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BAU : सबौर कृष्णकली बैगन का चोखा होगा मजेदार, तरल जैव उर्वरक भी रिलीज

बीएयू ने सबौर कृष्णकली नाम से बैगन की नई किस्‍म रिलीज कर दी है। इसकी उपज में कम लागत लगेगी। उपज भी ज्‍यादा होगी। इसके अलावा तरल जैव उर्वरक भी रिलीज भी रिलीज किया गया।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Thu, 18 Jun 2020 08:57 AM (IST)Updated: Thu, 18 Jun 2020 08:57 AM (IST)
BAU : सबौर कृष्णकली बैगन का चोखा होगा मजेदार, तरल जैव उर्वरक भी रिलीज
BAU : सबौर कृष्णकली बैगन का चोखा होगा मजेदार, तरल जैव उर्वरक भी रिलीज

भागलपुर, जेएनएन। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) ने बैगन की नई किस्म सबौर कृष्णकली नाम से किसानों के लिए रिलीज कर दी। इस बैगन में मात्र 60 से 65 बीज होंगे, जबकि इसके पहले की किस्मों में प्रति बैगन पांच सौ बीज होते हैं। सबौर कृष्णकली भर्ता (चोखा) के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी साबित होगा। अब तक अन्य किस्मों का उत्पादन तीन सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता था। इस किस्म का उत्पादन 430 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगा। विज्ञानियों का दावा है कम बीज वाली यह देश की पहली किस्म है।

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बिहार की जलवायु और मिट्टी में सब्जी उत्पादक किसानों के लिए कृष्णकली काफी उपयोगी होगी। इस तकनीक एवं किस्म को 19वीं अनुसंधान परिषद खरीफ 2020 की दो दिवसीय बैठक के समापन अवसर पर बीएयू ने रिलीज किया। बैगन के अलावा चार तरल जैव उर्वरक सबौर राइजो, सबौर फॉस्फोबैक्टिन, सबौर नाइट्रोफिक्स, संयुक्त सबौर नाइट्रोफिक्स एवं संयुक्त फास्फोबैक्टिन को भी किसानों के लिए जारी किया गया। विज्ञानियों ने बताया कि इन तरल जैव उर्वरक के प्रयोग से किसानों को कम रासायनिक खाद का उपयोग करना पड़ेगा। मसूर और चना की सुरक्षित खेती के लिए सबौर ट्रायकोडर्मा-1 रासायनिक खाद भी रिलीज हुई। यह 45 डिग्री तापमान पर भी काम करेगी। मृदा एवं बीज जनित रोग को नियंत्रण कर उपज क्षमता बढ़ाने में काम करेगा।

बाद में कुलपति डॉ. अजय कुमार सिंह ने विज्ञानियों के अनुसंधान की सराहना की। उन्होंने 42 नई शोध परियोजनाओं की प्रस्तुति पर विस्तार से काम करने को कहा। साथ ही राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं पर ज्यादा अनुसंधान करने पर जोर दिया। बैठक में अनुसंधान निदेशक डॉ. आइएस सोलंकी सहित विश्वविद्यालय के कई विज्ञानी मौजूद थे।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय लगातार फसलों पर शोध करता है। किसानों को इसके बीज और फसल उपलब्ध कराते जाते हैं। कम लागत और अच्छी पैदावार की जाती है। वहीं, पशुपालन आदि के लिए भी लोगों को प्रेरित किया जाता है। भागलपुर सहित आसपास के जिलों के किसान इससे लाभ उठाते हैं। 


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