मुंगेर न्यूज : गर्मी के दस्तक देते ही गहराने लगा है जलसंकट, अवैध बालू उत्खनन ने बिगाड़ी स्थिति
गर्मी शुरू होते ही मुंगेर में पानी का संकट शुरू हो गया है। इतना ही नहीं नदी तालाब के सूख जाने से पशुओं को भी पेयजल की किल्लत झेलनी पड़ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण बालू का अवैध कारोबार है। लेकिन इस पर प्रशासन का ध्यान नहीं है।
संवाद सूत्र, तारापुर (मुंगेर)। जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रैल माह के प्रथम सप्ताह में ही गर्मी परवान चढऩे लगी है। तेज धूप और बढ़ती गर्मी के कारण ग्रामीण इलाके में भू जलस्तर तेजी से नीचे गिरने लगा है। अगर यही स्थिति बनी रही तो आने वाले कुछ ही दिनों में पीने का पानी का संकट गहरा होता चला जाएगा । इतना ही नहीं नदी तालाब के सूख जाने से पशुओं को भी पेयजल की किल्लत झेलनी पड़ रही है। यह सारी स्थिति कोई एक दिन में नहीं बनी है। बल्कि, धीरे धीरे आने वाले दिनों में और बदतर होती चली जा रही है।
सरकार की महत्वाकांक्षी सात निश्चय योजना में हर घर नल से जल देने के लिए डीप बोरिंग कराए गए हैं। वहीं, इलाके में जल संकट के कारण साधन संपन्न लोगों ने भी अलग से डीप बोरिंग करा रखा है । जिसका उपयोग गृह कार्य में पेयजल के अतिरिक्त खेतों की सिंचाई में भी करते आ रहे हैं। सिर्फ पांच वर्ष पहले इलाके में गिने चुने सबमर्सिबल मोटर युक्त डीप बोरिंग हुआ करता था। वर्तमान में इसकी संख्या प्रति पंचायत औसतन 40 से अधिक है। इसका सीधा कुप्रभाव यह पड़ता है कि जिन इलाकों में जमीन के नीचे पानी की मात्रा कम है, वहां सबमर्सिबल मशीन से पानी निकालने के तुरंत बाद सभी कुआं और चापाकल पानी देना बंद कर देते हैं। जिससे चापाकल और कुआं पर आश्रित लोगों को पानी नहीं मिल पाता है । इनमें पानी का जलस्तर सबमर्सिबल मोटर के बंद होने के छह घंटा बाद ही मिल पाता है। जिस कारण आपसी विवाद का जन्म होता है और नोकझोंक के साथ मारपीट की घटना भी घटित होती है।
इलाके के लोगों का कहना है कि इसका कारण इलाके के नदियों से बेतरतीब तरीके से बालू उठाकर नदी के अस्तित्व को ही समाप्त करने का कुत्सित प्रयास किया गया है। जो नदियां सालों भर चलायमान होती थी, वह मार्च महीने से ही सूखने लगती है । बालू का नामोनिशान नहीं रहता है। पहले कुआं के साथ साधारण चापाकल से भी निर्बाध पानी आपूर्ति मिलती रहती थी। परंतु ऐसे जल स्रोत के तल की गहराई से भी नीचे नदी तल की गहराई हो गई है। नदियों में सिंचाई के लिए निकलने वाली डांड भी अब कई फीट नदी तल से ऊपर टंग सा गया है, परंतु इस दिशा में इसकी भयावहता के प्रति सरकारी तंत्र तो उदासीन बना ही रहा, क्षेत्र के निर्वाचित वैसे जनप्रतिनिधि ने भी कभी ध्यान नहीं दिया। बालू के बेतरतीब खनन से उत्पन्न संकट के समाधान के लिए विकल्प के लिए नदियों में चेक डैम या छिलका का निर्माण किसानों की सदैव मांग रही । जिसे अनसूनी कर दिया गया। आज स्थिति यह है कि लोगों को पानी खरीद कर पीना पड़ रहा है। पानी का कारोबार एक एक यूनिट का लाखों रुपये महीने का हो रहा है।
डीप सबमर्सिबल बोङ्क्षरग जिसका उपयोग नल जल योजना सिंचाईके लिए तथा फिल्टर पानी उद्योग के लिए किया जा रहा है । उस कारण आम लोगों को पानी संकट का सामना करना पड़ रहा है। जल स्तर के तेजी से गिरने का प्रभाव अब यह भी देखने को मिल रहा है कि सबमर्सिबल बोङ्क्षरग भी कई जगहों पर क्षमता से कम पानी देना शुरू कर दिया है। जिस कारण आने वाले दिनों में इसकी भयावहता से इनकार नहीं किया जा सकता है। सरकार के सात निश्चय योजना पार्ट दो में हर खेत को पानी देने का संकल्प लिया गया है। इसके तहत नदियों में चेक डैम आदि का निर्माण कर बहते हुए जल को रोकने की व्यवस्था भी कई जगहों पर होगी। जिससे इलाके में कुछ हद तक जल स्तर को ऊंचा करने में मदद मिल सकती है।
कहते हैं विधायक
विधायक सह पूर्व मंत्री डॉ. मेवालाल चौधरी ने कहा कि भूजल स्तर के गिरावट को लेकर कहीं ना कहीं हम सभी जिम्मेवार हैं । हम लोग भू जलस्तर का संरक्षण नहीं करते हैं, बल्कि सिर्फ दोहन करते हैं। हमें पानी संरक्षण के विभिन्न उपायों को अमल में लाने की आवश्यकता है। हम धरती में छेदकर पानी निकालने की बजाय उसे सींचकर पानी निकालने की सोचें। वर्षा जल को अगर हम संरक्षित करने में कामयाब होंगे, तो निश्चित रूप से इस स्थिति से निजात मिलेगी। देश के महाराष्ट्र राज्य जहां अधिकतम 200 एमएम वर्षा होता है, वहीं बिहार में प्रतिकूल स्थिति के बावजूद 900 एमएम से अधिक वर्षा होती है । मुख्यमंत्री ने जल जीवन हरियाली जैसे कार्यक्रम की शुरुआत कराई है। इसका उद्देश्य है पौधा लगाकर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करना। कहीं ना कहीं आरामदायक जीवन जीने की शैली वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के बढऩे का कारण हो गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भूजल स्तर के गिरावट को संतुलित करने के लिए मुख्यमंत्री कितने संवेदनशील हैं।
सभी निजी एवं सरकारी पोखरों के जीर्णोद्धार के आदेश दिए गए हैं। हम लोग ङ्क्षसचाई के लिए डीप बोरवेल करवाते हैं। मिट्टी में तीन लेयर होता है। पहले लेयर से पानी लेते थे, अब तीसरे लेयर से लेने लगे। पहले से भविष्यवाणी की हुई है कि अगला विश्वयुद्ध अगर संभावित है, तो वह पानी के लिए ही होगा। लब्बोलुआब यह है कि लोगों में जब तक जागरुकता नहीं होगी, तब तक इस दुष्प्रभाव से छुटकारा पाना संभव नहीं है। यह सिर्फ तारापुर की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे विश्व की समस्या बनती जा रही है।
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