Corona effect : टूट गए सपने, गृहस्थी पर भी बेरोजगारी ने मार दिया डंक, प्रवासी फिर वापसी को हुए मजबूर
पूरा देश कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है। कई राज्यों में लॉकडाउन है। इस दौरान भाललपुर पहुंचे प्रवासी फिर वापस जाने लगे हैं। उन्हें यहां रोजगार नहीं मिला।
भागलपुर [रजनीश]। देशव्यापी लॉकडाउन में दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी आंखों में रोजगार के सपने लिए घर लौटे थे। महानगर की चकाचौंध छोड़कर घर पर ही रोजी-रोटी का जुगाड़ होने की सोच रखी थीं। लेकिन, इन प्रवासियों की किस्मत में यह मंजूर नहीं था। रोजगार नहीं मिला, घर पर रहने का सपना अधूरा ही रह गया। गृहस्थी पर भी बेरोजगारी ने डंक मार दिया। अब इनके पास परदेश जाने के सिवाय कोई चारा नहीं है।
लाचारी में परदेश से लौटे थे, अब बेगारी में फिर वापस जा रहे हैं। घर छोडऩे का मलाल सभी को है, लेकिन आजीविका के लिए परदेश जाना लाचारी है। भागलपुर के रास्ते दिल्ली जा रही ब्रह्मपुत्र मेल स्पेशल से कई लोग सवार हुए। इसमें कुछ ऐसे भी थे जो रोजगार की तलाश में फिर से दिल्ली और दूसरे राज्य के लिए रवाना हुए।
जिले के रतनगंज निवासी कैलाश पासवान और राजू पासवान दिल्ली के किसी फैक्ट्री में काम करते थे। दोनों 12 वर्ष से दिल्ली में ही रहते थे। मार्च में संपूर्ण लॉकडाउन हुआ तो फैक्ट्री बंद हो गई। मई महीने में दोनों श्रमिक ट्रेन से भागलपुर आ गए। दो महीने तक रोजगार के लिए हाथ पैर मारते रहे। लेकिन, इन्हें रोजगार नहीं मिल सका। आखिरकार दिल्ली जाना ही मुनासिब समझा। फैक्ट्री वालों से बात की और रोजगार की तलाश में शुक्रवार को दिल्ली रवाना हो गए। इनका कहना है कि दिल्ली ही मेरा घर है। अपने राज्य में काम का अभाव है। परिवार का पेट भरना मुश्किल है। घर आए थे। लॉकडाउन में दो महीने से अपने गांव में फंसे हुए थे। अब ट्रेनें शुरू हुई। रोजगार की तलाश में फिर से जा रहे हैं।
कटिहार की चंदा देवी दिल्ली में सिलाई का काम करती है। इनके पति राजकिशोर भी दिल्ली में ही रोजगार करते हैं। 15 वर्ष से वहीं रहते हैं। लॉकडाउन में काम बंद हुए तो सभी वापस घर आ गए। दो महीनों तक काम नहीं मिला। फिर पति दिल्ली गए। रोजगार उन्हें मिल गया। फिर पत्नी और चार बच्चों को भी बुलावा भेजा। शुक्रवार को चंदा देवी अपने चारों बच्चे दिव्यानि, हनी कुमारी, रानी और देव कुमार के साथ ब्रह्मपुत्र मेल से दिल्ली रवाना हुए। चंदा ने दर्द भरी दास्तां सुनाई। कहा कि यहां रोजगार नहीं मिल रहा है, यहां रहेंगे तो भूखे मर जायेंगे। कहा दिल्ली जाएंगे फिर वहां सिलाई का काम शुरू करेंगे। घर पर काम नहीं मिला तो फिर से पुराने जगहों पर लौट रहे हैं।
दिल्ली के नागलोई इलाके में संजय कुमार परिवार के साथ 10 सालों से रह रहे थे। पत्नी भी घर पर बच्चों को संभालती थी। मार्च में लॉकडाउन हुआ तो कुछ दिन सभी ने इंतजार किया। फिर डेरा और गृहस्थी समेटकर मई में श्रमिक ट्रेन से अपने घर लौट आए। काफी हाथ-पैर मारने के बाद काम मिला, लेकिन उससे परिवार का गुजारा सही से नहीं हो रहा था। फिर इन्होंने दिल्ली जाने की मन बना लिया। पत्नी और बच्चों के साथ ब्रह्मपुत्र स्पेशल से दिल्ली के लिए रवाना हुए। संजय ने कहा कि रोजगार नहीं है। घर परिवार से दूर काम करने के लिए जाने का मन नहीं है। फिर भी जाने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है।