तीन दशक से विस्थापितों की जिंदगी व्यतीत कर रहा बाढ़ पीड़ित परिवार
14 अगस्त 1987 को कोसी नदी के कटाव में पूरा सहोड़ गांव एक ही रात में विलीन हो गया था। यहां से विस्थापित होकर सैकड़ों परिवार ने रेलवे पुरानी बांध पर शरण लिया था।
भागलपुर। 14 अगस्त 1987 को कोसी नदी के कटाव में पूरा सहोड़ गांव एक ही रात में विलीन हो गया था। यहां से विस्थापित होकर सैकड़ों परिवार ने रेलवे पुरानी बांध पर शरण लिया था। लेकिन कटाव ने इन विस्थापितों का पीछा नहीं छोड़ा। 2014 में कोसी नदी के कटाव में रेलवे पुरानी बाध पर बने घर भी कट गए। घर कटने के पश्चात सभी विस्थापित परिवार मदरौनी रेलवे ढ़ाला के पास झोपड़ी बनाकर रहने लगे। लेकिन कोसी इनका पीछा करती हुई यहां भी आ धमकी। एक माह पूर्व यहां भी सभी घरों में बाढ़ का पानी घुस गया। घरों में पानी प्रवेश करने पर 150 विस्थापित परिवार यहां से पलायन कर मदरौनी समपार फाटक के समीप रेल पटरी किनारे शरण ले रखे हैं। यहीं पर कपड़ा और प्लास्टिक टाग कर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। रमेश भी सपरिवार यहीं रहकर मजदूरी कर जीवन यापन करता था। रमेश और उसके एक वर्षीय पुत्र दिलखुश की मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। रमेश अपने पीछे एक पुत्र अंकुश कुमार और पुत्री सोनम कुमारी को छोड़ गया है। इस परिवार के समक्ष अब रोजी-रोटी की समस्या आ गई है।