ढूंढ़े नहीं मिल रहे गुणकारी द्रोणपुष्पी के पौधे
पेड़ पौधों से भी कई गुणकारी औषधी तैयार होती है जो जीवन रक्षक होने के साथ ही विभिन्न रोगों में लाभकारी है।
कटिहार (मनीष ¨सह)। प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद से विभिन्न रोगों का इलाज प्राचीन समय से होता रहा है। आयुर्वेंद में प्राकृतिक संपदाओं सहित आसपास उपलब्ध पेड़ पौधों से भी कई गुणकारी औषधी तैयार होती है जो जीवन रक्षक होने के साथ ही विभिन्न रोगों में लाभकारी है। लेकिन पर्यावरण असंतुलन का प्रकोप कहे या उपयोगी पौधे की उपेक्षा आसानी से उपलब्ध कई पौधे भी अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुतायत पाया जाने वाला द्रोणपुष्पी (गुम्मा) का पौधा भी अब ढूंढ़े नहीं मिल रहा है।
औषधीय गुणों से भरपुर इस पौधे से मनुष्य एवं पशुओं के विभिन्न रोगों का इलाज होता है। इस पौधे का बॉटनिकल नाम ल्युकस सेफालोटस है। इसका प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सा पदद्धति में पेट सहित मुत्र विकार, नेत्र रोग सहित अन्य रोगों के उपचार में किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में खेत खलिहानों में यह पौधा आसानी से उपलब्ध होता है। इसका उपयोग सीधे तौर पर साग सब्जी के रूप में भी किया जाता है। जानकारों की माने तो इसके सेवन से पाचन तंत्र मजबूत होता है। वहीं लंबे समय तक खांसी और कफ की समस्या में भी इसका उपयोग किया जाता है।
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रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग भी है ह्रास का कारण :
द्रोणपुष्पी के विलुप्त होने का मुख्य कारण रासायनिक उर्वरकों के साथ ही खरपतवार नाशी का बेतहाशा उपयोग माना जाता है। इसके साथ ही लंबे समय तक जलजमाव रहने के कारण भी इस पौधे का ह्रास हुआ है। यद्यपि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में आयुर्वेदिक उपचार के लिए इसकी विशेष खोज की जाती है। लेकिन अब यह ढ़ूंढ़े भी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
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क्या कहते हैं आयुष चिकित्सक :
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अमदाबाद के आयुष चिकित्सक सह आयुर्वेद चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर शिव कुमार ¨सह ने बताया कि द्रोणपुष्पी औषधीय गुणों से भरपुर है। पाचन संबंधी बीमारी की रोकथाम में इसका साग काफी उपयोगी है। इसके साथ ही रक्त विकार में इसका रस काफी उपयोगी है। इसके साथ ही मौसमी बीमारियों के साथ ही कफ और पीलिया रोग में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही इसके सेवन से कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि इस तरह के औषधीय पौधे को संरक्षित करने को लेकर पहल की जरुरत है।