Move to Jagran APP

कटिहार : केला-मक्का दे रहा धोखा, अब ओल के सहारे बदल रही किसानों की आर्थिक सेहत

कटिहार में अब मक्‍का और केले के साथ साथ किसान अब ओल की भी खेती कर रहे हैं। बेहतर मुनाफे के साथ इस खेती में नुकसान के कम असार के कारण ओल की खेती के प्रति किसानों का आकर्षण बढ़ रहा है।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Tue, 08 Dec 2020 09:45 AM (IST)Updated: Tue, 08 Dec 2020 09:45 AM (IST)
कटिहार : केला-मक्का दे रहा धोखा, अब ओल के सहारे बदल रही किसानों की आर्थिक सेहत
कटिहार में अब मक्‍का और केले के साथ साथ किसान अब ओल की भी खेती कर रहे हैं।

कटिहार [प्रवीण आनंद]। पनामा बिल्ट नामक रोग के चलते केले से मोह भंग होने के बाद किसानों के लिए मुख्य नकदी फसल मक्का बन गया था। इधर कोरोना काल में मक्का की कीमतों में आई भारी गिरावट के बाद अब इसके विकल्प भी तलाशने लगे हैं। इसी कड़ी में सेमापुर ओपी क्षेत्र के कई किसानों ने ओल की खेती की है। यह प्रयोग काफी सफल भी रहा है और इस सहारे किसान अपनी आर्थिक सेहत ठीक कर रहे हैं।

prime article banner

नुकसान की कम आशंका से बढ़ रहा आकर्षण

बेहतर मुनाफे के साथ इस खेती में नुकसान के कम असार के कारण ओल की खेती के प्रति किसानों का आकर्षण बढ़ रहा है। बरारी प्रखंड के काबर पंचायत में एक दर्जन से अधिक किसान इसकी खेती कर रहे हैं। यह खेती बाग बगीचे के जमीन पर भी आसानी से हो जाती है। इसकी खेती में लागत भी कम आती है। इसके फसल की पत्ती को कीट के साथ पशु भी नहीं खाते है। इससे परेशानी भी कम होती है।

किसान रंजीत सिंह, रविन्द्र नारायण सिंह, चन्द्रभूषण चौधरी, शिव कुमार सिंह आदि ने बताया कि एक एकड़ जमीन में 15 से 20 क्विंटल ओल की पैदावार होती है। बाजार भाव अच्छा रहने पर एक बीघा जमीन पर एक से डेढ़ लाख रुपये तक मुनाफा होता है। प्रगतिशील किसान रंजीत ङ्क्षसह ने बताया कि वे 15 साल से ओल की खेती कर रहे हैं। फरवरी, मार्च माह में खेतों में 700 ग्राम के ओल गोबर खाद या बर्मी कम्पोस्ट के साथ लगा दिया जाता है। अक्टूबर माह में ओल तैयार हो जाता है। इसे वजन देखने के अनुसार उखाड़ा जाता है। अगर ओल का वजन कम रहता है तो इसे खेत में ही छोड़ इसके उपर सरसों, गेहूं आदि लगा दिया जाता है। मार्च महीने में सरसों गेहूं कटाई के बाद ओल उखाड़ा जाता है। इस समय ओल का वजन सात से 10 केजी तक का हो जाता है। इसकी खेती में मेहनत के साथ लागत भी कम है। बस ओल के बीज में कीमत लगती है। खाद में बहुत कम रुपया लगता है। एक बीघा में 25 हजार तक का लागत आता है। इसकी खेती छायादार जगह पर भी हो जाती है। इसकी खेती में प्राकृतिक आपदा का भी भय कम रहता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.