खगड़िया। स्वतंत्रता सेनानी मुरली मनोहर प्रसाद आजादी की लड़ाई में गोली खा चुके हैं। आगामी सितंबर में वे 108 वर्ष के हो जाएंगे। आश्चर्यजनक रूप से इस उम्र में भी वे गोगरी के दहगाना गांव में शिक्षादान कर देश सेवा कर रहे हैं। कुछ उम्रजनित बीमारियों ने उन्हें घेर लिया है। फिर भी विद्यार्थियों को निश्शुल्क अंग्रेजी पढ़ाते हैं। वे कहते हैं, बिना शैक्षणिक विकास के देश का समग्र विकास नहीं हो सकता है। मुरली बाबू के अनुसार शिक्षा के अभाव के कारण ही अंग्रेज यहां लंबे समय तक शासन करने में सफल रहे। उम्र के इस पड़ाव में मुरली बाबू की सक्रियता और जज्बे को हर कोई सलाम करते हैं। क्षेत्रवासियों को उनपर नाज है। मुरली बाबू की जन्मतिथि 6 सितंबर 1910 है। राटन पंचायत के दहगाना निवासी मुरली मनोहर प्रसाद ने अपनी कॅरियर की शुरुआत एक शिक्षक के रुप में की। वर्ष 1940 के करीब जब देश में आजादी की लड़ाई चरम पर थी , तो वे शिक्षक की नौकरी छोड़ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। इस क्रम में 16 अगस्त 1942 को गोगरी- मुंगेर घाट पर अंग्रेजों का जहाज रोकने के सिलसिले में मुरली बाबू फिरंगियों की गोली से घायल हुए। अंग्रेजों से छिपकर इन्होंने अपना इलाज कराया। देश की आजादी के बाद वे पुन: शिक्षा सेवा से जुड़ गए। शिक्षा के प्रसार को ही अपना कर्म बना लिया। आज वे लगभग 108 वर्ष की उम्र में भी शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। वे बच्चों को निश्शुल्क अंग्रेजी व हिन्दी पढ़ाते हैं। फिलहाल वे उम्रगत परेशानी से जूझ रहे हैं। लेकिन, जो भी उनके पास सीखने आते हैं, उन्हें वे निराश नहीं करते हैं। स्वतंत्रता सेनानी मुरली मनोहर प्रसाद कहते हैं कि गांव, समाज व देश का समग्र विकास शिक्षा के बूते ही संभव है। गांव- समाज के बच्चे पढ़कर आगे बढ़ सके, इसलिए इस उम्र में भी जहां तक संभव है शिक्षादान कर रहा हूं। आज के समय में अंग्रेजी का ज्ञान आवश्यक है।
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