ड्रेगैन ने देसी तसर की चमक की फीकी
देसी तसर की चमक पर चीन और कोरिया जैसे देशों की बुरी नजर पड़ गई है। देसी तसर की कमर तोड़ बाजार पर कब्जा कर लिया है।
(जितेंद्र कुमार) भागलपुर। देसी तसर की चमक पर चीन और कोरिया जैसे देशों की बुरी नजर पड़ गई है। देसी तसर की कमर तोड़ बाजार पर कब्जा कर लिया है। देसी तसर के साख पर धक्का लगा है। चीन और कोरिया के सिल्क धागे का कब्जा है। इसे बुनकर भी धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं।
पिछले ढाई दशक में देश के सिल्क बाजार पर कब्जा कर लिया है। बुनियादी बीज प्रगुणन व प्रशिक्षण केंद्र के वैज्ञानिक डी डॉ. एके सिंह ने बताया कि बाजार में सिल्क की चमक ग्राहकों को ज्यादा आकर्षित कर रही है। विदेशी सिल्क धागे से तैयार कपड़ों में चमक अधिक होने की वजह से ग्राहक ज्यादा पसंद करते हैं। जबकि चमकीले सिल्क के कपड़े में सिंथेटिक कोटेट धागा का इस्तेमाल होता है।
ट्रेड का माल तैयार होकर भारत के बाजार में पहुंच रहा है। चीन धागे को डंपिग करने की शातिर चाल चल रहा है। ज्यादा से ज्यादा धागा सस्ते कीमतों में भेजकर देसी तसर के इस्तेमाल को बंद करने की चाल चल रही है। सेंट्रल सिल्क बोर्ड द्वारा केंद्र सरकार को भी रिपोर्ट दी है। इस पर रोक लगाने के लिए प्रयास जारी है। बहरहाल इसपर सफलता अभी नहीं सकी है।
जानकारी के अनुसार नेपाल और बंग्ला देश के सीमा के सहारे भी भारत में धागा पहुंच रहा है। विदेशी धागा सस्ता होने पर बुनकर खरीद कर कपड़ा तैयार करने में इस्मेमाल कर रहे हैं। भागलपुर और बांका में भी चीन और कोरिया धागे का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है। वैज्ञानिक डी ने बताया कि भारतीय रेशम की गुणवत्ता बेहतर होती है। जबकि चीन और कोरिया के धागे में 40 फीसद तक मिलावट होती है।
देसी तसर की कीमत चार हजार रुपये प्रति किलोग्राम है तो कोरिया धागा 5200 रुपये प्रति किलोग्राम। इस्तेमाल होने की वजह भी स्पष्ट है। देसी तसर के 30 ग्राम धागा से एक मीटर और कोरिया के 20 ग्राम धागे से एक मीटर कपड़ा तैयार किया जाता है। बाजार की मांग के अनुरूप खड़ा उतरने के लिए सस्ते कीमत में बुनकर तैयार करने को विवश हो गई है। इसका प्रभाव देसी सिल्क के गुणवत्ता पर भी पड़ने लगा है।