... अब हरे चारे के लिए जमीन की जरूरत नहीं, जानिए... नई तकनीक, बीएयू कर रहा शोध Bhagalpur News
बिहार में इस तरह का अनुसंधान पहली बार हो रहा है। राज्य का अधिकांश भाग सूखा या बाढ़ से ग्रसित रहता है जबकि यहां 272 लाख पशु हैं। बीएयू इस दिशा में प्रयास कर रहा है।
भागलपुर [ललन तिवारी]। पशुओं के लिए चारे की खेती अब खेतों में नहीं, बल्कि बगैर मिट्टी वाली ट्रे में की जाएगी। इससे उन पशुपालकों को काफी लाभ होने की उम्मीद है, जिनके पास अपनी जमीन नहीं है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर द्वारा राज्य में पहली बार इस तरह का शोध किया जा रहा है। इसमें बगैर मिट्टी के जल संवर्द्धन विधि द्वारा उत्पादन किया जाएगा।
क्या है तकनीक
परियोजना के कृषि विज्ञानी डॉ. संजीव कुमार ने बताया कि इसे हाइड्रोपोनिक्स तकनीक कहते हैं। इस विधि से चारे की फसल उगाने के लिए कृत्रिम तापक्रम वाला शेड बनाया जाएगा। प्लास्टिक की ट्रे में करीब एक किलो अंकुरित बीज डालने पर एक सप्ताह में सात-आठ किलो हरा चारा मिल जाएगा। फसल की ऊंचाई एक फीट होगी।
पानी की भी बचत
फसल की जड़ें ट्रे में एक दूसरे से जुड़ी रहेंगी, जिससे पौधे खड़े रहेंगे। छोटे स्तर पर पांच-छह पशुओं के लिए प्रतिदिन दो से ढाई किलो चारे का उत्पादन किया जा सकता है। पहली ट्रे का चारा इस्तेमाल करते हैं, तब तक दूसरी ट्रे में फसल तैयार हो जाएगी। दूसरी ट्रे की फसल काटते वक्त पहले वाली ट्रे में फसल तैयार होने लगेगी। बड़े स्तर पर उत्पादन करना चाहें तो प्रतिदिन हजार किलो तक चारा मिल सकता है। सिंचाई जरूरत के हिसाब से की जाएगी। नब्बे प्रतिशत पानी की बचत भी होगी। जो घोल तैयार किया जाएगा, उसमें पौधे को जरूरी सभी तत्व मिल जाएंगे। इससे गरीब किसान भी पशुपालन कर सकते हैं।
महज 0.21 फीसद जमीन पर ही चारे की खेती
पीआरओ डॉ. आर के सोहाने कहते हैं कि बिहार में इस तरह का अनुसंधान पहली बार हो रहा है। राज्य का अधिकांश भाग सूखा या बाढ़ से ग्रसित रहता है, जबकि यहां 272 लाख पशु हैं। कुल कृषि क्षेत्र के 0.21 प्रतिशत में ही हरे चारे का उत्पादन होता है। इस विधि से काफी लाभ होगा।
बढ़ती जनसंख्या और कम होती जमीन के कारण आने वाले समय में यह अनुसंधान किसानों के लिए समृद्धि का द्वार खोलेगा। विश्वविद्यालय इस दिशा में प्रयास कर रहा है। - डॉ. अजय कुमार सिंह, कुलपति बीएयू, सबौर