची वन दी। डॉ. रफत सुल्ताना ने चना वन और बैंगन की नई वेरायटी दी। प्याज के संकट का रोना हर साल होता है तो डॉ. संगीता इसकी नई वेरायटी पर शोध कर रही हैं।
घर-परिवार की सोच बदली
फल विज्ञानी डॉ. रूबी रानी कहती हैं, कृषि संकाय में पूरे प्रदेश में सीमित सीटें हैं, जबकि जॉब की अपार संभावनाएं। कृषि क्षेत्र से जुड़े बैंक, पेस्टीसाइड और खाद-बीज तैयार करने वाली कंपनियों में बेहतर अवसर के साथ-साथ अकादमिक कॅरियर भी है। लड़कियों के साथ-साथ परिवार व समाज की सोच भी बदली है। यह बढ़ रही संख्या इसी कारण है।
कृषि क्षेत्र में हाल के वर्षो में छात्रओं का रुझान बहुत तेजी से बढ़ा है। यह देश के लिए शुभ संकेत है। वे पढ़ाई पूरी करने के बाद उच्च पदों पर भी आसीन हो रही हैं। नए-नए शोध कर रही हैं। - डॉ. अजय कुमार सिंह, कुलपति, कृषि विश्वविद्यालय, सबौर