कटिहार में कभी जूट मिल की बंशी से लोग मिलाया करते थे घड़ी की सूई, आज पड़ा है विरान
कटिहार में एनजेएमसी की इकाई आरबीएचएम जूट मिल निजी क्षेत्र की सन बायो जूट मिल सहित कांटी कूट फैक्ट्री तथा दो फ्लॉर मिल बंद होने से इन औद्योगिक इकाईयों में काम करने वाले पांच हजार कामगार बेरोजगारी दंश झेल रहे हैं।
कटिहार [नीरज कुमार]। तीन दशक पूर्व तक देश के औद्योगिक मानचित्र पर अपनी पहचान रखने वाले कटिहार जिले में पिछले ढ़ाई दशक में आधा दर्जन से अधिक औद्योगिक इकाईयों में ताला लग गया। एनजेएमसी की इकाई आरबीएचएम जूट मिल, निजी क्षेत्र की सन बायो जूट मिल सहित कांटी, कूट फैक्ट्री तथा दो फ्लॉर मिल बंद होने से इन औद्योगिक इकाईयों में काम करने वाले पांच हजार कामगार बेरोजगारी दंश झेल रहे हैं।
जूट मिल बंद होने का सीधा असर पाट की खेती पर भी हुआ है। सरकारी स्तर से भी बंद उद्योगों को चालू कराने की दिशा में कोई पहल नहीं की गई। निजी क्षेत्र की आधा दर्जन इकाई तो स्थानीय स्तर पर बाजार उपलब्ध नहीं होने तथा अपराधियों के खौफ से बंद हो गई। जूट मिल बंद होने से ही करीब 1200 कामगारों को रोजी रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ा। कुछ मजदूर परिवार अब भी आरबीएचएम जूट मिल के जर्जर क्वार्टर में रहकर फूटपाथ पर दुकान लगा अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।
बताते चलें कि एनजेएमसी की इकाई आरबीएचएम जूट मिल वर्ष 2016 से बंद पड़ा हुआ है। मिल घाटे में चलने के कारण एनजेएमसी ने इसे फ्रेंचाइजी के आधार पर निजी क्षेत्र से चलाने का निर्णय लिया था। फेंचाइजी द्वारा किसी तरह कुछ माह मिल का संचालन किया गया। कामगारों का मजदूरी भुगतान नहीं किए जाने के कारण मजदूरों ने आंदोलन शुरू किया। मजदूरों का बकाया लेकर निजी क्षेत्र की फेंचाइजी बिना नोटिस दिए फरार हो गई। यह मामला कोर्ट तक भी पहुंचा। पिछले पांच वर्षों से मिल में ताला लगा हुआ है। नीति आयोग ने भी आरबीएचएम जूट मिल को रूग्ण उद्योग की श्रेणी में डाल दिया है। इस कारण अब जूट मिल की बंशी फिर से बजने की संभावना निकट भविष्य में नजर नहीं आ रही है। कभी मिल की बंशी सुनने के बाद लोग अपनी घड़ी की सूई मिलाते थे। मिल बंद होने से करोड़ों की मशीन व अन्य उपकरण जंग खा रहा है। इस मिल से ही कटिहार की पहचान जूट नगरी के रूप में थी।
पाट किसानों पर भी हुआ मिल बंद होने का असर
जूट मिल बंद होने का असर यहां काम करने वाले कामगारों के साथ ही स्थानीय पाट उत्पादक किसानों पर भी हुआ है। दो दशक पूर्व तक जिले में 25500 हेक्टेयर में पाट की खेती की जाती थी। पाट किसान अपना उत्पाद स्थानीय स्तर पर ही जूट मिल परिसर में ही बिक्री कर ने पहुंचते थे। स्थानीय स्तर पर ही पाट बिकने से किसानों को लागत से अधिक मुनाफा होता था। मिल बंद होने के कारण पाट का डिमांड नहीं होने के कारण पिछले पांच वर्षों में जूट का रकवा 15 हजार हेक्टेयर तक सिमट कर रह गया है।
केंद्र व राज्य सरकार की नए उद्योग लगाने व बंद पड़े उद्योगों को चालू कराने को लेकर संवेदनशील नहीं है। स्पष्ट उद्योग नीति नहीं होने के कारण कभी औद्योगिक नगरी के रूप में जाना जाने वाला यह जिला वर्तमान में पूरी तरह उद्योगविहीन हो गया है। केंद्र सरकार को आरबीएचएम जूट मिल चालू कराने के लिए पहल करनी चाहिए। -बिमल सिह बेंगानी, अध्यक्ष चैंबर ऑफ कामर्स, कटिहार।