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सरकारी नीतियां किसानों को पलायन के लिए कर रहीं मजबूर, जानिए किसानों की परेशानी

सरकार की कृषि एवं किसानों के उत्थान के लिए बनाई गई नीतियां और उन नीतियों का क्रियान्वयन के कारण जिले के अधिकांश किसान आज मजदूर बन गये हैं तथा रोजगार केलिए दूसरे प्रदेशों में पलायन कर रहे हैं। पर इस पर सरकार का कोई ध्यान नहीं हैा

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 12:45 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 12:45 PM (IST)
सरकारी नीतियां किसानों को पलायन के लिए कर रहीं मजबूर, जानिए किसानों की परेशानी
कृषि बन रहा घाटे का सौदा, किसान बड़ी संख्या में कर रहे पलायन

जागरण संवाददाता, पूर्णिया । एक समय था जब हमारे देश में खेती को उत्तम, व्यापार को मध्यम और नौकरी को निकृष्ट माना जाता था। पुराने जमाने में किसी की हैसियत का अनुमान इसी बात से लगाया जाता था कि उसके पास कितनी खेती है, लेकिन वर्तमान में खेती को सबसे नीचे का दर्जा दिया जाने लगा है। इसका एक मात्र कारण है सरकार की कृषि एवं किसानों के उत्थान के लिए नीतियां और उन नीतियों का क्रियान्वयन। यही कारण है कि प्रखंड क्षेत्र के अधिकांश किसान आज मजदूर बन गये हैं तथा रोजगार केलिए दूसरे प्रदेशों में पलायन कर रहे हैं।

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आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं युवा किसान

हमारे देश में उद्योगों का विकास भी खेती पर निर्भर है। लेकिन आज की आर्थिक व्यवस्था युवा किसानों को गांवों और खेती-किसानी से पलायन को मजबूर कर रही है। कृषि क्षेत्र में प्रतिवर्ष बजट में भी वृद्धि की जाती है पर जमीनी हकीकत यह है कि किसान खेती-किसानी से काफी परेशान हो गये हैं और वे खेती किसानी छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। आज भी आजादी के दशकों बाद भी अधिकांश भारतीय कृषि इन्द्र देव के सहारे ही चलती है।

खेती किसानी घाटे का सौदा

कृषि उपज के मूल्यों में कमी, बढ़ती कृषि लागत और बढ़ती महंगाई के कारण खेती किसानी घाटे का धंधा बनती जा रही है। फसलों के बंपर उत्पादन के बावजूद किसानों के फसलों की लागत भी घरेलू बाजार में नहीं निकल पा रही है और किसान फसलों को मंडी तक ले जाने की अपेक्षा सड़कों पर फेंक रहे हैं। आने वाले समय में कृषि क्षेत्र के हालात बेकाबू हो सकते हैं। जब किसान की फसल बाजार में आती है तो उसका मूल्य लगातार गिरता जाता है। मध्यस्थ लोग सस्ती दरों में किसानों की फसल को क्रय करके ऊंची दरों पर बाजार में विक्रय करते हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य में पारदर्शी व्यवस्था नहीं

जब औद्योगिक उत्पादों की कीमत लागत, मांग और पूर्ति के आधार पर निर्धारित होती है तो किसानों की फसलों की कीमत का निर्धारण सरकार या क्रेताओं द्वारा क्यों किया जाता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछ ही नकदी फसलों तक ही सीमित है इस न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति को सारी फसलों के लिए लागू किया जाना चाहिए। हर जगह पारदर्शी व्यवस्था है लेकिन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण में पारदर्शी व्यवस्था नहीं है। राज्य सरकारें अपने-अपने तरीकों से न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण कुछ ही नकदी फसलों की लिए करती हैं। सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य में बीज, खाद सिंचाई के लिए बिजली का खर्चा और किसान की मजदूरी शामिल की जाती है इसमें कृषि भूमि का किराया शामिल नहीं किया जाता है।


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