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जमुई : किसान अब भी कर रहे परंपरागत खेती, नहीं लग सके कल-कारखाना, रोजगार के लिए पलायन मजबूरी

जमुई का अब भी पूरी तरह विकास नहीं हो सका है। पहाड़ी व मैदानी भौगोलिक स्थिति वाले जमुई जिले में कमोबेश हर तरफ सुविधा पहुंच गई है। लेकिन कल कारखाने के नहीं लगने से रोजगार के लिए लोगों को अब भी पलायन करना पड़ता है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2020 05:14 PM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2020 05:14 PM (IST)
जमुई : किसान अब भी कर रहे परंपरागत खेती, नहीं लग सके कल-कारखाना, रोजगार के लिए पलायन मजबूरी
जमुई में रोजगार की तलाश में पलायन मजबूरी बन गई है।

जमुई [आशीष कुमार ]। राजनीतिक गलियारे में धमक रखने वाले नेताओं के बावजूद जिले में उद्योग, कल-कारखाने नहीं लगाए जा सके। हालांकि, पहाड़ी व मैदानी भौगोलिक स्थिति वाले जमुई जिले में कमोबेश हर तरफ सुविधा पहुंच गई है। लोगों के आने-जाने के रास्ते सुगम हो गए हैं। सुविधा बढ़ने से खर्च भी बढ़ गए, लेकिन आमदनी बढ़ाने की व्यवस्था यहां नहीं बढ़ पाई है।

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नतीजतन लोगों का रोजगार की तलाश में पलायन मजबूरी बन गया है। कोरोना काल में परदेश से लौटने वालों की कतार ने इस मुद्दा का जीवंत कर दिया है। सरकारी आंकड़े के अनुसार, जिले में 32 हजार प्रवासी लौटे। हालांकि, अपने साधनों व पैदल लौटने वालों की संख्या भी बहुत थी। एक मोटे अनुमान के अनुसार, लगभग पचास हजार से अधिक लोग परदेश से अपने-अपने गांव लौटे हैं। इस तस्वीर ने रोजगार सृजन के अभाव को दर्शा दिया है। ऐसा नहीं है कि जिले में उद्योग या कल-कारखाने की संभावना नहीं है। प्राकृतिक रूप से संपन्न और खनिज भंडारण के बावजूद इस ओर किसी ने ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा। रोजगार की कवायद मनरेगा तक सिमट कर रही गई। शैक्षणिक योग्यताधारियों को नौकरी की तलाश में बाहर जाने का ही रास्ता बचा। लिहाजा ऐसे युवाओं की सोच भी चुनाव के रिजल्ट का प्रभावित कर सकती है।

सोनो में पाया गया था सोना

वर्ष 1984 में सोनो प्रखंड में पहली बार सोना होने का लोगों को पता चला। दरअसल, इसकी जानकारी मिट्टी में स्वर्णकण मिलने के बाद लोगों को हुई। इसके बाद प्रशासनिक हलचल मचा। दावे-दावे का दौर चला लेकिन वक्त के साथ यह सिर्फ यादें बनकर रह गया है।

चकाई में पाए जाते हैं विशेष पत्थर

चकाई में सफेद पत्थर, स्लेट पत्थर और ढिबरा मायका पाया जाता है। इन पत्थरों का संगमरमर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माण में उपयोग होता है। आश्चर्य इस बात की इन इलाके से इन पत्थरों की तस्करी होती है,लेकिन इसे रोजगार की संभावनाओं में परिणत करने की कोशिश नहीं की गई।

नहीं है कृषि उत्पाद उद्योग

जिले में खेती वृहत पैमाने पर होती है। यहां के लोग पंजाब और बंगाल उत्पादन के सील पैक चावल खाते हैं। पूर्व के समय में हर घर में पाए जाने वाला चिप्स खाते हैं। लेकिन जिले में इन उत्पादों से संबंधित उद्योग स्थापित करने का प्रयास नहीं किया गया। जमुई मलयपुर रोड स्थित खैरमा गांव से हर दिन धान लदे ट्रक बर्द्धमान भेजा जाता है। फिर यहां के धान से तैयार चावल यहीं के दुकानों में पहुंच जाती है और लोग चाव से खातें हैं। बावजूद जिले में इस तरह के उद्योग स्थापित नहीं हो सका। जानकारों की माने तो अगर जिले में उद्योग स्थापित हो जाते तो पढ़-लिखे सहित किसी को भी दूसरे परदेश में पेट भरने के लिए नहीं जाना पड़ता।

जिले की भौगोलिक स्थिति

भौगोलिक क्षेत्रफल--3122.70 स्कावयर किलोमीटर

आबादी--17.6 लाख

आबादी घनत्व- 1500 प्रति वर्ग मीटर

जंगली क्षेत्र--204734 एकड़


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