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60 के दशक में फिल्मों की शूटिंग के लिए मसहूर मनिहारी का गंगा घाट आज बदहाल, हिंदी के साथ भोजपुरी फिल्मों की भी होती थी शूटिंग

फ‍िल्‍मों की शूटिंग के लिए मसहूर कटिहार का म‍निहारी घाट आज बदहाल है। यहां पर हिंदी के साथ साथ भोजपुरी फ‍िल्‍मों की भी शूटिंग होती थी। लेकिन हाल के वर्षों में कटाव के कारण यहां पर दृश्‍य पूरी तरह से बदल गई है।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Fri, 11 Jun 2021 04:45 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jun 2021 04:45 PM (IST)
60 के दशक में फिल्मों की शूटिंग के लिए मसहूर मनिहारी का गंगा घाट आज बदहाल, हिंदी के साथ भोजपुरी फिल्मों की भी होती थी शूटिंग
फ‍िल्‍मों की शूटिंग के लिए मसहूर कटिहार का म‍निहारी घाट आज बदहाल है।

कटिहार [प्रीतम ओझा]। मनिहारी का गंगा घाट छह दशक पूर्व तक सामरिक एवं आर्थिक महत्व के लिए भी जाना जाता था। ब्रिटिश काल में झारखंड के सकरी गली से मनिहारी घाट तक मालवाहक स्टीमर का परिचालन होता था। गंगा के कटाव में विलीन हो चुके मनिहारी घाट स्टेशन से पूर्वोत्तर भारत के लिए ट्रेनों का परिचालन होता था। 60 के दशक में फिल्म निर्देशकों को भी मनिहारी गंगा घाट अपनी ओर आकर्षित करता था। अशोक कुमार व नूतन अभिनीत 1963 में रिलीज फिल्म बंदिनी के कई सीन यहां फिल्माए गए थे। छोटें बजट की कई भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है। मायानगरी मुंबई तक जिले का मनिहारी जाना पहचाना नाम था। बंदिनी फिल्म की शूए पहुंचे अशोक कुमार व नूतन से जुड़ी कई यादें मनिहारी स्टेशन के एक कमरे में रखे तस्वीरों में आज भी कैद है।

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सन 1963 में रिलीज मशहूर फिल्म बंदिनी का सदाबहार गाना ओ मांझी मेरे साजन, उस

पार ले चल पार आज भी लोगों को मंत्रमुगध करता है। बंदिनी फिल्म की शूङ्क्षटग मनिहारी घाट सहित आस पास के क्षेत्रों में हुई थी। फिल्म के नायाक व नायिका का ट्रेन व गंगा में परिचालित स्टीमर पर सवार होने का ²श्य बरबस ही लोगों को मनिहारी के सुनहरे अतीत की याद दिलाता है। फिल्म के निर्देशक विमल रॉय ने भी उस वक्त मनिहारी गंगा घाट एवं खेत खलिहानों के मनोरम ²श्य की प्रशंसा की थी।

जहां हुई थी शूटिंग वहां बह रही गंगा की धारा

गंगा के कटाव ने मनिहारी के भौगोलिक परि²श्य को पूरी तरह बदल दिया है। बंदिनी फिल्म की शूङ्क्षटग गंगा किनारे एवं खेतों में जहां हुई थी, वहां आज नदी की कल कल धारा बह रही है। हर साल आने वाली बाढ़ व कटाव की विभीषिका से लोगों को जूझना पड़ता है।

है।

सुनहरे अतीत को संजोने की नहीं हुई पहल

मनिहारी के सुनहरे अतीत को संजोने को लेकर किसी स्तर से कोई पहल नहीं हुई। गंगा घाट के सौंदर्यीकरण एवं सीढ़ी घाट निर्माण को लेकर कई बार आश्वासन एवं योजना प्रस्तावित किए जाने की बात कही गई। लेकिन सौंदर्यीकरण योजना पर काम डेढ़ कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया। गंगा घाट की ओर जाने वाले रास्तों पर पसरी गंदगी व बरसात के मौसम में भारी जलजमाव ने मनिहारी की तस्वीर को पूरी तरह बदरंग कर दिया हे। समय बीतने के साथ ही मनिहारी का स्वर्णिम काल अतीत के पन्नों में सिमट कर रह गया।


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