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सवाल : कोसी के नैनिहालों में बढ़ रहा कुपोषण

शिशुओं में तीन वर्ष का अंतराल नहीं होने से भी बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 05:22 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 05:22 PM (IST)
सवाल : कोसी के नैनिहालों में बढ़ रहा कुपोषण
सवाल : कोसी के नैनिहालों में बढ़ रहा कुपोषण

बिहारीगंज में 21 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के हैं शिकार

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मधेपुरा(शैलेश कुमार)। कोसी के नैनिहालों में कुपोषण बढ़ता ही जा रहा है। कुपोषण से बचाने की सारी योजनाएं यहां धारासायी है। लाखों रूपये खर्च के बावजूद कुपोषण में बढ़ोत्तरी हो रही है। जबकि आंगनबाड़ी केंद्रों पर ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण एवं अन्य कार्यक्रम चलाई जा रही है। केंद्र का मुख्य उद्देश्य है कि टोले में रहने वाली महिलाओं एवं गर्भवती माताओं को कुपोषण से बचाना, जच्चा व बच्चा के स्वस्थ रहने, साफ-सफाई आदि जानकारी देकर लोगों को जागरूक करना। लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा उचित पर्यवेक्षण व निरीक्षण के अभाव में यह कार्यक्रम कागजों पर दम तोड़ रहा है।

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कुपोषण से बच्चों की हो रही मौत

जिले के कुपोषण से बच्चों की मौत भी हो रही है। बिहारीगंज अस्पताल का आंकड़ों पर गौर करें तो लगभग 21 फीसदी नवजात कुपोषित व अतिकुपोषित का शिकार हो रहे हैं। इसमें डेढ़ प्रतिशत नवजात की मौत गर्भ में ही मौत हो रही है। ग्रामीण क्षेत्र के नवजात शिशुओं की अधिक संख्या होती है। चिकित्सक भी स्वीकार करते हैं कि कुपोषण के कारण ही नवजात शिशु कमजोर व मृत जन्म लेते हैं। इसके लिए गर्भवती माताओं को साफ-सफाई के साथ पौष्टिक भोजन की सही जानकारी की जरूरत है।

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आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पोषण कार्यक्रम फ्लाप

आंगनबाड़ी केंद्रों पर ग्रामीण स्वच्छता एवं पोषण कार्यक्रम चलाया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि यह कार्यक्रम कब चलता है इसकी जानकारी अधिकांश पोषक क्षेत्र के लोगों को पता ही नहीं रहता है। सितंबर माह 2017 से अगस्त 2018 तक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बिहारीगंज में 3249 शिशुओं का जन्म हुआ है। इसमें 49 मृत एवं 601 शिशु कुपोषित एवं अतिकुपोषित पाए गए हैं।

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महिलाएं कमजोर रहने के कारण बच्चों पर भी असर पड़ता है। जन्म लेने वाले कमजोर होते है। वहीं कम उम्र में मां बनना एवं शिशुओं में तीन वर्ष का अंतराल नहीं होने से भी बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं। कुपोषित शिशु जन्म से ही बीमारियों से ग्रसित रहते है। कुपोषण से शिशु को बचाने के लिए माता को लगातार छह माह तक अपना दूध का सेवन कराना चाहिए।

डॉ. मिथलेश

चिकित्सक

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र

बिहारीगंज (मधेपुरा)


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