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कोसी के अभिशाप को गांधी ने बना दिया वरदान, दर्जनों लोगों को मिला रोजगार

सहरसा के गांधी जी ने जलजमाव व सीपेज एरिया में देसी मछली की कई प्रजातियों का उत्पादन किया। इससे लगभग पांच दर्जन लोगों रोजगार भी मिला है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Fri, 04 Sep 2020 12:55 PM (IST)Updated: Mon, 07 Sep 2020 05:43 PM (IST)
कोसी के अभिशाप को गांधी ने बना दिया वरदान, दर्जनों लोगों को मिला रोजगार
कोसी के अभिशाप को गांधी ने बना दिया वरदान, दर्जनों लोगों को मिला रोजगार

सहरसा [मु. नजारूल]। कहते हैं मुश्किल दौर आशावादी लोगों के लिए अवसर बनकर आता है। सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के सकड़ा-पहाड़पुर निवासी गांधी यादव इसके जीवंत उदाहरण हैं। उन्होंने कोसी के अभिशाप को अपने लिए वरदान बना दिया। इतना ही नहीं उसी अभिशाप को उन्होंने पांच दर्जन परिवार के लिए भी वरदान बना दिया है।

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पूर्वी कोसी तटबंध के 108 किलोमीटर के स्लुइस गेट के पूरब लगभग 18 वर्षों से सीपेज एरिया में 20 एकड़ में तालाब का निर्माण कर दर्जनों प्रकार के देसी प्रजातियों की मछलियों का पालन कर लाखों की कमाई कर रहे हैं गांधी यादव। हर साल लगभग पांच लाख की आमदनी वो कर रहे हैं। वहीं उनके साथ  लगभग पांच दर्जन परिवार को भी रोजगार मिल रहा है।

डाक पाल पद पर हैं कार्यरत

पेशे से भारत सरकार में ग्रामीण डाक पाल के पद पर कार्यरत गांधी यादव नौकरी के बाद का समय मछली पालन पर देते हैं। वो बताते हैं कि वो तीन भाई हैं। मुझे अपने हिस्से में सीपेज और जलजमाव वाली जमीन मिली। जिसमें जब बटाईदार को मैंने यह कृषि के लिए दिया तो उन्होंने नुकसान के बाद छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने इसी पानी के उपयोग की सोची और मछली पालन शुरू कर दिया। लगभग 20 एकड़ में कई तालाब बनाकर मछली का उत्पादन कर रहे हैं।

मछली का बच्चा भी करते हैं तैयार

उन्होंने बताया कि दीघा वेस्ट बंगाल से मछली का स्पंज लाकर और अपने ही हेचरी में अंडे से बच्चा तैयार करते हैं और एक से डेढ़ इंच का जब हो जाता है तो उनको तालाब में डालकर  उत्पादन किया जाता है ।

मछली का चारा व भोजन खुद करते हैं तैयार

मछली का भोजन एवं चारा खुद तैयार करते हैं। जिसमें मकई का आटा, चावल का भूसा, सरसों की खल्ली, धान का भूसा,और उसमें कैल्शियम व अन्य पौष्टिक आहार के तौर पर मेडिकल टॉनिक डाल कर खुद चारा तैयार कर मछली को खिलाते व पालते हैं। समय-समय पर चूना डालकर पंपसेट से पानी की साफ-सफाई भी की जाती है। साथ ही पानी में ऑक्सीजन को बढ़ाने वाली टेबलेट भी डाली जाती है।

सूखी मछली भेजते हैं बंगाल

वो बताते हैं कि झींगा एवं छोटी मछलियों को सुखाकर  बंगाल भेजा जाता है। साल में सात माह तक मछली का बिक्री किया जाता है। जबकि  पांच माह उसको पालने में लगता है।

नहीं मिला सरकारी अनुदान

गांधी यादव ने बताया कि 3 साल पूर्व मछली उत्पादन के लिए मत्स्य पालन विभाग से सहायता के लिए आवेदन  दिया गया था। लेकिन आज तक विभाग से किसी तरह का कोई सहयोग व सहायता नहीं मिल पायी।

पर्यावरण पर भी है जोर

मछली पालन के साथ-साथ मुख्यमंत्री के जल जीवन हरियाली को बढ़ावा देने के लिए गांधी ने पटना में जाकर मुख्यमंत्री के जल जीवन हरियाली कार्यक्रम में भाग लिया और उसके बाद लगभग दो हजार पेड़ तालाब के तट पर लगाया। जिसमें पांच से 600 फलदार पौधों में अमरूद, आम, लीची, नींबू इत्यादि है। वहीं सागवान, शीशम ,कदम व अन्य पौधे भी लगाए गये हैं। इससे जहां आसपास पर्यावरण का वातावरण तथा शुद्ध हवा मिलती है। वहीं  तालाब के तट पर लगे वृक्षों का पत्ता तालब में गिरता है तो पानी में सड़ व गलकर प्राकृतिक रूप से मछली का भोजन खुद ब खुद तैयार हो जाता है।

रोजाना क्विंटल में निकाली जाती है मछलियां

रोजाना कतला, रेहू देसी सिंधी, देसी मांगुर, झींगा, मोई मछलियां क्विंटल की मात्रा में निकाली जाती है। 30 से 35  खरीदार पूर्णिया, मधेपुरा, सुपौल तथा सहरसा  ले जाकर बिक्री करते हैं।


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