बीते तीन वर्षो से खुले आसमान के नीचे कट रही विस्थापितों की सर्द भरी रात, किसी ने नहीं ली सुध
किशनगंज जिला अंगर्तत कनकई नदी के चपेट में आकर विस्थापित हुए दर्जनों परिवारों को जीवन यापन के लिए किसी मसीहे की तलाश हैा दर्द भरी जिंदगी जी रहे इन परिवारों की सर्द भरी रात बीते तीन वर्षो से खुले आसमान के नीचे कट रही हैा किसी ने सुध नहीं ली
जागरण संवाददाता, किशनगंज । 2017 में बाढ़ आपदा में विस्थापित हुए दर्जनों परिवार के लोग खुले आसमान के नीचे जीवन व्यतीत करने को विवश हैं। कनकई नदी के चपेट में आकर विस्थापन का दर्द झेल रहे इन परिवारों की दर्द भरी कहानी सुन हर किसी का दिल जरूर पसीज रहा है मगर अब तक कोई मदद नहीं मिल पाई। दिघलबैंक प्रखंड अंतर्गत सुदूरवर्ती lसिंघीमारी पंचायत के मंदिर बस्ती के ग्रामीण अब ना उम्मीद हो चुके हैं। वे लोग बताते हैं कि शुरूआती दौर में प्रशासन व जनप्रतिनिधियों के द्वारा आवास की व्यवस्था किए जाने का आश्वासन दिया गया मगर आज तक कोरा आश्वासन के सिवा कुछ भी हासिल नहीं हुआ। सड़क किनारे झुग्गी बनाकर रह रहे ग्रामीणों का कहना है कि इस साल दो सौ लोगों के बीच प्रशासन द्वारा महज पांच कंबल बांटकर एक तरह से हमारी मजबूरी का मजाक उड़ाया गया।
दर्शन ऋषिदेव, दुलारी देवी, राजकुमार ऋषिदेव, कार्तिक कुमार, लल्लू ऋषिदेव, टिंकू ऋषिदेव, नंदे ऋषिदेव, घनश्याम ऋषिदेव, शनिचरी ऋषिदेव, रामविलास समेत लगभग 26 परिवार सड़क किनारे झुग्गी झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। इन विस्थापितों का सुध लेने वाला कोई नहीं है। बरसात हो तपती धूप या फिर पूस की सर्द रात, हर मौसम में खुले आसमान के नीचे बसर करने को मजबूर हैं। विस्थापितों का कहना है कि हाड़ कंपाने वाली ठंड हो या बारिश का मौसम, सड़क किनारे रहना हमारी नियति बन चुकी है।
प्रशासन का सौतेला व्यवहार तो देखिए, इस ठंड में 26 परिवारों के बीच मुश्किल से पांच लोगों को कंबल दिया गया। 2017 में आई सैलाब में हमलोगों का आशियाना कनकई नदी के गर्भ में समा गया था। तब से हमलोग किसी तरह जिंदगी गुजार रहे हैं। लोहागाड़ा पंचायत के मंदिर टोला गांव में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क किनारे रह रहे इन लोगों का कहना है कि हमने अपना आशियाना बाढ़ में खोया था। बासगीत पर्चा वाले जमीन पर घर बना कर रहते थे। कई दफे कर्मचारी और अंचलाधिकारी ने कहा कि बहुत जल्द किसी अन्य स्थान पर आशियाना बनाने के लिए जमीन उपलब्ध कराया जाएगा। आवास योजना का भी लाभ दिलाया जाएगा, लेकिन आज तक ऐसा नहीं हो पाया। मजबूरी में सड़क किनारे गुजर-बसर कर रहे हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधियों के द्वारा किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिल पाया। अब तो मात्र एक ही उम्मीद है कि अगर जिलाधिकारी या सरकार तक हमारी आवाज पहुंच पाई तो शायद भला हो पाएगा।