नक्सलियों के गढ़ में हरित क्रांति... मीठी तुलसी, एलोबेरा, बेबी कॉर्न की इस तरह की जा रही सामूहिक खेती
कभी नक्सलियों का गढ़ रहा खगडि़या के बागमती नदी के इलाके में इन दिनों हरित क्रांति पर बात हो रही है। यहां के किसान समूह के माध्यम से मीठी तुलसी एलोबरा बेबी कॉर्न आदि की खेती कर रहे हैं।
खगडिय़ा [निर्भय]। बागमती नदी के किनारे अवस्थित अमनी पंचायत कभी नक्सलियों की राजधानी कही जाती थी। वर्ष 2001 में प्रमोद कुमार ङ्क्षसह यहां के मुखिया बने और उन्होंने अपनी सोच से पंचायत को शांति के रास्ते पर लाने का काम किया। वे 15 वर्षों तक लगातार मुखिया रहे।
पंचायत को तटबंध दो भागों में विभक्त करती है। बाढ़-कटाव को चुनौती देते हुए आज अमनी पंचायत इतिहास रच रही है। बंदूक के बदले खेती-किसानी को हथियार बन आज यह समृद्धि की डगर पर तेजी से बढ़ रही है। खेती में पंचायत लगातार नवीन प्रयोग कर रही है। परंपरागत विलुप्त हो रही फसलों की खेती को लेकर जहां इसकी प्रसिद्धि है, वहीं अब सामूहिक खेती से इस पंचायत की तकदीर बदलने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल यहां राजमा की खेती का रकबा बढ़ा है।
अप्रैल में शुरू हो जाएगी सामूहिक खेती
अमनी के किसानों ने मानसी जनहित एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड का गठन किया है। जिसके माध्यम से सामूहिक खेती की पटकथा लिखी जाएगी। फिलहाल इससे 150 किसान जुड़े हैं। लक्ष्य पांच सौ किसानों को जोडऩे का है, जो 31 मार्च तक पूरा कर लिया जाएगा। प्रति किसान फिलहाल 1020 रुपये की हिस्सेदारी है। यह रकम तीन साल बाद लौटा दी जाएगी। खेत लीज पर लिए जा रहे हैं। सरसों और धनिया की फसल कटने बाद अप्रैल में सामूहिक खेती की शुरुआत होगी।
किन फसलों की कितने एकड़ में होगी खेती
मीठी तुलसी: पांच एकड़
एलोबरा: पांच एकड़
बेबी कॉर्न: पांच एकड़
उजला मक्का: 25 एकड़
खेत लीज पर लिए जा रहे हैं। इनमें सामुदायिक खेती की जाएगी। अप्रैल में खेती कार्य पूरा कर लिया जाएगा। जैविक विधि से खेती होगी। होने वाला मुनाफा किसान आपस में बांट लेंगे। सामूहिक खेती की उपज को सुमन वाटिका वैशाली खरीद करेगी। सुमन वाटिका से अनुबंध की प्रक्रिया चल रही है। मीठी तुलसी की एक बार बुआई बाद पांच साल तक लाभ लिया जाएगा।
प्रमोद कुमार ङ्क्षसह, पूर्व मुखिया व डायरेक्टर, मानसी जनहित एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड