खाकी में भले यहां एक मैडम की सल्तनत हो पर चलता है तीन मैडम की तिकड़ी
यहां खाकी की सल्तनत को एक मैडम संभाल रहीं हैं। लेकिन यहां तीन मैडम की तिकड़ी का बोलबाला है। एक छोटे साहब के साथ साये की तरह रहने वाले पुलिसकर्मी का छोटे साहब की बड़े साहब के रूप में तैनाती बाद अब फुर्सत ही फुर्सत है।
भागलपुर। खाकी में अभी भले एक मैडम की सल्तनत हो पर हाल तक तीन मैडम की तिकड़ी का बोलबाला था। बड़े-बड़े सफेदपोश इनके आगे दुम हिलाते थे। तिकड़ी की सीनियर को गजब का दिमाग था। चंद घंटे में लाखों का वारा-न्यारा कर देती थी। उनके वो बेचारे समकक्ष होने के बाद भी पान चबाते और वह पिरकी घोंट पेप्सोडेंट मुस्कान बिखेरती मानों कुछ हुआ ही नहीं। तिकड़ी की बाकी दो मैडम में एक तो पार्टी के घर तक पहुंच जाती तो दूसरी ट्रक का पीछा कर केबिन में लटक कर वसूली करती थी। इन तीनों की रेकी किए एक घाघ जवान ने उन्हें एक साल में नोट दूना करने के नाम पर सीनियर से 40 लाख और बचीं दोनों से 15-15 लाख ले लिया। धोखे बाद अब तीनों भोंकार पार कर रो रही हैं। गाहे-बगाहे दूसरे जिले से यहां आतीं पर रकम वापसी की गुंजाइश नहीं बची है।
फुर्सत हुआ कि नहीं
एक छोटे साहब के साथ साये की तरह रहने वाले पुलिसकर्मी का छोटे साहब की बड़े साहब के रूप में तैनाती बाद अब फुर्सत ही फुर्सत है। पहले साहब की व्यस्तता के कारण वह भी काफी व्यस्त रहता था। अब उनके जाने के बाद शहर के एक खास चौराहे पर अब ड्यूटी मिल गई है। पहले साहब के कार्यालय में होने पर वह खुद बाहर बैठकर अपनी एक महिला मित्र के साथ मोबाइल पर व्यस्त हो जाता था। उस दौरान चंद कदमों की दूरी के बाद भी दीदार नहीं कर सकता था। क्या पता कब साहब निकल जाए। भय समाया रहता था। अब तो इन्हें फुर्सत है लेकिन महिला मित्र की व्यस्तता अधिक हो गई है। मैडम राज में भय अधिक है। इधर वह बार-बार फोन कर महिला मित्र से पूछता फुर्सत हुआ कि नहीं... वह फोन कट कर देती। सप्ताह में एक दिन बाइक पर लांग ड्राइव को निकल पाते।
दारोगा जी का जुल्म
काला सोना की चोरी वाले इलाके में तैनात एक दारोगा जी इन दिनों बड़ा जुल्म कर रहे हैं। जुल्म अपनों पर ही कर रहे हैं। अब शक का इलाज तो है नहीं, बेचारा परिवार उनके जुल्म में पिस रहा है। ड्यूटी पर जाने के पूर्व वह ऑफिसर्स क्वार्टर के एक ब्लॉक में अपने आवास में बड़ा ताला बाहर से लगा देते हैं। अंदर बच्चे और पत्नी बेचारी बंद। उन्हें बाहर नहीं निकलना है। उनके लिए साग-सब्जी, भोजन-नास्ते का कच्चा-पक्का सारा इंतजाम कर दारोगा जी जाते हैं। हां अगर किसी चीज की मनाही है तो वह कि घर की चौखट से बाहर नहीं जाना है। कैद से उन्हें दारोगा जी के क्वार्टर पर आने के बाद ही मुक्ति मिलती है। इस दौरान बेचारे बाहर की आवो-हवा से महरूम रहते हैं। उनकी इस कारगुजारी के कारण अबतक थानेदारी नहीं मिल सकी है। जबकि उनके बैच के कई साथी इंस्पेक्टर हैं।
गजब की रोकते आवाज
शहरी क्षेत्र में तैनात एक इंस्पेक्टर स्वांग रचने में माहिर हैं। कुछ पहले बुझना हो तो आराम से गप करते नजर आएंगे। मोबाइल पर और चहक कर बातें करते। लेकिन जब उनके क्षेत्र में कोई घटना घट जाए और पीडि़त उन्हें मोबाइल पर जानकारी देना चाहे या कुछ पूछना चाहे तो उनकी आवाज ही रहस्यमय तरीके से रुक जाती। एक ग्रामीण इलाके के बुजुर्ग की बाइक उनके थाना क्षेत्र से चोरी चली गई थी। बेचारे उन्हें बार-बार फोन कर उनसे यही पूछते कि कुछ बताइए न सर केस दर्ज हुआ? इंस्पेक्टर को बुजुर्ग ने फोन किया और उन्हें प्रणाम सर बोल संबोधित किया। उधर से इंस्पेक्टर की आवाज आई हूं...बोलिए? जैसे ही बुजुर्ग ने कहा सर मोटरसाइकिल की चोरी हुई थी। आवेदन दिया हूं। केस अबतक दर्ज नहीं है। उधर से इंस्पेक्टर ने आवाज रोक ली। बुजुर्ग ने दूसरे मोबाइल से कॉल किया तो उधर से फिर हूं...बोलिए? फिर आवाज बंद।