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अब मोबाइल फोन पर ही मिलेगा भूस्खलन का अलर्ट

संवेदनशील स्थानों का पता लगाकर चेतावनी संदेश जारी किए जा रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 09:26 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 09:26 PM (IST)
अब मोबाइल फोन पर ही मिलेगा भूस्खलन का अलर्ट
अब मोबाइल फोन पर ही मिलेगा भूस्खलन का अलर्ट

किशनगंज(सागर चन्द्रा)। नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में लगातार हो रहे भूस्खलन की जानकारी के लिए कई जगहों पर उपकरण लगाए गए हैं। खासकर सिक्किम-दार्जीलिंग पट्टी में चेतावनी प्रणाली स्थापित कर 200 से अधिक सेंसर लगाए गए हैं। ये सेंसर वर्षा, भूमि की सतह के भीतर छिद्र दबाव, भूकंपीय गतिविधियों समेत विभिन्न भूगर्भीय एवं हाइड्रोलॉजिकल मापदंडों की निगरानी करते हैं।

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यह प्रणाली भूस्खलन से पहले ही सचेत कर देती है। अब जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया मोबाइल एप विकसित कर इससे कनेक्ट करेगी, ताकि एप के जरिए भू-स्खलन की पूर्व सूचना मैसेज के जरिये दी जा सके। साथ ही समय रहते मोबाइल फोन पर अलर्ट मैसेज भेजकर और सायरन बजाकर लोगों को भूस्खलन की जानकारी भी दी जाएगी। हिमालय की तराई में बसे कोसी-सीमाचल के लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा। हाल के दिनों में हिमालय की तराई के क्षेत्र में भूस्खलन के रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाओं के बाद जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने लैंड स्लाइड वार्निंग सिस्टम नामक उपकरण तैयार किया है। इस उपकरण का बरसात के दिनों में हिमालय के पहाड़ी क्षेत्र के लोगों के साथ तराई क्षेत्र में बसे कोसी-सीमाचल के लोगों को भी लाभ मिलेगा। जीएसआइ ने भूस्खलन और इससे होने वाले नुकसान का आकलन-अध्ययन करने के पश्चात प्रयोग शुरू कर दिया है। जीएसआइ ने प्रारंभिक तौर पर नॉर्थ-ईस्ट के पागलाझोड़ा, गिद्धापहाड़ सहित दार्जीलिंग जिले के चौदह माइल में उपकरण लगाए हैं। इसके सकारात्मक प्रभाव भी दिखने लगे हैं। गत बरसात के दिनों में उपकरण द्वारा समय रहते अलर्ट जारी करने के कारण जान-माल के नुकसान को रोकने में काफी मदद मिली थी। प्रारंभिक सकारात्मक नतीजों के बाद अब जीएसआइ की योजना कई अन्य संवेदनशील स्थानों पर डिवाइस लगाने की है। दरअसल हिमालय के भू-विज्ञान को केंद्र में रखकर विकसित की गई यह चेतावनी प्रणाली इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओटी) पर आधारित है। यह प्रणाली भूस्खलन से 24 घटे पूर्व चेतावनी जारी कर सकती है। स्थानीय स्तरो पर स्थापित की जाने वाली यह प्रणाली विभिन्न प्रकार के सेंसरों पर आधारित है। इन सेंसरों को ड्रिल करके जमीन के भीतर पाइप की मदद से स्थापित किया जाता है। यह प्रणाली सौर ऊर्जा से संचालित होती है। खास बात यह है कि यह प्रणाली कृत्रिम इंटेलीजेंस पर आधारित है, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित करके विस्तृत भूक्षेत्र में भूस्खलन की निगरानी की जा सकती है।

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सॉफ्टवेयर के माध्यम से अब भूस्खलन के संवेदनशील स्थानों का पता लगाकर चेतावनी संदेश जारी किए जा रहे हैं। 24 घटे पूर्व मिलने वाली सूचना से आपदा से पूर्व लोगों को हटाया जा सकेगा।

- आशीष नाथ

निदेशक, जीएसआइ, कोलकाता


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