मशीनीकरण की मार ने बंद किया रोजगार, विलुप्त होती जा रही हैं कई परंपरागत चीजें
मशीनीकरण ने भले ही लोगों को सुख-सुविधा दी हो परंतु इसके करण कई परंपरागत चीजें विलुप्त हो गई। मशीनीकरण ने लोगों का चौका-चूल्हा भी प्रभावित हुआ है। कई ऐसी परंपरागत चीजों अब नहीं दिखती जो कभी जीवन के लिए महत्वपूर्ण साधन हुआ करता था।
सुपौल, जेएनएन। मशीनीकरण और उद्योगीकरण से लोगों को काफी लाभ पहुंचा है। इससे कम समय में गुणवत्तापूर्ण उत्पाद किया जाता है। लेकिन मशीनीकरण के कारण कई परंपरागत चीजें आज विलुप्त होने के कगार पर हैं। कई उपकरण तो अब दिखने भी बंद हो गए।
मशीनीकरण और उद्योगीकरण से लोगों का चौका-चूल्हा भी अछूता नहीं रहा। घरों के लिए उपयोगी (अनाज पीसने वाला पत्थर का दो पाट), सिलबट्टा (मसाला पीसने वाला पत्थर का टुकड़ा) गायब होता जा रहा है। अब मिक्सी ग्राइंडर से मशाले की पिसाई होती है।
यहां बता दें कि पाषाण काल मानव सभ्यता के विकास की पहली सीढ़ी थी। इस काल में पत्थर के औजारों का ज्यादातर प्रयोग होता था। पत्थर के औजारों का निर्माण होता था। ज्यादातर लोगों की निर्भरता पत्थरों पर थी। रसोई के कामों में पत्थर के उपकरण ज्यादा प्रचलित थे। जाता, सिलबट्टा जिसे स्थानीय भाषा में सिल्ला लोढ़ी कहा जाता है शामिल है। जाता से अनाज की पिसाई होती है। सिल्ला लोढ़ी से मसाला पीसा जाता है। जब इसका प्रयोग घर-घर में होता था तो इसकी कुटाई के लिए भी लोग थे। क्योंकि सिल्ला, लोढ़ी और ताला की बीच-बीच में कुटाई की जाती है, ताकि यह बढि़या से कार्य हो सके। कुटाई करने वाले भी भी अच्छी आमदनी होती थी।
लालगंज के अशर्फी ने इस संबंध में बताया कि पहले जाता और सिल्ला कूटकर परिवार का भरण-पोषण कर लेते थे, लेकिन अब तो इसका प्रचलन ही खत्म हो गया है। जब लोग सिल्ला, लोढ़ी और जाता ही नहीं रखते तो उन्हें रोजगार कैसे मिलेगा। इससे उनका धंधा मंदा हो चला है। गांव-घर में भी अब लोग मिक्सी का प्रयोग करने लगे हैं, अब तो मसाला की पिसाई लोग मशीन से करवा लेते हैं। इसके अलावा अब कुएं भी नहीं दिखते हैं। पहले कुएं से पानी निकालने के लिए भी बांस डंडा का प्रयोग होता था, जो अब नहीं दिखता।