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सुपौल में सर्द भरी रातों का सितम झेल रहे कोसी के बाढ़ कटाव से विस्‍तापित हुए सैकडों पीड़ित परिवार

कोसी के बाढ़ और कटाव से पीड़ित सैंकड़ों परिवार जहां तहां सड़क किनारे और सिकरहटटा मंझारी निम्‍न बांध पर पूस की सर्द रात जिंदगी काट रहे हैं पर इनके दुख दर्द का जिला प्रशासन को कोई चिंता नहीं है। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने भी मदद पहुंचाने की कोशिश नहीं की।

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Published: Tue, 29 Dec 2020 03:45 PM (IST)Updated: Tue, 29 Dec 2020 03:45 PM (IST)
सुपौल में सर्द भरी रातों का सितम झेल रहे कोसी के बाढ़ कटाव से विस्‍तापित हुए सैकडों पीड़ित परिवार
हजारों की विस्थापितों की आबादी बसी है सिकरहट्टा-मंझारी निम्न बांध पर

जागरण संवाददाता, सुपौल। सिकरहट्टा-मंझारी निम्न बांध पर सर्द रातों का सितम कोसी पीडि़त झेल रहे हैं। यहां कोसी के विस्थापित हजारों लोगों की बस्ती बसी है। यहां के वाङ्क्षशदों का दिन तो किसी तरह कट जाता है लेकिन रात काटना मुश्किल होता है। रातों को जब कोसी के पानी को छूकर सर्द पछिया इनकी झोपडिय़ों में घुसती है तो हाड़ कंपा जाती है। लोगों का कहना है कि वे अपनी झोपडिय़ों में सुबह होने का इंतजार करते रहते हैं।

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जोबहा खास, सिसोनी छीट, घोघररिया पंचायत के अमीन टोला, खुखनाहा, माना टोला, लक्ष्मीनिया गांव के कोसी की बाढ़ से विस्थापित हुए परिवारों का यहां आशियाना है। ये कई सालों से सुरक्षा बांधों पर और उसके किनारे झोपड़ी बनाकर जीवन-यापन कर रहे हैं। हर साल बाढ़ आती है इसलिए हर साल यहां की आबादी बढ़ती जाती है। बाढ़ से विस्थापित लोग ऐसे स्थानों पर आकर शरण लेते हैं। खुखनहा, अमीन टोला, माना टोला, लक्षमीनियां के मु. ताहिर, मु. इजहार, मु. गफार, मु. मनिफ, मु. अब्दुल जब्बार, मुरली यादव, रोहित यादव, सोहन मुखिया आदि का कहना है कि बाढ़ में उनके घर कोसी में विलीन हो गए। दो वर्षों से हमलोग बाल-बच्चे व माल-मवेशी लेकर भटक रहे हैं।

जमीन कोसी में कट गई जिससे बैंक से कृषि ऋण लिए थे नहीं चुका सके हैं। यही हाल सिसौनी पंचायत के सिसौनी छीट, जोबहा खास के लोगों का है। यहां रह रहे सुरेंद्र यादव, केलू महतो, रामू यादव, रामदेव सदा, गंगाराम राम, चनन देवी, अमेरिका देवी, इंजुला देवी आदि का कहना है कि कोसी की बाढ़ से हमलोग बर्बाद हो गए। गर्मी-बरसात के दिन तो कट गए लेकिन अब पूस की रात काटनी मुश्किल हो रही है। अपनी झोपडिय़ों में रातभर सुबह होने का इंतजार करते रहते हैं। बता दें कि कोसी की बाढ़ से कोसी तटबंध के अंदर हर साल हजारों की आबादी प्रभावित होती है। बाढ़ में जब इनके घर-द्वार कट जाते हैं तो ये कोसी पूर्वी तटबंध के स्परों पर, सड़कों के किनारे या फिर ऊंचे स्थानों पर शरण लेते हैं।


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