पक्षियों को भाया यहां का पर्यावरण - फिजा बदली तो यहीं रुक गए सभी प्रवासी पक्षी, नहीं लौटे अपने वतन
लॉकडाउन के कारण प्रदूषण कम हुआ है। इस कारण यहां आए विदेशी पक्षी अभी तक यहीं जमे हैं। पक्षियों को यहां का पर्यावरण भाने लगा। हर वर्ष हजारों पक्षी दिसंबर में यहां आते हैं और अप्रैल में लौट जाते थे। लेकिन इस बार यहीं टिके हैं।
भागलपुर [नवनीत मिश्र]। पिछले कई वर्षों से शहरवासियों के साथ-साथ पशु-पक्षियों को भी स्वच्छ हवा नहीं मिली थी। लॉकडाउन में तीन महीने तक वाहनों की आवाजाही कम होने, कल-कारखानों और मानवीय गतिविधियों के थमने का अनुकूल असर पर्यावरण पर पड़ा है। इससे हर साल मार्च-अप्रैल में लौटने वाले प्रवासी पक्षी यहीं रुक गए हैं।
गंगा का पानी भी साफ हुआ है। गंगा नदी में डॉल्फिन अठखेलियां करती नजर आ रही हैं। गंगा नदी के किनारे इस मौसम में स्थानीय पक्षियों के साथ-साथ सैकड़ों विदेशी पक्षियों को देखा जा सकता है। लालसर, नीलसर, सीखंपर, सोभलर, सवन, ग्रे लेग घोस, ग्रेगनी, कोमेनटेड, पाइल्ड एवोकेट, मछरंगा, घूमरा, बड़ा गुदेड़ा आदि पक्षी यहां अभी तक मौजूद हैं। ये पक्षी साइबेरिया, रूस, अलास्का, मंगोलिया, तिब्बत एवं मध्य यूरोप से आते हैं। नवंबर में जब उन इलाकों की नदियों-झीलों का पानी जम जाता है, तब ये भारत का रुख करते हैं। भागलपुर में ये पक्षी गंगा नदी के किनारे डेरा डालते हैं। ये पक्षी मौसम अनुकूल नहीं रहने के कारण अपने देश में ही प्रजनन करते हैं। ऑस्ट्रेलियन पक्षी मैगपाइ रोबिन इस बार यहीं रुक गए। कई साइबेरियन पक्षी भी अपने देश वापस नहीं गए।
वर्षों से पक्षियों पर शोध कर रहे डॉ. डीएन चौधरी के अनुसार प्रवासी पक्षियों का वापस अपने देश को नहीं लौटना और प्रवास स्थल पर अधिक दिनों तक रुकने का बड़ा लॉकडाउन के कारण मौसम में आया बदलाव है। पक्षी विज्ञानी के अनुसार तापमान में परिवर्तन के कारण पक्षियों के अंतस्रावी ग्रंथियों पर प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव पक्षी को लौटने के लिए उत्प्रेरित करता है। इस बार मौसम ज्यादा गर्म नहीं होने की वजह से पक्षी वापस नहीं लौटे। डॉ. चौधरी का मानना है कि अगर इसी तरह का मौसम रहा तो विदेशी पक्षी यहीं प्रजनन कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि बुलबुल, कोयल, धोबन, रोबिन महोखा, खरवा, कौआ, मैंनी आदि की बोलियों में मिठास है। ध्वनि प्रदूषण कम होने के कारण इनकी आवाज भी लोगों को साफ सुनाई पड़ती है।