गेहूं की अभिलाषा में सूख रहा 'गुलाब', कोसी में सुर और ताल हो रहे बेताल...
कोसी में कला-संस्कृति की अनदेखी वर्षों से जारी है। इससे सुर और ताल की चाहत वाले कालाकारों को मंजिल नहीं मिल पा रही है। ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिभा की कमी नहीं है पर इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
जागरण संवाददाता, मधेपुरा। सुर-ताल की अनदेखी बदस्तूर जारी है। ऐसे में गेहूं की कमी ने गुलाब को सूखने पर मजबूर कर दिया है। दरअसल कोसी क्षेत्र में गुलाब (कला और संस्कृति का प्रतीक) यानी रंगमंच के कलाकारों की कमी नहीं है। सिर्फ मधेपुरा में ही रंगकर्मियों की आधा दर्जन संस्थाएं हैं। यहां के कलाकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। प्रांगण रंगमंच, नवाचार रंगमंडल, सृजन दर्पण, इप्टा, शिव रोश्वरी क्लब सहित कई संस्थाओं के कलाकारों ने छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, दिल्ली, असाम, पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। लेकिन अधिकांश रंगकर्मी आर्थिक तंगी में होने के कारण थोड़े दिनों में ही वे रोजी-रोजगार की तलाश में जुट जाते हैं। फलाफल प्रतिभा दम तोड़ देती है। सरकारी स्तर पर कोई सहयोग नहीं मिलने से वे अपेक्षित संख्या में नाट््य मंचन कर पाने में विफल रहते हैं। कलाकारों का कहना है कि पेट की भूख कला पर भारी पड़ती है। आर्थिक मजबूरी व रोजगार की जरूरत के कारण कला से मूंह मोडऩा विवशता बन जाती है।
कलाकारों को मिल चुका है राष्ट्रीय पुरस्कार
यहां के कलाकारों ने राज्य व देश स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। गायन के क्षेत्र में गांधी शर्मा व अरूण कुमार बच्चन को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिल चुका है। वहीं प्रो.योगेंद्र कुमार को तबला वादन के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है। वहीं रविरंजन यादव के तबला बादन के कायल क्षेत्र के लोग हैं। इसके अलावा दर्जनों कलाकार है जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला का लोहा मनवाया है। यह प्रतिभा की ही बानगी है कि सीमित संसाधन के बल पर यहां के कलाकारों ने राज्य ही नहीं देश स्तर पर नाम रोशन किया है। संगीत क्षेत्र में प्रिया राज ने अपनी प्रतिभा के बल बल पर सुर संग्राम जैसे रियलटी शो में नाम कमाया। वहीं तबला वादक हरिओम हरि की ख्याति रही। रेखा यादव, अरूण कुमार, डॉ.रविरंज, प्रो.रीता कुमारी, हेमा कुमार आदि ने भी अपने क्षेत्र में पहचान बनाई।
संगीत व नाट््य शास्त्र पढ़ाई की मांग
यहां के कलाकारों ने विश्वविद्यालय में संगीत व नाट््य शास्त्र पढ़ाई की मांग की है। इस संबंध में आवेदन भी दिया गया है। विश्वविद्यालय पदाधिकारी का कहना है कि इस संबंध में स्वीकृति मांगी गई है। स्वीकृति मिलने के बाद पढ़ाई शुरू हो जाएगी। जिले में अब तक एक भी संगीत संस्थान नहीं है जहां प्रतिभा का निखारा जा सके। संगीत के क्षेत्र में नाम रोशन करने के लिए छात्रों को बाहर का रूख अपनाना पड़ता है। जबकि यहां के मिट्टी का ही दम है कि कलाकार अपने दम पर देश के दूसरे हिस्से में कला के माध्यम से लोगों के जेहन में हैं।
क्या कहते हैं कलाकार
कलाकार अमित आनंद, सुनीत साना, आशीष कुमार सत्यार्थी, गरिमा उर्विशा, शालू शुभम, शिवानी अग्रवाल, शिवांगी गुप्ता, शशिप्रभा जयसवाल, अक्षय कुमार सोनू, दिलखुश कुमार, शशिभूषण कुमार, कुंदन कुमार, बबूल कुमार, विपत बिहारी, विकास कुमार पलटू, अव्यम ओनू, लीजा मान्या, विद्यांशु कश्यप, नेहा भगत, कविता पूनम, संतोष राजा, ङ्क्षचटू चैलेंज, नीरज कुमार निर्जल, मनोहर कुमार, अनुप्रिया, तनु, लिसा रानी, दिव्या, मुस्कान, अंशु, निवेदिता, रक्षा, ऋषिका, तनुजा सोनी, सन्नी कुमारी, अमित अंशु, मु. शहंशाह, मु. शाहिद, अमर कुमार, अविनाश कुमार, प्रेरणा पंकज, मु. आतिफ, बमबम कुमार, सुमन कुमार, रवि कुमार, कार्तिक कुमार, विकास कुमार, सुभाष चंद्र, विकास कुमार आदि कहते हैं कि प्रशासन व जनप्रतिनिध ध्यान दे तो यहां के कलाकार नए आयाम लिख सकते हैं। बस प्रोत्साहन की जरूरत है।
कलाकार इन विधा की देते हैं प्रस्तुति
-: नाटक मंचन
-: लोक गाथा
-: लोकनृत्य
-: लोकगीत
-: जनवादी गीत
-: कजरी, सामा चकेवा, जाट-जाटिन