अपराध के दलदल में फंस रहे किशोर, भागलपुर शहर के अपराध का ग्राफ देखकर चौक जाएंगे आप
अपराध के दलदल में कम उम्र के युवा शामिल हो रहे हैं। भागलपुर का आंकड़ा देखकर आप भी चौक जाएंगे। 100 से अधिक किशोर चोरी अपहरण शराब तस्करी बाइक की चोरी सहित अन्य संगीन आरोप में हैं सुधार गृह में...
भागलपुर [आलोक कुमार मिश्रा]। अम्मा देख, तेरा मुंडा बिगड़ा जाए, अम्मा देख... शहर के कम उम्र के लड़कों का कुछ यही हाल है। नौनिहाल अपराध की घटनाओं में सक्रिय हैं। इससे पुलिस परेशान है। यदि किसी आपराधिक कृत्य में उन्हें पकड़ा भी जाता है तो पुलिस उन पर सख्ती नहीं कर सकती है। उन्हें काउंसिङ्क्षलग के लिए बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है।
कम उम्र के बच्चे शराब तस्करी, लूट, चोरी, ड्रग्स तस्करी, बाइक चोरी में लिप्त हैं। कई बार पुलिस ने अपने स्तर से बच्चों की सुधार के लिए कार्यक्रम भी चलाया, पर व्यवस्थाएं दम तोड़ती चली गईं। सही परवरिश और कांउसिलिंग न होने के कारण तेजी से गलत कार्यों में लिप्त हो रहे हैं। चोरी, अपहरण, शराब तस्करी सहित अन्य संगीन आरोप में तकरीबन एक सौ सुधार गृह में हैं।
भागलपुर समेत पूर्वी बिहार के कई जिलों की पुलिस की नाक में दम कर करने वाले बाल अपराधियों के परिजन की टीस भी बढऩे लगी है। बाल अपराधी फिलहाल अलग-अलग जिलों में सुधार गृह में बंद हैं। अभिभावकों को अब लग रहा है कि उनकी छोटी सी चूक यानी बच्चे पर समुचित ध्यान न देने से उनके लाडले का भविष्य चौपट हो रहा है। कम उम्र के लड़कों में अपराध की प्रवृति बढ़ रही है। अपराध के आंकड़ों पर नजर डाला जाए तो बाल अपराध की संख्या वृद्धि हो रही है। अव्यस्कों में अपराध की प्रवृति बढऩे के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन घरेलू माहौल, अभिभावकों का अपने बच्चों के प्रति जवाबदेही ऐसे कई महत्वपूर्ण कारणों में एक माना जा सकता है।
गरीबी और अशिक्षा भी अपराध को दे रहे बढ़ावा
गरीबी और अशिक्षा बाल अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं। बिहार में रोजगार के उचित साधन नहीं हैं। रोजगार के अभाव में कई ऐसे परिवार भी हैं जो गरीबी रेखा के नीचे हैं। गरीबी के कारण स्कूल भेजने के बजाय वे अपने बच्चों को काम पर लगा देते हैं। स्कूल जाने की उम्र में नौकरी करने वाले बच्चों को पैसे की लत लग जाती है।
क्या कहती हैं मां
सुधार गृह में बंद एक बाल अपराधी की मां ने कहा कि कहीं न कहीं हमारी ही चूक ने ही लाडलों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करने या छिपाने की कीमत आज चुका रहे हैं। सुधार गृह में बंद एक अन्य अन्य बाल बंदी की मां ने कहा कि बचपन में बच्चे की छोटी-छोटी गलतियों को छिपाना ही आज उनके बच्चे के लिए श्राप हो गया।
बाल अपराध के ये भी हो सकते हैं कारण
- माता-पिता का तिरस्कार
- छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करना
- भौतिक वंशानुक्रमण
- अपराधी भाई-बहन
- परिवार की आर्थिक दशा
- मनोवैज्ञानिक कारण
- चलचित्र व अश्लील साहित्य
बच्चों में ऐसे रोका जा सकता है भटकाव
- सात-आठ वर्ष की उम्र से ही बच्चों की हर गतिविधियों को अभिभावकों को गंभीरता से लेने की जरूरत है
- पारिवारिक माहौल, परिवेश, व्यसन का खास ख्याल रखना चाहिए।
- बच्चे कुंठाग्रस्त होकर भी गलत संगति में पड़ अपराध की राह पकड़ते हैं।
-बच्चों की गतिविधियों पर हो पैनी नजर, उनके साथियों के आचरण की जानकारी लेते रहें
-छोटी-मोटी गलती को नजरअंदाज करने के बजाए बच्चे को उसके दुष्परिणाम बताएं
-बच्चों में स्नेह के साथ सदगुणों को आत्मसात कराया जाए
-इसके अलावा मनोचिकित्सक, व्यवहार चिकित्सा का भी सहारा लिया जा सकता है।
प्रकाश में नहीं आनेवाली छोटी-छोटी घटनाओं पर ध्यान दें
पुलिस के अनुसार प्रकाश में नहीं आने वाली कुछ छोटी-छोटी घटनाएं आगे जाकर समस्या खड़ी कर सकती हैं। पिछले तीन-चार महीने में एक दर्जन बाल अपराधी पकड़े गए हैं। हाल ही में बरारी में एक नाबालिग पकड़ा गया था। अभिभावक को थाना बुलाकर बच्चे के हरकत के बारे में बताया गया। इस पर उक्त बच्चे के अभिभावक ने नियंत्रण में नहीं होने की बात करते हुए बेटे को जेल भेज देने की बात कही गई। वहीं, हाल ही में जीरोमाइल क्षेत्र में नौ साल बच्चा एक व्यक्ति के जेब से मोबाइल निकालते पकड़ा गया था। पूछताछ में यह बात सामने आई कि लालच देकर उस लड़के से गलत काम कराया गया था।
कानून के खिलाफ यदि एक भी बच्चा खड़ा हो जाता है तो यह सभी के लिए ङ्क्षचताजनक है। बच्चों को सही तरीके से शिक्षा पहुंचाने की जरूरत है। अभिभावक, शिक्षक, नाते-रिश्तेदार और समाज के हर समूह को मिलकर निगरानी रखने के साथ बच्चों को देशप्रेम की भावना जगाने की जरूरत है। उन्हें यह बताना चाहिए कि वह देश का भविष्य है। स्कूलों में जाकर इसके लिए जागरुकता अभियान चलाया जाता है। - सुजीत कुमार, डीआइजी, भागलपुर प्रक्षेत्र।