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कोविड-19 में घर लौटे प्रवासियों को नहीं मिला रोजगार, फिर चले गए परदेश

कोरोना काल में जान बचाने के लिए घर लौटे मजदूरों को अपने ही राज्‍य और जिलों में रोजगार का कोई साधन मुहेया नहीं कराया गया। परिणाम स्‍वरूप जब उन्‍हें रोजी रोटी के लाले पड़ने लगे तो विवश होकर उन्‍होंने परदेश लौटना शुरू कर दिया है।

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 03 Feb 2021 03:33 PM (IST)Updated: Wed, 03 Feb 2021 03:33 PM (IST)
कोविड-19 में   घर लौटे प्रवासियों को नहीं मिला रोजगार, फिर चले गए परदेश
सरकारी संस्थान के उदासीन रवैये के कारण नहीं रुक रहा घर लौटे प्रवासी मजदूरों का पलायन

भागलपुर [ ललन तिवारी ] । कोविड-19 में सबौर प्रखंड मे आए प्रवासी रोजी रोटी का आसरा नहीं देख लाचार होकर फिर दूसरे राज्यों की खाक छानने चले गए। मजदूरों को कृषि क्षेत्र में प्रशिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध कराने की चाहे सरकार कितनो दम्भ भर ले, लेकिन उसके धरातल पर उसकी सच्चाई दम तोड़ दे रही है।

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गांव लौटे प्रवासियों ने समेटा अपना बोरिया विस्‍तर

बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर की चारदीवारी से सटे सबौर प्रखंड का चंदेरी पंचायत है। यहां के मुखिया प्रतिनिधि सरगम कहते हैं कि कोविड-19 में तकरीबन दो सौ प्रवासी पंचायत आए थे ।जिनके खाने और रहने की व्यवस्था मैंने स्वयं मानवता के आधार पर किया था । आज हकीकत यह है की बारी बारी से सभी प्रवासी रोजी रोटी की तलाश में जहां से आए थे वहां चले जा रहे हैं । दो चार बचे हैं जो मजदूरी की तलाश करते रहते हैं।

गांव में प्रवासियों को नहीं मिला रोजी रोटी

प्रखंड के विकास मित्र संघ के अध्यक्ष प्रणव कुमार कहते हैं कि प्रवासियों की सूची ब्लॉक से लेकर अस्पताल तक मुहैया कराई थी। खानकित्ता पंचायत के मुखिया संजीत कुमार कहते हैं कि पंचायत का टोला भिट्ठी में तकरीबन 20 प्रवासी आए थे जिसमें महज दो चार बचे हैं। रजन्दीपुर पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि शंकर मंडल बोले हमारे पंचायत में तकरीबन 200 प्रवासी आए थे । मेरे पंचायत मे ज्यादा गरीब और मजदूर रहते हैं। सरकार की तरफ से कृषि आधारित किसी को भी कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया और ना ही रोजगार या स्वरोजगार के प्रति मार्गदर्शन ही किया गया ।हालात इतने बदतर रहे की मजदूरों को एक हजार रुपये खाता में आनी थी। वह भी नहीं मिल सका। लाचार और विवश होकर लगभग सभी पलायन कर गए। शंकरपुर ,मलखा, लैलख, सरधो आदि पंचायतों में भी आए प्रवासी मजदूरों की कमोवेश यही स्थितियां हैं।

बीएयू का नहीं दिखा सार्थक पहल

विश्वविद्यालय के मुख्यालय के समीप प्रवासियों को न तो कोई प्रशिक्षण ही मिला और ना ही रोजगार या स्वरोजगार का अवसर ही मिल सका ।लाचार होकर प्रवासी फिर पलायन कर गए। सनद हो कि विश्वविद्यालय से लेकर कृषि विज्ञान केंद्र तक में करोड़ों की योजना संचालित हो रही है जिसमें प्रवासी श्रमिकों को खेती किसानी से जुड़ी विधा का ज्ञान देकर उसे तकनीकी रूप से विकसित करना है और रोजगार व स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध करानी है। जब मुख्यालय के करीब का गरीब प्रवासी मजदूरों को किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिल सका तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुख्यालय के अधीन अन्य जिलों के संस्थान में सरकार की सोच और योजना को कितना धरातल पर उतारा जा रहा है। 


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