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कोसी में तबाही : बर्बाद हुआ मक्का, डूब गया धान, अब बाढ़ ने दलहन और तिलहन की खेती पर भी पानी फेरा

कोसी की बाढ़ से इस बार भी किसान तबाह हैं। इस साल कोसी में दोबारा बाढ आई है। पहले आई बाढ़ के कारण धान की फसल प्रभावित हुई थी। अब मक्के की फसल को व्यापक नुकसान हुआ है। इससे यहां के किसान चिंतित हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2020 06:39 PM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2020 06:39 PM (IST)
कोसी में तबाही : बर्बाद हुआ मक्का, डूब गया धान, अब बाढ़ ने दलहन और तिलहन की खेती पर भी पानी फेरा
कटिहार में बाढ के कारण डूबा फसल

कटिहार, जेएनएन। प्राकृतिक आपदा किसानों पर कहर बनकर टूट रही है। बारिश और बाढ़ से तबाह किसानों के लिए अब दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल हो गया है। बारिश के कारण इस बार मक्का की फसल को व्यापक नुकसान हुआ है। जबकि मूल्य कम रहने के कारण बची फसलों में किसानों ने किसी तरह जमा पूंजी निकाली थी। किसानों से धान के भरोसे संभालने की कोशिश की थी, लेकिन बाढ़ ने किसानों की मेहनत को चौपट कर दिया है।

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पूर्व में आई बाढ़ के कारण धान की फसल प्रभावित हुई थी। बताते चलें कि धान किसानों की मुख्य फसल है और जिले में 78 हजार हेक्टेयर में धान की फसल लगती है। पश्चिम बंगाल से सटे बारसोई अनुमंडल में धान की व्यापक खेती होती है। लेकिन महानंदा तटबंध खुला रहने के साथ बारिश के कहर ने धान को लील लिया है। बड़े रकवे में लगी धान की फसल डूबने के कारण किसानों के माथे बल पड़ चुका है। जबकि जलजमाव की समस्या आगामी फसल को भी प्रभावित करेगी।

धान के सहारे होता है भोजन का जुगाड़, पशुओं को मिलता है चारा 

बताते चलें कि धान यहां के किसानों की मुख्य फसल है। धान की पैदावार पर ही उनके सालोंभर के रोटी का जुगाड़ होता है। चावल मुख्य खाद्य होने के कारण किसान पैदावार के अनुसार इसका भंडारण करते हैं। जबकि पशुचार की निर्भरता इसी पर है। जिले की 70 फीसदी आबादी पशुपालन पर निर्भर है। धान की फसल बर्बाद होने के कारण इस बार पशुचारा का संकट भी किसानों को झेलना पड़ेगा। फिलहाल गेंहू का भूसा 20 रुपये प्रतिकिलो तो पुआल तीन हजार रुपये प्रति हजार की दर से बिक रहा है। बाढ़ ने भोजन से लेकर पशुचारा पर ग्रहण लगा दिया है।

लहलहाती फसल को डूबता देख फट रहा कलेजा  

पूर्व में आई बाढ़ ने धान की फसल को बर्बाद कर दिया था, रही रही कसर देर से आई बाढ़ ने पूरी कर दी। बची फसलों को बचाने के लिए किसानों में महाजन से कर्ज लेकर भरपूर मिहनत की थी। अब धान फूटने तो कही तैयार होने के कगार पर था, लेकिन बाढ़ व बारिश ने लहलहाती फसल को डूबो दिया। आंख के सामने मिहनत और पूंजी बर्बाद होता देख किसानों का कलेजा फट रहा है। छोटे किसान अपनी जमापूंजी भी खेती में झोंक चुके थे। कोरोना का कहर और प्राकृतिक आपदा की मार ने किसानों का सबकुछ छीन लिया है।

दलहन व तिलहन के साथ रबी की बोआई पर भी असर

बाढ़ से खाली पड़े खेतों पर किसानों ने दलहन व तिलहन की फसल लगाकर नुकसान की भरपाई की उम्मीद की थी। लेकिन सितंबर के अंतिम सप्ताह में आई बाढ़ ने इसकी खेती पर भी ब्रेक लगा दिया है। फिलहाल खेत को सूखने व बोआई के लिए तैयार होने में वक्त लगेगा। ऐसे में दलहन व तिलहन लगाना भी मुश्किल हो गया है। जबकि अगात रबी की खेती करने वाले किसानों की भी परेशानी बढ़ेगी।

किसान गणेश महतो, रमेश ङ्क्षसह, दिलीप मंडल, कंतलाल झा, दिवाकर झा, गंगा राय, सुबोध मंडल, चेतन, मु इदरिश, सलामत हुसैन, रऊफ आदि ने बताया कि आपदा ने उनकी कमर तोड़ दी है। मक्का के बाद अब धान बर्बाद होने के कारण उनके लिए परिवार के लिए राशन की व्यवस्था भी मुश्किल है। बैंक व महाजन का भुगतान करने के लिए उन्हें परदेश जाना होगा। सरकारी स्तर पर भी मदद नहीं मिलने के कारण उनकी परेशानी चरम पर है। आपदा ने किसानों को 10 वर्ष पीछे धकेल दिया है।


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