सुल्तानगंज रेलवे स्टेशन : राजस्व में चौथा पर उपेक्षा में पहला, बुनियादी सविधाएं भी नहीं हैं यहां
सुल्तानगंज स्टेशन से यात्रियों का दैनिक औसत 4 हजार 144 है। टिकट बिक्री से राजस्व का दैनिक औसत 2 लाख 85 हजार 755 रुपये है। बेहतर राजस्व प्राप्ति के बाद भी यह स्टेशन उपेक्षित है।
भागलपुर [उदय चंद्र झा]। पूर्व रेलवे के मालदा मंडल में केवल टिकट बिक्री से राजस्व देने में सुल्तानगंज स्टेशन चौथे नंबर पर है। आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि टिकट बिक्री से प्राप्त राजस्व में भागलपुर मालदा और जमालपुर के बाद सुल्तानगंज गत 17 वर्षों से लगातार चौथे स्थान पर बरकरार है। लेकिन रेल उपभोक्ताओं की नजर से देखें तो यात्री सुविधाओं के मामले में इसकी उपेक्षा पहले नंबर पर है। खासकर क्षेत्र के सांसद भी इसे प्राथमिकता नहीं देते हैं। मांगों की लंबी फेहरिस्त में कहीं इसे शामिल कर देते हैं। जबकि बांका संसदीय क्षेत्र का यह सबसे महत्वपूर्ण स्टेशन है। लेकिन आजतक किसी सांसद ने केवल सुल्तानगंज के लिए कोई मांग संसद में या रेलमंत्री के समक्ष नहीं उठाई है।
सुल्तानगंज स्टेशन से यात्रा करने वाले यात्रियों का दैनिक औसत 4 हजार 144 है। जबकि केवल टिकट बिक्री से राजस्व का दैनिक औसत 2 लाख 85 हजार 755 रुपये है। वित्तीय वर्ष 2017.18 में टिकट बिक्री से कुल 10 करोड़ 43 लाख 669 रुपये की प्राप्ति हुई है। उक्त वित्तीय वर्ष में केवल आरक्षित टिकटों की बिक्री से 3 करोड़ 50 लाख 47 हजार 890 रुपये प्राप्त हुए हैं। आरक्षित टिकट लेने वाले यात्रियों का दैनिक औसत 238 और इससे राजस्व का दैनिक औसत 1 लाख 14 हजार 536 रुपये है।
लेकिन बात जब जन सुविधाओं की आती है तो रेलवे की प्रशासनिक उपेक्षा में यह पहले पायदान पर दिखता है। भारी मशक्कत के बाद दो शिफ्ट में आरक्षण खिड़की तो खुलने लगी है। लेकिन पूछताछ खिड़की मात्र 8 घंटे ही खुलती है। चूंकि यह सुबह 8 से शाम 4 तक काम करता है। इसीलिए इसे शिफ्ट नहीं कह सकते हैं। यदि पूछताछ खिड़की दो शिफ्टों में खुले तो टिकट खिड़की कर्मियों को यात्रियों से उलझने की नौबत ही कभी नहीं आए। लेकिन अपने हर दौरे में डीआरएम और जीएम इसके औचित्य पर ही सवाल उठा कर विराम लगा देते हैं। हद तो ये है कि बी प्लस श्रेणी वाले इस स्टेशन पर कुल 6 जोड़ी गाडिय़ों का ठहराव नहीं दिया गया है। जब पूर्व रेलवे के वर्तमान महाप्रबंधक हरीन्द्र राव के समक्ष ठहराव की बात उनके पिछले दौरे में यहां उठाई गयी तो छूटते ही उन्होंने कहा कि यहां टिकटों की बिक्री बढ़ाइए। लेकिन प्रश्नकर्ता ने जब इसी खंड के एक स्टेशन का नाम लेकर पूछा कि वहां तो पूरे वर्ष में करीब एक करोड़ रुपये की ही टिकटें बिकती हैं तो वहां सभी गाडिय़ों का ठहराव कैसे है। इस पर जीएम ने तुरंत नरम रुख अपनाते हुए कहा कि ये सवाल आप सांसदों से करें। उपेक्षा की और भी बानगी है।
यहां करीब 6 वर्ष पूर्व ही नया प्लेटफार्म संख्या 4 और 5 बन कर तैयार है। बीते तीन वर्षों में कुल 3 बार उस पर पटरी बिछाने की निविदा निकाली गयी। लेकिन आज तक काम शुरू नहीं हुआ। जबकि उक्त प्लेटफार्म पर दो शेडों सहित सीटिंग बेंच और वाटर प्वाइंट साथ सतह की फिनिशिंग भी पूरी हो चुकी है। ये दोनों प्लेटफार्म पटरी से जुड़ जाएं तो रेलवे को ही यहां अतिरिक्त गाडिय़ों को ठहराने की सुविधा मिलेगी। लेकिन इस पर भी अधिकारियों की उपेक्षा यथावत है। प्रतिदिन औसत 238 आरक्षित टिकट बेचने वाले स्टेशन पर जनसुविधा की उपेक्षा की बानगी ये है कि प्लेटफार्म संख्या 2 एवं 3 पर ठीक स्टेशन भवन के सामने कोई शेड नहीं है। जबकि अप लाईन की सभी लंबी दूरी वाली गाडिय़ों के वातानुकूलित डिब्बे यहीं खड़े होते हैं। लिहाजा धूप और बरसात में एसी टिकट धारकों को यूं ही खुले आसमान के नीचे ट्रेन की प्रतीक्षा करने की मजबूरी है।