छठ पर्व की महिमा : मां सीता ने किया था यह व्रत, आप भी करें सीताकुंड का दर्शन
Chhath festival छठ की महिमा अपरंपार है। यह पर्व पवित्रता का प्रतीक है। कई धर्म ग्रंथों और साहित्यों में इस बात का उल्लेख्य है कि सीता ने कई जगह छठ व्रत किया है। वे बांका के मंदार पर्वत पर भी आई हुई हैं। वहां सीताकुंड में छठ किया था।
बांका [आशुतोष कुंदन]। Chhath festival : ऐतिहासिक स्थल मंदार में कभी मां सीता ने छठ किया था। कई ग्रथों में इस बात का उल्लेख है। आज भी मंदार पहाड़ के ऊपर सीताकुंड है। छठ पूजा पर मंदार स्थित पापहरणी तालाब पर झारखंड के गोड्डा तक से लोग पूजा करने के लिए आते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपनी भार्या सीता के साथ त्रेता युग में मंदार पधारे थे। उन्होंने मंदार को नरेश कहकर उसपर आरोहण किया था। यहीं पर्वत के जिस जलकुंड में माता सीता ने भगवान सूर्य को अघ्र्य दिया था, उसका नाम सीताकुंड पड़ गया। पद्मश्री चितु टूडू ने अपने लेख में राम-सीता के मंदार आगमन का उल्लेख किया है। इसमें जनक नंदनी सीता की बहन कापरी का भी उल्लेख है। सीता द्वारा मंदार के जलकुंड में स्नान कर स्कंद माता सहित सूर्यदेव का व्रत करने की भी किताब में चर्चा है। वाल्मीकि रामायण में भी राम के मंदार सहित मुंगेर के सीताचरण एवं कष्टहरणी जैसे स्थलों पर आने का वर्णन है। मंदार में राम के आने का जिक्र स्कंद पुराण में भी है। इसमें राजा दशरथ का पिंड दान करने के लिए राम को अंग जनपथ के तीर्थ मंदार में आमंत्रित करने की कहानी वर्णित है। चूंकि माता-पिता भक्त श्रवण कुमार की हत्या का पाप राजा दशरथ पर इतना भारी था कि दुनिया का कोई भी तीर्थ उन्हें इस पाप से मुक्ति नहीं दिला सकता था, इसी कारण राम ने अंत में मंदार में उनका पिंडदान किया था। इसके बाद उन्हें मुक्ति मिल सकी थी।
भगवान राम एवं सीता की मंदार आगमन की चर्चा कई ग्रथों में अंकित है। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में भगवान श्रीराम के मंदार के कई स्थलों पर आने की चर्चा है। - भवेश झा, पुजारी
कालीदास ने भी अपने प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ कुमार संभवम में मंदार को सूर्यदेव का स्थायी निवास माना है। ऐसे में सूर्य उपासना का व्रत करना मंदार के सीताकुंड को और अति महत्वपूर्ण बनाता हैं। इसी कारण छठ पर्व पर यहां अघ्र्य देने का अलग ही महत्व है। - मनोज मिश्रा, शोधकर्ता, मंदार पर्वत