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कोसी में पटरी पर लौटने लगी जिंदगी... तटबंध के अंदर बढ़ गई चहल-पहल

कोसी तटबंध के अंदर अब जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी है। बाढ़ अवधि के समाप्त होने के बाद तटबंध के अंदर जिंदगी की दूसरी पारी की शुरुआत होती है। पीडि़तों की माने तो अब उनकी जिंदगी जून तक के लिए स्थिर रहेगी।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 03:49 PM (IST)Updated: Thu, 16 Sep 2021 03:49 PM (IST)
कोसी में पटरी पर लौटने लगी जिंदगी... तटबंध के अंदर बढ़ गई चहल-पहल
कोसी तटबंध के अंदर अब जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी है। सांकेतिक तस्‍वीर।

सुपौल [भरत कुमार झा]। कोसी नदी की बाढ़ की अवधि 15 सितंबर तक रहती है। 15 जून से इसकी शुरुआत होती है। इस बीच के समय में लोगों की जिंदगी कोसी के रहमोकरम पर रहती है। बाढ़ के दौरान लोगों के घर-द्वार कट जाते हैं, जमीन कट जाती है। इस दौरान लोग यहां-वहां बसते रहते हैं। नदी में डूबने से यदा-कदा लोगों की जान भी चली जाती है। बाढ़ अवधि के समाप्त होने के बाद तटबंध के अंदर जिंदगी की दूसरी पारी की शुरुआत होती है। जिन लोगों के घर कट जाते हैं उन्हें लोग फिर से बनाते हैं। पीडि़तों की माने तो अब उनकी जिंदगी जून तक के लिए स्थिर रहेगी।

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घरों को लौटेंगे लोग

भले ही अब भी कोसी के तटबंध के अंदर कई गांवों में बाढ़ का पानी जमा है। लोग ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं। अब लोग धीरे-धीरे अपने-अपने गांवों को लौटेंगे। बाढ़ पीडि़त बताते हैं कि अब ऊंचे स्थानों पर रह रहे पुरुष अपने गांव लौटेंगे और वहां अपने घर को व्यवस्थित करेंगे। जिनके घर कट गए वे नया घर बनाएंगे।

कोसी में है मान्यता

कोसी की बाढ़ की पीड़ा झेलते प्रभावित अब राहत की सांस लेंगे। 15 सितंबर के बाद बाढ़ की अवधि समाप्त हो गई अब कोसी नरम पड़ जाएगी। हालांकि कोसी तटबंध के अंदर परंपरागत बातों का, नियम-कायदों का आज भी महत्वपूर्ण स्थान है। कोसी की चाल-ढाल, बाढ़ या पानी बढऩे का पूर्वानुमान लोग पूर्वजों के बताए बातों से लगाते हैं। मसलन कोसी का पानी अगर लाल हो गया तो लोग समझ जाते हैं कि अब पानी बढ़ेगा। जबकि होता यह है कि पहाड़ पर जब बारिश होती है तो तेज धार के कारण नदी अगल-बगल की मिट्टी को काटते हुए बहती है।

इससे पानी का रंग बदल जाता है और लोग कहते हैं कि लाल पानी उतर गया अब कोसी में पानी बढ़ेगा। लाल पानी उतरते ही लोग बाढ़ की तैयारी करने लगते हैं। इसी तरह कोसी के शांत होने का संबंध दशहरा के ढोल की आवाज से जोड़ा जाता है। खुखनाहा के मुरली यादव और झमेली सदा बताते हैं कि कोसी में ललपनिया उतरने के साथ ही यहां के लोग दशहरा के ढोल बजने का इंतजार करने लगते हैं। ढोल बजने के बाद लोग समझ जाते हैं कि कोसी मैया अब आराम करेगी। यही सनातन काल से होता आया है और आज भी हो रहा है।

बोले विशेषज्ञ

कोसी नदी पर काम करने वाले भगवानजी पाठक बताते हैं कि कोसी तटबंध के अंदर के लोग पानी का रंग बदलने से बाढ़ शुरू होने और दशहरा के ढोल बजने के बाद बाढ़ खत्म होने का संकेत समझते हैं। कहा कि पहले जब तकनीकी इतनी विकसित नहीं थी तो पूर्वजों की कही बातें, परंपरा आदि से लोग अनुमान लगाते थे जो कमोबेस आज भी चलन में है। बताया कि प्रशासनिक ²ष्टिकोण से बाढ़ की अवधि 15 सितंबर के बाद खत्म हो जाती है।


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