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12 साल में सेविका बनी कुंवारी मां, शादी से पहले दिए तीन बच्चों को जन्म Jamui News

चयन में फर्जीबाड़े को लेकर हो रही सुनवाई इन तमाम तथ्यों और सबूतों के बावजूद पांच वर्षों में भी पूरी नहीं हो सकी है। सुनवाई फिर से डीपीओ के समक्ष की जा रही है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Thu, 05 Sep 2019 12:12 PM (IST)Updated: Thu, 05 Sep 2019 12:12 PM (IST)
12 साल में सेविका बनी कुंवारी मां, शादी से पहले दिए तीन बच्चों को जन्म Jamui News
12 साल में सेविका बनी कुंवारी मां, शादी से पहले दिए तीन बच्चों को जन्म Jamui News

जमुई [अरविन्द कुमार सिंह]। झाझा प्रखंड के पैरगाह पंचायत अंतर्गत आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 252 सबैजोर की सेविका नीतू कुमारी ने यह नौकरी भले ही 27 वर्ष की उम्र में पाई है, पर आंगन में खेलने के उम्र से ही उसने बच्चे जनना शुरू कर दिया। 5 नवंबर 1987 को जन्मी नीतू ने 12 वर्ष पूरा होने से पहले ही उसने पहले बच्चे को जन्म दिया। वह बालिग होते-होते तीन बच्चों की मां बन चुकी थी। खास यह भी कि तीनों बच्चे शादी से पहले के हैं।

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2014 में सेविका बहाली में हुए फर्जीवाड़े में फंसी नीतू के बारे में सूचना अधिकार कानून के तहत मिली जानकारियों के आधार पर उक्त बातें हम कह सकते हैं। उक्त सेविका के शैक्षणिक प्रमाणपत्र और उसकी बेटी के शैक्षणिक प्रमाणपत्र का मिलान किया गया तो दोनों के उम्र में अंतर महज 11 साल 8 माह का है। जबकि उसके तीसरे बच्चे का जन्म मई 2005 में हुआ है।

मुखिया द्वारा निर्गत प्रमाणपत्र के अनुसार नीतू की शादी 2006 में हुई थी। 2012 में उसके पति कपिलदेव प्रसाद वर्णवाल ने उसका परित्याग कर दिया। हालांकि 2013 में संस्कृत शिक्षा बोर्ड से मध्यमा की परीक्षा का प्रमाणपत्र उसके पति कपिलदेव ने ही रिसीव किया और 2015 के वोटर लिस्ट के मुताबिक वही उसका पति है। 2014 में इसी मध्यमा के प्रमाणपत्र के आधार पर उसका चयन सेविका के तौर हुआ है।

कुल मिलाकर सर्टिफिकेटों के फेर में फर्जीबाड़े की पोल खुलती नजर आती है। महज कुछ हजार की नौकरी के लिए क्या कोई खुद को कुंवारी मां बता सकती है? क्या कोई पति अपनी पत्नी को लिखा-पढ़ी में त्याग सकता है? सेविका की नौकरी उसकी जरूरत है या आंगनबाड़ी में नौकरी पाने वालों की दसों उंगलियां घी में रहती है। और अगर सर्टिफिकेट सही हैं तो समाज के लोगों की बातें झूठ है कि नीतू न तो कुंवारी मां बनी थी न ही उसके पति ने छोड़ा है।

पांच वर्ष में पूरी नहीं हो पाई है सुनवाई

चयन में फर्जीबाड़े को लेकर हो रही सुनवाई इन तमाम तथ्यों और सबूतों के बावजूद पांच वर्षों में भी पूरी नहीं हो सकी है। सुनवाई फिर से डीपीओ के समक्ष की जा रही है। मामले में मुखिया सीडीपीओ और आइसीडीएस के तत्कालीन डीपीओ से लेकर तत्कालीन जिलाधिकारी भी सवालों के घेरे में हैं।

आरटीआआइ से प्राप्त तथ्यों पर एक नजर

- नीतू की जन्म तिथि 5 नवंबर 1987 है

- नीतू की प्रथम पुत्री नेहा की जन्मतिथि 6 जुलाई 1999 है

- उसके पुत्र रवि रंजन की जन्मतिथि 10 अक्टूबर 2002 है

- उसके पुत्र रितेश रंजन की जन्म तिथि है 5 मई 2005 है

- मुखिया द्वारा निर्गत प्रमाण-पत्र में नीतू की शादी का वर्ष 2006 है

- नीतू को पति द्वारा छोड़ दिए जाने का वर्ष 2012 है

- उसके मध्यमा परीक्षा उत्तीर्ण करने का वर्ष 2013 है

- वह आंगनबाड़ी सेविका पद पर वर्ष 2014 में चयनति हुई

दो दफे प्रकाशित हुई थी मेधा सूची

आंगनबाड़ी सेविका चयन के लिए दो दफे मेधा सूची प्रकाशित की गई थी। पहली बार प्रकाशित मेधा सूची में पहले नंबर पर विभा देवी पति ललन कुमार का नाम दर्ज था, जबकि दूसरी बार पति द्वारा छोड़ दिए जाने का परित्यक्तता प्रमाणपत्र संलग्न कर नीतू का नाम प्रथम स्थान पर दर्ज हो गया। दो बार मेधा सूची जारी करने के मामले में तत्कालीन सीडीपीओ देवमुनि भी संदेह के दायरे में है।

जमुई जिलाधिकारी धर्मेन्‍द्र कुमार ने कहा कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं है। वैसे सभी लंबित मामलों की त्वरित गति से सुनवाई का निर्देश डीपीओ आइसीडीएस को दिया गया है। फर्जीवाड़ा का मामला साबित होने पर संबंधित लोगों के विरुद्ध केस दर्ज किया जाएगा।


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